ग्राउंड_रिपोर्ट: हाईटेक मकान का बजाया ढोल, मा विहार में खुल गया ढोल का पोल!

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ में प्रशासन का “विकास” का ढिंढोरा तो बड़ा जोर-शोर से पीटा गया, लेकिन मा विहार कॉलोनी में सच्चाई देखकर लगता है, ये ढोल फटा हुआ है! प्रगति नगर की बस्तियों को “गंदी, अवैध” का तमगा देकर जमींदोज कर दिया गया। सैकड़ों परिवारों को शहर से 6 किलोमीटर दूर, धूल-धूसरित EWS मकानों में ठूंस दिया गया, जिन्हें प्रशासन ने बड़े गर्व से “हाईटेक घर” का नाम दिया। अरे भैया, हाईटेक का मतलब क्या सिर्फ प्रेस विज्ञप्ति छपवाना है?
कांग्रेस के निगरानी दल ने जब कॉलोनी का दौरा किया, तो वहां का नजारा देखकर हंसी भी आई और गुस्सा भी। हाईटेक घर? हां, बिल्कुल! कहीं छत से पानी टपक रहा है, कहीं खिड़कियां गायब, तो कहीं दरवाजे ही उड़नछू! नल है, मगर पानी की बूंद नहीं। बिजली के तारों में सीपेज, और पंखे? वो तो शायद “हाईटेक” प्लान में भविष्य के लिए छोड़ दिए गए। गंदगी का आलम ये कि कॉलोनी कम, कचरे का ढेर ज्यादा लगे।
प्रशासन की “हाईटेक” व्यवस्था की पोल तब और खुली, जब एक दिव्यांग बुजुर्ग को दूसरी मंजिल का मकान थमा दिया गया। अरे साहब, लिफ्ट तो छोड़ो, सीढ़ियां चढ़ने की ताकत भी तो चाहिए! प्रभावित परिवारों ने अपना दुखड़ा रोया, और उनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। अब प्रशासन शायद सोच रहा होगा, “अरे, ये तो गलत स्क्रिप्ट वायरल हो गई!”
भाजपा और प्रशासन ने दावा किया कि हर परिवार को अलग मकान मिला, लेकिन ये भी आधा सच। कुछ संयुक्त परिवार इन छोटे-छोटे मकानों में ठूंसे गए हैं, जैसे सामान को गोदाम में भरा जाता है। जिनके पास पहले पक्के मकान थे, उनकी तो दुनिया ही उजाड़ दी। और जो किराएदार थे, वो जरूर थोड़ा खुश हैं, लेकिन ये खुशी भी उस तरह की है, जैसे किसी को पुरानी साइकिल देकर बोला जाए, “लो, फेरारी ले लो!”
तोड़फोड़ में तो प्रशासन ने युद्ध-स्तर की तेजी दिखाई, लेकिन विस्थापन की योजना? वो तो शायद किसी “हाईटेक” सपने में छूट गई। अब कह रहे हैं, “महीना भर लगेगा, सब ठीक हो जाएगा।” हां, महीना भर तक माहौल गरम रहा, तो प्रशासन एक्टिव रहेगा। माहौल ठंडा, तो काम बंद!
तो जनाब, ये है रायगढ़ का “हाईटेक विकास” का नमूना। प्रेस में बयान छपे, नेताओं ने तालियां बजाईं, और जनता? वो मा विहार में टपकती छतों और गायब खिड़कियों के बीच “विकास” का मजा ले रही है। वाह, प्रशासन, वाह!