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रायगढ़ RPF में राजनीतिक बहस ने ली जान: देशभर में बढ़ रहे वैचारिक टकराव का खौफनाक प्रतिबिंब बनी यह वारदात”

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम

रायगढ़। देश में चुनावी साल करीब आते ही राजनीति सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक घमासान पैदा कर रही है—लेकिन रायगढ़ के RPF पोस्ट में तड़के 4 बजे जो हुआ, उसने साबित कर दिया कि वैचारिक आग अब संवैधानिक वर्दी के भीतर भी सुलगने लगी है। राजनीतिक बहस इतनी जहरीली भी हो सकती है कि एक सहकर्मी दूसरे पर चार गोलियां दाग दे… शायद किसी ने सोचा भी नहीं था।

बुधवार की सुबह रायगढ़ RPF पोस्ट में प्रधान आरक्षक पीके मिश्रा की उनके ही साथी लदेर द्वारा हत्या ने पूरे रेलवे सुरक्षा बल को हिलाकर रख दिया। शुरुआती जांच बताती है कि बहस का मुद्दा वही था जो आज पूरे देश के हर चाय-ढाबे, ऑफिस, व्हाट्सऐप ग्रुप और पारिवारिक बैठकों में तनाव का कारण बन चुका है—
संविधान, आरक्षण, बाबा साहब अंबेडकर और मौजूदा राजनीतिक ध्रुवीकरण।

देश का मौजूदा राजनैतिक विमर्श जिस तीखेपन से भरा है, उसका सबसे भयावह रूप इस छोटे से कमरे में सामने आया, जहां दो वर्दीधारी जवानों के बीच असहमति ने हत्या का रूप ले लिया।



कैसे फूटा विवाद—और कैसे बन गया मौत का कारण?

सीसीटीवी की प्रारंभिक जानकारी के अनुसार उस समय पोस्ट पर केवल दो ही कर्मचारी मौजूद थे। बहस धीरे-धीरे तेज हुई, सुर बदले, आरोप-प्रत्यारोप बढ़े और फिर अचानक लदेर ने पोस्ट में रखी 9 MM पिस्टल उठाई, गोलियां भरीं और कुर्सी पर बैठे पीके मिश्रा पर लगातार चार गोलियां दाग दीं।

पहली गोली कनपटी पर लगी, दूसरी चेहरे के आरपार निकल गई। पीके मिश्रा वहीं कुर्सी पर ढेर हो गए।
राजनीतिक असहमति पर मौत—यह दृश्य देश में बढ़ते वैचारिक टकराव की एक खतरनाक तस्वीर है।



पहले भी हुआ था ऐसा—जब बहस ‘विचार’ से ‘विकृति’ में बदल गई थी

कुछ साल पहले RPF के ही एक जवान ने ट्रेन में कथित राजनीतिक बहस के बाद 4 यात्रियों को गोली मार दी थी।
इस बार फिर वही पैटर्न दोहराया गया।
यक़ीनन यह संयोग नहीं, बल्कि उस मानसिकता का विस्तार है जो वर्तमान राष्ट्रीय विमर्श में लगातार उग्र होती जा रही है।



कौन थे दोनों कर्मचारी?

पीके मिश्रा (मृतक)

मूल निवासी: रीवा, मध्यप्रदेश

परिवार: एक बेटा (हैदराबाद में)

सेवा अवधि 20 वर्ष से अधिक


लदेर (आरोपी)

मूल निवासी: जांजगीर-चांपा (छत्तीसगढ़)

परिवार: पत्नी व तीन बच्चे (भाटापारा, जांजगीर)

2001 बैच का कर्मचारी


दोनों साथ काम कर चुके थे, कभी दुश्मनी नहीं रही।
लेकिन राजनीतिक बहस… सब छीन ले गई।



GRP ने पहले गोलियों की आवाज को पटाखा समझा—फिर मचा हड़कंप

पोस्ट के बाहर मौजूद GRP जवानों ने आवाज सुनी, पर गंभीरता न समझ पाए।
कुछ मिनट बाद एक RPF जवान भागते हुए आया—
“लदेर ने मिश्रा जी को गोली मार दी!”
इसके बाद अफरा-तफरी मच गई। पोस्ट सील किया गया, अधिकारी मौके पर पहुंचे।



क्या यह घटना सिर्फ हत्या है… या बड़े सामाजिक टकराव की झलक?

आज देश में—

संविधान पर बहस

आरक्षण पर तीखी विभाजन रेखाएँ

जातीय विमर्श का टकराव

सोशल मीडिया की उग्र बयानबाज़ी

राजनीतिक दलों की ध्रुवीकरण वाली भाषा


ये सब मिलकर एक खतरनाक मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं।
यह घटना इसी तनाव का उफान हो सकती है—जहां विचारधारा इंसानों से बड़ी हो गई और असहमति गोली की आवाज में बदल गई।



जांच जारी—क्या राजनीतिक उग्रता का कोण भी शामिल होगा?

आरोपी से पूछताछ शुरू हो चुकी है।
GRP एसपी रायगढ़ पहुंचने वाली हैं।
जांच के दौरान यह देखना होगा कि—

क्या आरोपी किसी विशेष राजनीतिक प्रभाव या मानसिक दबाव में था?

क्या दोनों के बीच पहले भी वैचारिक बहसें हुई थीं?

क्या सोशल मीडिया या बाहरी राजनीतिक माहौल ने मनोवैज्ञानिक असर डाला?


यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि “राजनीतिक ध्रुवीकरण अगर इसी गति से बढ़ता रहा, तो वर्दी, दोस्ती, मानवता—कुछ भी सुरक्षित नहीं बचेगा।”



रायगढ़ RPF गोलीकांड ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—

क्या भारत की राजनीति अब बहस नहीं, बल्कि ‘बदले’ का ईंधन बनने लगी है?

यह घटना सिर्फ रायगढ़ की नहीं…
भारत के मौजूदा राजनीतिक वातावारण की ज्वलनशील सच्चाई है।

विशेष रिपोर्ट

Amar Chouhan

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