बजरमुड़ा पंचायत में तालाब गहरीकरण का पुराना खेल

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम तमनार। बजरमुड़ा पंचायत में विकास के नाम पर हर साल एक ही नाटक दोहराया जाता है—तालाब गहरीकरण। यहाँ का तालाब गहरा करने का काम कागजों पर तो जोर-शोर से होता है, लेकिन हकीकत में तालाब की हालत जस की तस रहती है। इस बार भी 21 अगस्त 2025 को तालाब गहरीकरण के लिए 2 लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन नतीजा वही पुराना—ना तालाब गहरा हुआ, ना पानी रुकने की कोई उम्मीद दिखी।
पंचायत के खाते की पासबुक इस खेल की सच्चाई बयान करती है। 1 अप्रैल 2025 को खाते में 12,55,446 रुपये थे। तालाब गहरीकरण के बाद यह राशि घटकर 10,55,446 रुपये रह गई। यानी, 2 लाख रुपये तालाब के नाम पर खर्च हो गए, लेकिन गाँव वालों को तालाब में कोई बदलाव नजर नहीं आता। तालाब वैसा ही है, पानी की कमी वैसी ही है, और गाँव की समस्याएँ भी ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।
गाँव के लोग इस तालाब गहरीकरण को मजाक बनाकर देखते हैं। वे हँसते हुए कहते हैं, “तालाब में पानी टिके या न टिके, पंचायत सचिव और सरपंच की जेबें हर साल जरूर भर जाती हैं।” उनका मानना है कि तालाब गहरीकरण के नाम पर हर साल पैसा खर्च होता है, लेकिन मिट्टी निकालने का काम ढंग से नहीं होता। नतीजतन, तालाब में पानी जमा होने की समस्या हल नहीं होती, और गाँव वाले पानी के लिए तरसते रहते हैं।
इस पूरे मामले से कई सवाल उठते हैं:
– क्या वाकई तालाब गहरा हो रहा है, या यह सिर्फ नेताओं की जेबें गहरी करने का खेल है?
– तालाब से मिट्टी निकल रही है, या जनता की मेहनत की कमाई उड़ाई जा रही है?
– क्या यह तालाब गहरीकरण विकास का प्रतीक है, या सिर्फ भ्रष्टाचार का एक स्थायी अड्डा बन गया है?
बजरमुड़ा पंचायत की हकीकत यही है कि तालाब गहरीकरण के नाम पर हर साल लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन गाँव वालों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा। तालाब में पानी जमा करने की क्षमता बढ़ाने के बजाय, यह काम सिर्फ कागजी खानापूरी बनकर रह गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह तालाब गहरीकरण का खेल अब “जनता का गहरीकरण” बन चुका है, जिसमें उनकी मेहनत की कमाई डूब रही है।
गाँव वाले अब इस खेल से तंग आ चुके हैं। वे चाहते हैं कि तालाब गहरीकरण का काम पारदर्शी तरीके से हो, जिसमें गाँव वालों की भागीदारी हो और खर्चे का हिसाब साफ-साफ दिया जाए। अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो बजरमुड़ा का तालाब सिर्फ एक मजाक बनकर रह जाएगा, और विकास का सपना अधूरा ही रहेगा।