जर्जर सड़क और उद्योगों की लापरवाही: ग्राम पंचायत लाखा में आर्थिक नाकेबंदी शुरू, ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले की ग्राम पंचायत लाखा के अंतर्गत चिराईपानी से गेरवानी तक की जर्जर कच्ची सड़क ने ग्रामीणों का जीना दूभर कर दिया है। इस सड़क की बदहाल स्थिति और स्थानीय उद्योगों की लापरवाही के खिलाफ ग्रामीणों का गुस्सा अब चरम पर पहुंच चुका है। तीन किलोमीटर लंबी इस सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे, कीचड़ और उबड़-खाबड़ रास्तों ने न केवल आवागमन को मुश्किल बना दिया है, बल्कि स्कूली बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों के लिए यह सड़क जानलेवा साबित हो रही है। ग्राम पंचायत ने उद्योगों को सड़क मरम्मत के लिए दिए गए तीन दिन के अल्टीमेटम की अनदेखी के बाद अब आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है।
सड़क की जर्जर हालत: ग्रामीणों की परेशानी का सबब
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्मित चिराईपानी से गेरवानी तक की यह कच्ची सड़क अब पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। सड़क पर जगह-जगह गहरे गड्ढे और कीचड़युक्त दलदल ने ग्रामीणों का आवागमन असंभव-सा बना दिया है। खासकर चिराईपानी के स्कूली बच्चे इस सड़क की वजह से समय पर स्कूल नहीं पहुंच पा रहे, जिससे उनकी शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि एक ओर सरकार ‘शाला प्रवेश उत्सव’ जैसे कार्यक्रमों के जरिए शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जर्जर सड़क बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रही है।
इस सड़क की बदहाली का मुख्य कारण स्थानीय उद्योगों द्वारा भारी वाहनों का बेतरतीब आवागमन है। सुनील इस्पात एंड पॉवर लिमिटेड, वजरान प्रा. लिमिटेड, महालक्ष्मी कास्टिंग, श्री ओम रुपेश, श्री रीयल वायर, श्यामज्योति प्रा. लिमिटेड, राधे गोविंद केमिकल्स, आदि शक्ति सोप इंडस्ट्रीज और सालासर स्टील एंड पॉवर लिमिटेड जैसे उद्योगों के ट्रक और ट्रेलर दिन-रात इस सड़क पर दौड़ते हैं। इन भारी वाहनों की वजह से सड़क की हालत और खराब हो गई है, और बार-बार लगने वाले जाम ने ग्रामीणों का जीवन और दूभर कर दिया है।

उद्योगों की लापरवाही: बिना एन.ओ.सी. के सड़क का उपयोग
ग्रामीणों का आरोप है कि इन उद्योगों ने ग्राम पंचायत से भारी वाहनों के आवागमन के लिए अनिवार्य नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एन.ओ.सी.) नहीं लिया। नियमों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी सड़कों पर भारी वाहनों का उपयोग बिना पंचायत की अनुमति के नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, इन उद्योगों ने न केवल सड़क का दुरुपयोग किया, बल्कि इसकी मरम्मत और रखरखाव की जिम्मेदारी से भी पूरी तरह मुंह मोड़ लिया। ग्रामीणों का कहना है कि ये उद्योग केवल अपने मुनाफे पर ध्यान देते हैं और स्थानीय समुदाय की समस्याओं की उन्हें कोई परवाह नहीं है।
पिछले साल चिराईपानी में आयोजित जन-चौपाल में ग्रामीणों ने पक्की सड़क की मांग उठाई थी। उस समय उद्योग प्रतिनिधियों ने सड़क निर्माण और भारी वाहनों के लिए पार्किंग व्यवस्था का वादा किया था। लेकिन यह वादा कागजों तक सीमित रह गया, और उद्योगों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस लापरवाही ने ग्रामीणों के सब्र का बांध तोड़ दिया।
पंचायत का कड़ा रुख: आर्थिक नाकेबंदी शुरू
पंचायत भवन में आयोजित एक आपातकालीन बैठक में ग्राम पंचायत ने उद्योगों के प्रतिनिधियों को सड़क मरम्मत के लिए तीन दिन का अल्टीमेटम दिया था। पंचायत ने साफ शब्दों में चेतावनी दी थी कि अगर इस अवधि में मरम्मत कार्य शुरू नहीं हुआ, तो सड़क को अवरुद्ध कर आर्थिक नाकेबंदी की जाएगी। उद्योगों ने इस अल्टीमेटम को गंभीरता से नहीं लिया, जिसके बाद ग्राम पंचायत ने अपने वादे के मुताबिक आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी है। इस नाकेबंदी के तहत उद्योगों के वाहनों का सड़क पर आवागमन रोक दिया गया है, जिससे उद्योगों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
मुनाफे की होड़ में सामाजिक जिम्मेदारी की अनदेखी
सुनील इस्पात, सालासर स्टील और वजरान प्रा. लिमिटेड जैसे उद्योग इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लाभ कमा रहे हैं, लेकिन स्थानीय समुदाय के प्रति उनकी जिम्मेदारी शून्य है। इन उद्योगों की भारी मशीनरी और ट्रकों ने न केवल सड़क को नष्ट किया, बल्कि ग्रामीणों के जीवन को भी खतरे में डाल दिया है। स्कूल जाने वाले बच्चे, बुजुर्ग और मरीज इस सड़क पर चलने से डरते हैं, क्योंकि गड्ढों और कीचड़ ने इसे जोखिम भरा बना दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि ये उद्योग केवल अपने आर्थिक हितों की चिंता करते हैं और सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरी तरह नजरअंदाज करते हैं।
ग्रामीणों का आक्रोश: अब और बर्दाश्त नहीं
ग्रामीणों का गुस्सा अब उबाल पर है। उनका कहना है कि उद्योगों की लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी ने उनकी जिंदगी को नरक बना दिया है। एक ग्रामीण ने कहा, “हमारे बच्चों को स्कूल जाने में डर लगता है, मरीजों को अस्पताल पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। ये उद्योग हमारे गांव की सड़क को नष्ट कर रहे हैं, लेकिन इनका कोई जवाबदेही नहीं है।” ग्राम पंचायत की आर्थिक नाकेबंदी को ग्रामीणों ने एकजुट होकर समर्थन दिया है और इसे उद्योगों के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की शुरुआत बताया है।
आर्थिक नाकेबंदी शुरू होने के बाद अब सवाल यह है कि उद्योग प्रबंधन इस स्थिति से कैसे निपटेगा? क्या वे ग्राम पंचायत के अल्टीमेटम पर अमल करेंगे और सड़क मरम्मत का काम शुरू करेंगे, या यह मामला और तूल पकड़ेगा? नाकेबंदी से उद्योगों को होने वाला आर्थिक नुकसान क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वे पीछे नहीं हटेंगे।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
इस पूरे मामले में प्रशासन की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। ग्रामीणों का आरोप है कि उद्योगों को बिना एन.ओ.सी. के सड़क उपयोग की अनुमति देने में प्रशासन की मिलीभगत है। सरकार को चाहिए कि वह उद्योगों पर कड़ी निगरानी रखे और ग्राम पंचायत की सहमति के बिना किसी भी गतिविधि की अनुमति न दे। साथ ही, सड़क की मरम्मत के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं, ताकि ग्रामीणों की परेशानियां कम हो सकें।
सामाजिक जिम्मेदारी और टिकाऊ विकास की जरूरत
चिराईपानी से गेरवानी तक की जर्जर सड़क और उद्योगों की लापरवाही का यह मामला केवल एक सड़क की कहानी नहीं है, बल्कि यह उद्योगों और स्थानीय समुदाय के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। यह समय है कि उद्योग अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझें और सड़क निर्माण में सक्रिय योगदान दें। साथ ही, सरकार और प्रशासन को भी ग्रामीणों की सुविधा और बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। यदि इस समस्या का जल्द समाधान नहीं हुआ, तो ग्राम पंचायत लाखा की आर्थिक नाकेबंदी एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है, जो न केवल उद्योगों, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
आने वाले दिन इस मामले में निर्णायक साबित होंगे। ग्रामीणों की एकता और उनके हक की लड़ाई निश्चित रूप से इस समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना सकती है।