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कोंडागांव हॉस्टल हादसा: 11 साल की मासूम की टाई से फंदा, छिपाई गई सच्चाई या छिपा कोई राज? हॉस्टल प्रबंधन पर गंभीर सवाल

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
कोंडागांव, 12 अक्टूबर 2025 (वरिष्ठ संवाददाता)

छत्तीसगढ़ के घने जंगलों से घिरे कोंडागांव जिले के माकड़ी ब्लॉक में एक ऐसी घटना घटी है, जो न सिर्फ स्थानीय समुदाय को सदमे में डाल रही है, बल्कि पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था और आदिवासी बच्चों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा रही है। शनिवार सुबह, जब सूरज की पहली किरणें कांटागांव के आदिवासी कन्या आश्रम (गर्ल्स हॉस्टल) के परिसर को छू रही थीं, तभी एक कमरे से निकली चीख ने सबको थर्रा दिया। 11 वर्षीय मासूम छात्रा, जो कक्षा पांचवीं की होनहार विद्या की आशा लेकर यहां आई थी, अपने ही कमरे में टाई के फंदे से लटकती मिली। नाम था चंपा का—एक ऐसा नाम जो अब दर्द और रहस्य की पहचान बन चुका है। 

यह घटना मात्र एक बच्ची की मौत नहीं है; यह एक सिस्टम की विफलता की कहानी है। आदिवासी समुदायों से आने वाली ये मासूम लड़कियां, जो गरीबी और दुर्गमता की जंजीरों को तोड़ने के लिए सरकारी हॉस्टलों में प्रवेश करती हैं, आखिर क्यों इस कदर असुरक्षित महसूस करती हैं? क्यों एक 11 साल की बच्ची, जो जीवन के सुख-दुख से अनजान होती है, फांसी का रास्ता चुन लेती है? और सबसे बड़ा सवाल—हॉस्टल प्रबंधन ने पहले ‘बेहोशी’ का बहाना क्यों बनाया? समय पर सूचना क्यों नहीं दी गई? अगर यह आत्महत्या है, तो पीछे छिपे दर्द का राज क्या है? या फिर यह कोई सुनियोजित हादसा, जिसकी परतें अभी खुलनी बाकी हैं? 

घटना का क्रम: सुबह की शांति से मौत का सन्नाटा 
बताया जाता है कि शनिवार (11 अक्टूबर) की सुबह करीब 10 बजे हॉस्टल वार्डन ने छात्राओं को नाश्ते के लिए जगाया। चंपा का कमरा खाली था। दरवाजा खटखटाने पर कोई जवाब नहीं मिला। चिंता बढ़ी तो दरवाजा तोड़ा गया—और सामने का नजारा देखकर सब स्तब्ध। बच्ची का शव टाई से बंधे फंदे पर लटका था, आंखें बंद, चेहरा पीला। हॉस्टल के अन्य छात्राओं और स्टाफ में अफरा-तफरी मच गई। प्रारंभिक जांच में पता चला कि यह घटना शाला संचालन के समय घटी, यानी जब बच्चियां पढ़ाई या नाश्ते में व्यस्त होती हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि इतने बड़े हॉस्टल में, जहां दर्जनों बच्चियां रहती हैं, किसी को बच्ची के कमरे में घंटों तक कुछ खुराफात करने का मौका कैसे मिल गया? क्या कोई नजरअंदाज कर रहा था, या निगरानी का अभाव इतना गहरा था? 

हॉस्टल प्रशासन ने तत्काल परिजनों को फोन किया, लेकिन झूठ का पहला परत यहीं चढ़ा। ‘बच्ची बेहोश हो गई है, डॉक्टर बुला लिए हैं’—यह बहाना सुनकर चंपा के माता-पिता, जो माकड़ी के एक छोटे से आदिवासी गांव में रहते हैं, घबरा उठे। वे घंटों इंतजार करते रहे, लेकिन दोपहर करीब 12 बजे तक सच्चाई सामने आई—उनकी इकलौती बेटी अब इस दुनिया में नहीं रही। गांव के सरपंच मोती राम मरकाम ने मुझे बताया, “सुबह 10:45 बजे कॉल आया था। हमने सोचा शायद मामूली बात है। लेकिन जब दोपहर को हॉस्टल पहुंचे, तो शव देखकर पैरों तले जमीन खिसक गई। अगर समय पर सही जानकारी मिली होती, तो शायद… शायद हम कुछ कर पाते।” सरपंच की आंखें नम थीं, आवाज में गुस्सा और बेबसी का मिश्रण। 

परिजनों का आक्रोश: ‘सच्चाई छिपाने का अपराध’ 
चंपा के पिता, एक मजदूर, ने आरोप लगाया कि हॉस्टल प्रबंधन ने जानबूझकर घटना को दबाने की कोशिश की। “मेरी बेटी ने कभी शिकायत नहीं की, लेकिन अब लगता है कुछ तो छिपा था। स्कूल का दबाव? सहेलियों का ताना? या कोई बड़ा राज?” उन्होंने उच्च स्तरीय जांच की मांग की है, जिसमें हॉस्टल के सभी रिकॉर्ड—रजिस्टर, सीसीटीवी फुटेज (यदि हो), और स्टाफ के बयान—खंगाले जाएं। ग्रामीणों का कहना है कि यह हॉस्टल आदिम जाति कल्याण विभाग के अधीन है, लेकिन रखरखाव और निगरानी में लापरवाही साफ दिख रही है। एक स्थानीय महिला ने कहा, “ये बच्चियां हमारे गांव का भविष्य हैं। अगर हॉस्टल में ही सुरक्षित न रहें, तो कहां जाएंगी?” 

प्रशासन की प्रतिक्रिया: पोस्टमॉर्टम और जांच का इंतजार 
घटना की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। एसडीएम अजय उरांव, तहसीलदार, खंड शिक्षा अधिकारी, और स्थानीय पुलिस टीम मौके पर पहुंची। आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त कृपेंद्र तिवारी ने बताया कि शव को तुरंत पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया, और रिपोर्ट आने के बाद मौत के सटीक कारणों का पता चलेगा—क्या यह आत्महत्या थी, या कोई बाहरी हस्तक्षेप? तिवारी ने स्वीकार किया, “यह शाला समय की घटना है, इसलिए जांच का फोकस यही रहेगा कि बच्ची को फांसी लगाने तक किसी शिक्षक या अधीक्षक को भनक क्यों नहीं लगी? हॉस्टल प्रबंधन के खिलाफ लापरवाही का केस दर्ज किया जा सकता है।” पुलिस ने प्रथमिक जांच में कोई सुसाइड नोट नहीं पाया, लेकिन बच्ची के सामान की फॉरेंसिक जांच चल रही है। फिलहाल, शव पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। 

इस घटना ने पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ा दी है। ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने हॉस्टल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। जिला पंचायत सदस्यों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है, जिसमें सभी आदिवासी हॉस्टलों में काउंसलिंग सेंटर, 24×7 निगरानी, और मानसिक स्वास्थ्य जांच की मांग की गई है। 

इतनी छोटी उम्र में फंदा: उच्च स्तरीय जांच क्यों जरूरी? 
एक 11 साल की बच्ची का फांसी लगाना सामान्य नहीं हो सकता। विशेषज्ञों का कहना है कि इस उम्र में डिप्रेशन, स्कूल का दबाव, या छिपी प्रताड़ना (जैसे रैगिंग या यौन उत्पीड़न) ही ऐसा कदम भरा सकती है। राज्य स्तर पर गठित एक जांच समिति ही सच्चाई उजागर कर सकती है—क्या हॉस्टल में कोई आपराधिक साजिश थी? क्या प्रबंधन ने जानबूझकर देरी की? बिना पारदर्शी जांच के, ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी, और आदिवासी बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ता रहेगा। सरकार को अब कड़े कदम उठाने होंगे—न कि सिर्फ बयानबाजी। 

फांसी लगाकर आत्महत्या करने वालों के लिए हिदायतें: जीवन की कीमत समझें 
यदि आप या आपके आसपास कोई इस कदर टूटा हुआ महसूस कर रहा है कि मौत ही एकमात्र रास्ता लगे, तो कृपया रुकें। आत्महत्या कोई समाधान नहीं, बल्कि एक स्थायी फैसला है जो अस्थायी दर्द के लिए लिया जाता है। यहां कुछ जरूरी हिदायतें हैं: 
– **तुरंत मदद लें:** किसी भरोसेमंद व्यक्ति—माता-पिता, दोस्त, शिक्षक—से बात करें। अपनी पीड़ा साझा करने से बोझ हल्का होता है। 
– **हेल्पलाइन का सहारा:** भारत में सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन जैसे कि किरण (1800-599-0019) या वंद्रवासी (011-40769002) पर 24×7 कॉल करें। ये मुफ्त और गोपनीय हैं। 
– **कारणों पर विचार:** जो दर्द आज असहनीय लग रहा है, वह कल हल हो सकता है। पढ़ाई का दबाव, पारिवारिक कलह, या रिश्तों की उलझन—ये सब बातचीत से सुलझ सकते हैं। 
– **जीवन का मूल्य:** आप अनमोल हैं। आपकी एक मुस्कान दुनिया बदल सकती है। मदद मांगना कमजोरी नहीं, ताकत है। याद रखें, सुबह हमेशा नई उम्मीद लाती है। अगर बच्चे हैं, तो माता-पिता/शिक्षक सतर्क रहें—बच्चों की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें। 

यह घटना हमें सबक देती है कि शिक्षा के नाम पर हॉस्टल सिर्फ इमारतें नहीं, बच्चों के सुरक्षित आश्रय होने चाहिए। चंपा की मौत व्यर्थ न जाए—उसकी यादें न्याय की मशाल बनें। प्रशासन से अपील है: सच्चाई उजागर करें, दोषियों को सजा दें, ताकि कोई अन्य मां का लाल न खोए। 

Amar Chouhan

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