छत्तीसगढ़ में मनरेगा कर्मियों की तंगी: “डबल इंजन” की एवरेज गड़बड़, तीन महीने से वेतन अटका
— विशेष रिपोर्ट
सम्पादक अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायपुर, जून 2025: छत्तीसगढ़ के 12,000 से अधिक मनरेगा कर्मचारी बीते तीन महीनों से वेतन के लिए टकटकी लगाए बैठे हैं। मार्च, अप्रैल और मई की तनख्वाह अब तक नहीं मिली, लेकिन काम का पहाड़ जस का तस लादा जा रहा है। ऊपर से प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन और अन्य योजनाओं की फाइलें भी उनकी मेज पर आकर जम रही हैं — शायद सरकार को लगता है कि मनरेगा कर्मचारी नहीं, सुपरमैन हों!
“डबल इंजन सरकार” की गाड़ी यहां वित्तीय संकट की ऐसी दलदल में फंसी है कि इंजन तो छोड़िए, एवरेज तक संभाले नहीं संभल रही। बजट का पेट तो खाली है, लेकिन घोषणाओं का पेट भरपूर।
पैसे नहीं, पर उम्मीदें बेहिसाब
गांव की सड़कों से लेकर पंचायत की योजनाओं तक, जिन लोगों की मेहनत दिखाई देती है — वे खुद बच्चों की फीस, माता-पिता की दवाइयां और रोजमर्रा की दाल-चावल का खर्च उठाने में असमर्थ हैं।
मनरेगा महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह क्षत्री कहते हैं,
> “30 की उम्र में सेवा शुरू की थी, अब पचास में पहुंच चुके हैं, पर आज भी नौकरी का ठिकाना नहीं है। हमनें अपनी जवानी गांवों के विकास में खपा दी, लेकिन अब जेब में चवन्नी नहीं।”
क्या मांगे हैं कर्मियों की?
हां, मांगे हैं — और वो भी नाजायज नहीं।
1. मानव संसाधन नीति लागू हो जब तक नियमितिकरण न हो
2. हर महीने वेतन मिले, ताकि हर दिन जीने की जद्दोजहद न हो
3. पिछले तीन महीने की बकाया रकम तुरंत दी जाए
4. सिर्फ मनरेगा का काम ही कराया जाए, बाकी विभागों की जिम्मेदारी क्यों?
कमेटियां बनती हैं, रिपोर्टें नहीं आतीं
सरकार ने हां में हां मिलाते हुए एक कमेटी जरूर बनाई — कहा गया कि 15 दिन में रिपोर्ट आएगी। पर सरकार शायद यह भूल गई कि कमेटियों की गति बैलगाड़ी से भी धीमी होती है। महीनों बीत गए, न रिपोर्ट आई, न राहत।
इस बीच कर्मचारियों को हर रोज एक नई योजना में झोंका जा रहा है। लगता है, सरकारी तंत्र ने उन्हें “काम ज्यादा, दाम नहीं” नीति पर स्थायी रूप से रख दिया है।
इतिहास भी दोहरा रहा है खुद को
यह कहानी नई नहीं है। फरवरी 2024 में भी दो महीने का वेतन अटक गया था। तब उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा को “प्री-होली बोनस” की तरह हस्तक्षेप करना पड़ा था। लेकिन लगता है, इस बार इंजन ठंडा पड़ा है या फिर वित्तीय तेल खत्म हो चुका है।
अंत में: सिस्टम की सेंध या नीति की नीयत?
छत्तीसगढ़ में जहां मनरेगा ने गांवों को रोशन किया, वही इसके सिपाही आज अंधेरे में हैं। सरकार की आर्थिक नीति “मध्यम वर्ग के जूते और गरीब की जेब” पर आधारित लगती है — चमक दूर से दिखती है, लेकिन अंदर से फटी हुई होती है।
अब समय आ गया है कि “डबल इंजन” सरकार पहले अपने टायरों की हवा देखे और इंजन में डीज़ल डाले — वरना ये गाड़ी न गाँव में पहुँचेगी, न विकास में।
—
रिपोर्ट: स्वतंत्र पत्रकारिता डेस्क, रायपुर