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पत्रकारों के दबाव में झुकी सरकार: सरकारी अस्पतालों में मीडिया कवरेज पर तानाशाही आदेश वापस

Government bows down in front of journalists

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायपुर: छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के तीव्र विरोध के बाद राज्य सरकार को अपनी तानाशाही नीति वापस लेनी पड़ी। सरकारी अस्पतालों में मीडिया कवरेज पर प्रतिबंध लगाने वाले विवादास्पद आदेश को स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने तत्काल निरस्त करने का निर्देश दिया। यह मामला सरकार के प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसे पत्रकारों के एकजुट विरोध ने नाकाम कर दिया।

क्या था विवादास्पद आदेश?
स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सरकारी अस्पतालों में पत्रकारों के कवरेज पर पाबंदी लगा दी थी। इस आदेश में बिना अनुमति के अस्पतालों में खबरें एकत्र करने और फोटो-वीडियो लेने पर रोक थी। इसे पत्रकारों ने प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया और इसका तीव्र विरोध शुरू किया। पत्रकार संगठनों ने इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर तानाशाही थोपने की कोशिश बताया।

पत्रकारों के दबाव में सरकार को झुकना पड़ा
पत्रकारों के लगातार विरोध और मीडिया में इस मुद्दे के उछलने के बाद स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने बुधवार को आदेश वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा, “आदेश को तत्काल निरस्त करने के निर्देश दे दिए गए हैं। स्वास्थ्य सचिव वर्तमान में विदेश दौरे पर हैं। उनके लौटने के बाद आपत्तिजनक बिंदुओं पर पत्रकारों के साथ चर्चा कर सहमति से इन्हें हटाया जाएगा।” यह बयान सरकार की बैकफुट पर आने की स्थिति को दर्शाता है।

तानाशाही रवैये का आरोप
पत्रकारों का कहना है कि यह आदेश सरकार की तानाशाही मानसिकता का परिचायक था, जिसका मकसद सरकारी अस्पतालों की खामियों को छिपाना था। अस्पतालों में अव्यवस्था, दवाइयों की कमी, और मरीजों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार की खबरें उजागर होने से सरकार असहज थी। इस आदेश के जरिए सरकार ने मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश की, ताकि जनता तक सच्चाई न पहुंचे।

पत्रकारों की जीत, लेकिन सवाल बाकी 
पत्रकारों के एकजुट विरोध ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह तानाशाही रवैया भविष्य में फिर से सामने आएगा? स्वास्थ्य सचिव के लौटने के बाद होने वाली चर्चा में पत्रकारों की आपत्तियों को कितना महत्व दिया जाएगा, यह देखना बाकी है। फिलहाल, यह घटना पत्रकारों की ताकत और लोकतंत्र में उनकी भूमिका को रेखांकित करती है, जिसने सरकार की मनमानी को चुनौती देकर उसे वापस लेने पर मजबूर किया।

Amar Chouhan

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