क्या पैसों की वजह से राजनेता नही कर रहे कंपनी की जनसुनवाई का विरोध
रायगढ़ औद्योगिक प्रदूषण को लेकर जनप्रतिनिधियों और गणमान्य बुद्धि जीवियों की चुप्पी समझ से परे …
प्रदूषण को लेकर हर किसी की जुबान हम अगली पीढ़ी को क्या जवाब देंगे … आवाज उठाने नहीं आता कोई सामने … नवनीत जगतरामका ने अपने लेख में कहीं है बड़ी बात …
रायगढ़ के कुछ नेताओं को हमने बहुत बार देखा है कि ओ कंपनियों के जनसुनवाई का विरोध इस बात पर करते थे कि हमारे रायगढ़ में प्रदूषण अत्यधिक है यो फिर क्या अब प्रदूषण सामान्य है जो यह नेता अपने घर मे बैठ गए है कुछ लोग तो यह भी आरोप लगा रहे है कि ए नेता पहले अपना विरोध इसलिए करते थे कि उनकी पहचान बन जाए और जब पहचान बन गई तब कमीशन घर पहुच जाता है इसलिए अब विरोध की बात शायद भूल ही गए है।
रायगढ़ । शहर में जब भी प्रदूषण की बात चलती है तो हर किसी की जुबान पर यही होता है कि अंधाधुंध औद्योगिक विकास की वजह से जिले में औद्योगिक प्रदूषण तेजी से बढ़ा है जल जंगल जमीन के साथ नाना प्रकार की बीमारियों ने लोगों को अपनी चपेट में लेते जा रहा है। इस पर रोक लगनी चाहिए अन्यथा हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब देंगे हमारी पीढ़ी हमे माफ नहीं करेगी आदि आदि सवाल तो खड़े किए जाते हैं लेकिन जब आवाज उठाने की बारी आती है तो कोई भी सामने नहीं आता है। प्रदूषण को लेकर नवनीत जगतरामका के द्वारा सोसल मीडिया में “बेजुबान रायगढ़िए” शीर्षक से रायगढ़ वासियों को जगाने का काम किया है और उस लेख में प्रदूषण को लेकर अपनी चिंताओं को पिरोया है। और बंद जुबान को खोलने इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह डाला है।
खास बात तो ये है कि जब चुनावी समर होता है तो दोनों प्रमुख दल भाजपा कांग्रेस उद्योगों के प्रदूषण पर हुंकार भरते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब भूल जाते हैं। जिले में जिस तरह से उद्योगों का विकास हुआ है उस लिहाज से यदि धरातलीय इंफ्रा स्ट्रक्चर भी तैयार किया जाता तो बात कुछ और होती। वास्तविकता में यदि जिले में स्थापित उद्योगों की सही तरीके से जांच हो जाए तो गिनती के उद्योगों को छोड़ दिया जाए तो सारे के सारे उद्योगों में ताला लग जाए।
शहर के वरिष्ठ नागरिक इस्पात टाइम्स के पूर्व संपादक
नवनीत जगतरामका ने अपने लेख में एक बहुत दर्द भरी लाइन लिखी है वो है .. “अधिकारी और राजनेताओं के साथ साथ रायगढ़ वासी प्रादेशिक संस्कृति की फटी चीरी गठरी को अपने जर्जर कांधों पर उठाए चिंघाड़ चिंघाड़ के अपनी व्यथा कथा कहना चाहता है पर मजबूर और बेबस है कुछ भी कह नही पा रहा है, हमारे रायगढ़ की जुबान को लकवा मार गया है सब के सब बेजुबान हो गए है। वैसे ही हमारे शासक प्रशासक राजनेता गूंगे बहरे और कोंदे हो चुके है और रहा सहा शोषित पीड़ित रायगढ़िया भी बेजुबान हो गया है।”
नवनीत जगतरामका ने आगे यह भी लिखा है कि “जिस दिन मेरे बेजुबान रायगढ़ में कोई एक तलवार की धार सी सच्चाई की ईमानदार जुबान बोलने लगेगी उसके पीछे पीछे पूरा रायगढ़ बोलने लगेगा और निश्चय ही अपने वाजिब हक को इन हुक्मरानों को देने को मजबूर कर देगा।”
चुनाव के दौरान रायगढ़ के जहरीली आबोहवा को लेकर बात तो की जाती है किंतु आज कोई भी राजनीतिक दल के नेता इस संबंध में बोलने से कतरा रहा है चाहे वह भाजपा की तरफ से हो या कांग्रेस की तरफ से, अपने आप को जनप्रतिनिधि कहलाने वाले नेताओं की चुप्पी भी समझ से परे, हालाकि यह तो सब जानते है बहुत कुछ बातें महज चुनावी जुमला होती है और जीत जाने के बाद उसे भूल जाते हैं। विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी रायगढ़ के लिए कुछ बोलने से कतरा रही है।
क्या वास्तव में रायगढ़ की जनता की जुबान बेअवाज हो गई है यह देखना होगा कि रायगढ़ को भयावह प्रदूषण की मार से बचाने के लिए कोई आवाज उठती है या बस यूं ही सब कुछ चलता रहेगा। और जो पत्रकार लिखेगा उसे कह दिया जाएगा की उसे मिला नहीं इसलिए लिख रहा है।