NTPC में फ्लाई एश का ‘छिपा खेल’: GPS ट्रैकिंग की अनदेखी, लोकल सिंडीकेट की साजिश और पर्यावरण का संकट

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ (छत्तीसगढ़), 14 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में स्थित NTPC लारा सुपर थर्मल पावर प्लांट की फ्लाई एश परिवहन व्यवस्था एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में है। कुछ महीनों की सतर्कता और प्रशासनिक सख्ती के बाद, पुरानी बीमारियां नए रूप में लौट आई हैं—अवैध डंपिंग, फर्जी दस्तावेज और एक संगठित सिंडीकेट जो अब लोकल ट्रांसपोर्टरों के हाथों में है। यह मामला महज एक कॉन्ट्रैक्ट की गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक बड़े पर्यावरणीय और आर्थिक घोटाले की ओर इशारा करता है, जहां करोड़ों रुपये का खेल पर्यावरण की कीमत पर खेला जा रहा है। NTPC जैसे सार्वजनिक उपक्रम की छवि पर यह दाग न केवल प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका को भी खतरे में डाल रहा है।
GPS की अनदेखी: अवैध डंपिंग का नया तरीका
फ्लाई एश, जो कोयला आधारित पावर प्लांट्स का एक प्रमुख उप-उत्पाद है, को NTPC लारा से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के प्रोजेक्ट्स में उपयोग के लिए परिवहन किया जाना चाहिए। यह न केवल पर्यावरण संरक्षण के नियमों का हिस्सा है, बल्कि फ्लाई एश के उपयोगी पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने का माध्यम भी। हालांकि, जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। सूत्रों के अनुसार, कई ट्रक ऑपरेटर परिवहन के दौरान अपने वाहनों से GPS डिवाइस को जानबूझकर हटा देते हैं, ताकि उनकी वास्तविक लोकेशन ट्रैक न हो सके। इसके बाद, ये ट्रक निर्धारित साइट्स की बजाय आसपास के खेतों, खाली प्लॉट्स या ग्रामीण इलाकों में एश को डंप कर लौट आते हैं।
यह प्रक्रिया इतनी सुव्यवस्थित है कि एक ही ट्रक दिन में दो या तीन ट्रिप्स पूरा कर लेता है, जबकि फर्जी डिलीवरी रिपोर्ट्स और चालान से पूरी व्यवस्था को वैध दिखाया जाता है। स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि ऐसे डंपिंग स्पॉट्स अब आम हो गए हैं, जहां फ्लाई एश की परतें मिट्टी को प्रदूषित कर रही हैं। यह समस्या नई नहीं है; अप्रैल 2024 में छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (CECB) ने NTPC लारा पर फ्लाई एश के अवैध परिवहन और डंपिंग के लिए 30.90 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था लेकिन लगता है कि जुर्माने की स्याही सूखी नहीं कि सिस्टम दोबारा सक्रिय हो गया।
लोकल ट्रांसपोर्टरों का सिंडीकेट: बड़े ठेकेदारों पर दबाव
NTPC ने फ्लाई एश परिवहन का ठेका भले ही बड़े कॉन्ट्रैक्टरों को सौंपा हो, लेकिन असली कमान अब लोकल ट्रांसपोर्टरों के एक संगठित गिरोह के हाथों में है। इन ट्रांसपोर्टरों ने प्रति टन कमीशन की दरें तय कर एक नया सिंडीकेट गठित किया है, जो प्लांट से एश की लोडिंग से लेकर फर्जी बिलिंग तक सब कुछ नियंत्रित करता है। सूत्र बताते हैं कि ये लोकल ऑपरेटर ठेका कंपनियों पर दबाव डालकर अपने वाहनों को प्राथमिकता देते हैं, और कई मामलों में बड़ी कंपनियां महज नाममात्र की भूमिका निभाती नजर आती हैं।
यह सिंडीकेट इतना शक्तिशाली हो चुका है कि प्लांट गेट से निकलने वाली गाड़ियां उनके इशारों पर चलती हैं। एक अनुमान के मुताबिक, यह ‘फ्लाई एश माफिया’ अब करोड़ों रुपये का कारोबार बन चुका है, जहां अवैध डंपिंग से बचने वाली लागत सीधे इनके जेब में जाती है। जून 2024 में तेलंगाना में NTPC की फ्लाई एश परिवहन में इसी तरह की अनियमितताओं का मामला सामने आया था, जहां राजनीतिक कनेक्शन्स का आरोप लगा छत्तीसगढ़ में भी, क्या यह सिंडीकेट स्थानीय प्रभावशाली लोगों के समर्थन से चल रहा है? यह सवाल जांच एजेंसियों के लिए एक चुनौती है।
पर्यावरणीय क्षति: मिट्टी, पानी और स्वास्थ्य पर खतरा
फ्लाई एश की अवैध डंपिंग का असर सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय भी गंभीर है। खेतों और खुले इलाकों में फैली राख मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर रही है, जल स्रोतों को प्रदूषित कर रही है और स्थानीय निवासियों में सांस की बीमारियां बढ़ा रही है। NTPC लारा जैसे प्लांट्स से निकलने वाली फ्लाई एश में भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, लेड और मरकरी हो सकती हैं, जो लंबे समय में कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के दिशानिर्देशों के अनुसार, फ्लाई एश का 100% उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए, लेकिन यहां की स्थिति विपरीत है। 2024-25 में NTPC ने फ्लाई एश के उपयोग में प्रगति की बात की, जहां 32% एश रोड कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल हुई लेकिन लारा प्लांट में हो रही गड़बड़ियां इस लक्ष्य को खोखला साबित कर रही हैं। स्थानीय किसान और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि डंपिंग से उनके खेत बंजर हो रहे हैं, और बारिश में राख बहकर नदियों में पहुंच रही है।
प्रशासन से सख्ती की मांग: क्या होगा ‘माफिया’ का अंत?
स्थानीय सामाजिक संगठनों, जैसे ट्रिशा ग्लोबल फाउंडेशन, और नागरिकों ने जिला प्रशासन, पर्यावरण विभाग और NTPC प्रबंधन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि अगर यह खेल नहीं रोका गया, तो NTPC की साख पर बट्टा लगेगा और क्षेत्र का पर्यावरण अपूरणीय क्षति झेलेगा। कुछ महीने पहले की कार्रवाई, जहां कुछ वाहनों पर जुर्माना लगा था, अब अपर्याप्त लग रही है।
जानकारों का मानना है कि समस्या की जड़ में निगरानी की कमी है। GPS ट्रैकिंग को अनिवार्य बनाने के अलावा, रियल-टाइम मॉनिटरिंग, ड्रोन सर्वे और स्वतंत्र ऑडिट की जरूरत है। रेल मंत्रालय और NTPC की हालिया कॉन्फ्रेंस में फ्लाई एश मैनेजमेंट पर चर्चा हुई लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की कमी साफ दिख रही है। क्या प्रशासन इस बार सिंडीकेट को जड़ से उखाड़ फेंकेगा, या यह खेल नए चेहरों के साथ जारी रहेगा? आने वाले दिन इसकी परीक्षा लेंगे।
यह मामला NTPC जैसे संस्थानों के लिए एक सबक है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के बिना, कोई भी सिस्टम भ्रष्टाचार का शिकार हो सकता है। स्थानीय समुदाय अब जागरूक है और कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहा है।