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गारे पेलमा कोल खदान मामला: आरटीआई विवाद अब राज्य सूचना आयोग पहुँचा

भूमि अनुमति दस्तावेज़ न देने के आदेश के विरुद्ध आवेदक ने दायर की द्वितीय अपील

पेसा अधिनियम और पाँचवीं अनुसूची के अनुपालन पर उठे गंभीर विधिक प्रश्न

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान | अमरखबर.कॉम, रायगढ़।

तमनार तहसील के गारे पेलमा IV/2 महाजेनको कोयला खदान से संबंधित राजस्व भूमि अनुमति दस्तावेज़ों को लेकर चल रहा आरटीआई विवाद अब एक नए विधिक चरण में प्रवेश कर गया है।
आज, 23 दिसंबर 2025 को आवेदक द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील विधिवत दायर कर दी गई है।

यह मामला अब केवल सूचना उपलब्ध कराने तक सीमित न रहकर, प्रशासनिक पारदर्शिता, आदिवासी अधिकारों और संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन से जुड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न बनता जा रहा है।



पृष्ठभूमि

ग्राम पंचायत तुरंगा निवासी श्री पद्मनाथ प्रधान द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत गारे पेलमा कोयला खदान हेतु दी गई राजस्व भूमि अनुमति से संबंधित दस्तावेज़ों की मांग की गई थी।
उक्त आवेदन को अतिरिक्त कलेक्टर एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी, रायगढ़ द्वारा 25 अप्रैल 2025 को यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया कि मांगी गई सूचना संबंधित प्राधिकरण के नियंत्रणाधीन नहीं है।

प्रथम अपील पर कोई निर्णय न दिए जाने अथवा सूचना उपलब्ध न कराए जाने के कारण आवेदक ने अब द्वितीय अपील का संवैधानिक अधिकार प्रयोग किया है।



कानूनी दृष्टि से उभरते प्रश्न

🔹 सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

आरटीआई अधिनियम की धारा 2(f) के अनुसार—

> किसी भी प्रकार के रिकॉर्ड, दस्तावेज़, आदेश, अनुमति, नोटशीट या अभिलेख “सूचना” की श्रेणी में आते हैं।



यदि कोयला खदान हेतु राजस्व भूमि की अनुमति दी गई है, तो उससे संबंधित अभिलेखों का अस्तित्व राजस्व अथवा संबंधित विभाग में होना विधिक रूप से अपेक्षित है।
ऐसी स्थिति में “सूचना उपलब्ध नहीं है” कहना रिकॉर्ड प्रबंधन या वैधानिक जवाबदेही से जुड़ा प्रश्न खड़ा करता है।

🔹 धारा 4(1)(b) — स्वप्रेरित प्रकटीकरण

भूमि, खनन एवं प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े मामलों में सूचना का स्वतः प्रकाशन अनिवार्य है।
यह मामला इस प्रश्न को भी जन्म देता है कि क्या वैधानिक रूप से अपेक्षित स्वप्रेरित प्रकटीकरण का पालन किया गया।

पेसा अधिनियम और पाँचवीं अनुसूची का संदर्भ

गारे पेलमा क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र में आता है।
पेसा अधिनियम, 1996 के अंतर्गत—

खनन एवं भूमि हस्तांतरण से पूर्व

ग्राम सभा की पूर्व सहमति

तथा ग्राम सभा को समस्त प्रासंगिक जानकारी उपलब्ध कराना


अनिवार्य माना गया है।

यदि भूमि अनुमति से जुड़े दस्तावेज़ सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं, तो ग्राम सभा की सहमति की सूचित एवं स्वतंत्र प्रकृति पर विधिक प्रश्न उठना स्वाभाविक है।



न्यायिक दृष्टांत

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समता बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1997) एवं ओरिसा माइनिंग कॉरपोरेशन बनाम ग्राम सभा (नियामगिरी प्रकरण) में यह स्पष्ट किया गया है कि—

> अनुसूचित क्षेत्रों में खनन गतिविधियाँ ग्राम सभा की सहमति एवं आदिवासी हितों के संरक्षण के अधीन हैं।



इन निर्णयों की भावना में दस्तावेज़ों की पारदर्शिता एक आवश्यक तत्व मानी गई है।



अब आगे की प्रक्रिया

द्वितीय अपील दायर होने के साथ यह मामला अब छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के विचाराधीन है।
विधिक जानकारों के अनुसार, आयोग द्वारा—

सूचना उपलब्ध कराने

रिकॉर्ड प्रस्तुत करने

अथवा संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण


मांगा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, परिस्थितियों के अनुसार मामला राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) या उच्च न्यायालय के समक्ष भी जा सकता है।




गारे पेलमा कोल खदान से संबंधित भूमि अनुमति दस्तावेज़ों का विषय अब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया का नहीं, बल्कि—

सूचना के अधिकार,

आदिवासी स्वशासन,

संवैधानिक संरक्षण


से जुड़ा गंभीर विधिक प्रश्न बन चुका है।

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि द्वितीय अपील पर राज्य सूचना आयोग का निर्णय पारदर्शिता और संवैधानिक मंशा को किस दिशा में ले जाता है।

Amar Chouhan

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