तमनार के 38 गांव जशपुर में दर्ज, 900 किसान हुए धान खरीदी व्यवस्था के बाहर

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़। धान खरीदी सीज़न से ठीक पहले रायगढ़ ज़िले के तमनार क्षेत्र के तकरीबन 900 किसानों पर संकट मंडरा रहा है। कारण न प्रशासनिक आदेश है, न सीमा विवाद… बल्कि एक ‘डिजिटल गड़बड़ी’ है जिसने पूरे मामले को उलझा दिया है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एग्रीस्टेक पोर्टल पर तमनार ब्लॉक के 38 गांव जशपुर ज़िले की मनोरा तहसील में दर्ज हो गए हैं। इन गांवों में पहले से पंजीकृत किसानों का डेटा रायगढ़ की जगह जशपुर के मॉड्यूल में प्रदर्शित हो रहा है, जिसके कारण उन्हें अपने जिले में पंजीयन का अवसर ही नहीं मिल रहा। स्थिति यह है कि फार्मर आईडी रायगढ़ के पोर्टल पर उपलब्ध नहीं है, और जब तक डेटा ट्रांसफर या डिलीट कर सही जिले में नहीं जोड़ा जाता, प्रभावित किसान धान विक्रय की प्रक्रिया से बाहर रहेंगे। सरकार ने इस वर्ष धान खरीदी के लिए एग्रीस्टेक पोर्टल के पंजीयन को अनिवार्य किया है। इसके अंतर्गत डिजिटल क्रॉप सर्वे और गिरदावरी से प्राप्त फसली रकबा का मिलान पोर्टल के रिकॉर्ड से किया जाएगा। किंतु इन 38 गांवों के किसान जिले की आईडी में ही नहीं दिख रहे, जिससे उनका वेरीफिकेशन असंभव हो गया है।
प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि जब तक तकनीकी गड़बड़ी ठीक नहीं होती, पंजीयन रायगढ़ ज़िले में अपलोड नहीं किया जा सकेगा। ऐसे में किसानों की उपज बेचने की प्रक्रिया अटकना तय है। किन गांवों के नाम शामिलएग्रीस्टेक पोर्टल की गड़बड़ी के चलते जशपुर मनोरा तहसील में दिख रहे गांव हैं — महलोई, देवगांव, लिबरा, झरना, बागबाड़ी, सारसमाल, समकेरा, रायपारा, गौरबहरी, अमलीढोढ़ा, धौंराभांठा, टपरंगा, आमगांव, नागरामुड़ा, जांजगीर, कोडक़ेल, बालजोर, डोलेसरा, रोड़ोपाली, उत्तर रेगांव, टांगरघाट, केशरचुवां, कर्रापाली, औराजोर, तिलाईपारा, खुरुसलेंगा, बिजना, हमीरपुर, भगोरा, कुशमेल, बरकछार, चकाबहाल, पडिग़ांव, जोबरो, पाली, करमागढ़ और केनानीबहाल।
किसान बताते हैं कि वे पिछले सालों में नियमित रूप से पंजीकृत होकर धान विक्रय करते आए हैं, मगर इस बार जब पंजीयन शुरू हुआ तो नाम जिले में खोजने पर गायब मिले। वहीं, स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि यह स्पष्ट रूप से तकनीकी त्रुटि है जिसे सुधारा जाना आवश्यक है। लेकिन अब तक न पोर्टल पर सुधार हुआ है और न कोई वैकल्पिक व्यवस्था लागू हुई है।धान खरीदी की तैयारी के इस नाजुक समय में यह तकनीकी गड़बड़ी न सिर्फ सैकड़ों किसानों को आर्थिक संकट में डाल सकती है, बल्कि डिजिटल ढांचे और उसकी विश्वसनीयता पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।