कोयला खदान शुरू करने से पहले वन भूमि पर नजर, पेलमा माइंस के लिए ग्रामसभा से मांगी गई एनओसी

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़। कोयला खदानों को शुरू करने की दिशा में कंपनियां अब निजी भूमि से पहले वन भूमि पर फोकस कर रही हैं। इसी कड़ी में एसईसीएल (SECL) को आवंटित पेलमा कोयला खदान के लिए वन भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है। इसके तहत तमनार तहसीलदार ने चार पंचायतों – पेलमा, हिंझर, जरहीडीह और खर्रा – के सरपंचों व सचिवों को पत्र लिखकर ग्रामसभा की एनओसी, प्रस्ताव और उपस्थिति पंजी की सत्यापित प्रति मांगी है।
पेलमा माइंस को एसईसीएल ने एमडीओ मॉडल पर अडाणी इंटरप्राइजेस को दिया है। यह पहली बार है जब कोल इंडिया की किसी खदान को आउटसोर्सिंग के जरिए संचालित किया जा रहा है। हालांकि, आवंटन के बाद से ही स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के चलते सर्वे की प्रक्रिया अटकी हुई है।
एसईसीएल ने वन भूमि 293 हेक्टेयर और राजस्व वन भूमि 69 हेक्टेयर के लिए अनुमति का आवेदन किया है। अधिग्रहण की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए ग्रामसभा की सहमति अनिवार्य है।
इससे पहले पेलमा, उरबा, मिलूपारा, लालपुर और हिंझर पंचायतों के सरपंचों ने संयुक्त रूप से मांग पत्र सौंपकर कई शर्तें रखी थीं। ग्रामीणों ने प्रति एकड़ 60 लाख रुपए या अधिकतम सर्किल रेट के हिसाब से मुआवजा, प्रति एकड़ एक नौकरी, नौकरी के बदले 10 लाख रुपए, विस्थापन लाभ न्यूनतम 10 लाख रुपए प्रति परिवार, और छह महीने के भीतर रोजगार देने जैसी मांगें उठाई थीं।
साथ ही भूमिहीन परिवारों के लिए एमडीओ में रोजगार या वैकल्पिक दुकान की व्यवस्था, 2005 से पहले से काबिज वन भूमि धारकों को पट्टा और मुआवजा, भूमि व संपत्ति का एकमुश्त भुगतान तथा सर्वे की तारीख को ही कटऑफ डेट मानने जैसी शर्तें भी रखी गई हैं। ग्रामीणों ने खाता विभाजन पर लगी रोक हटाने की भी मांग की है।