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अंबाधार में गणेश उत्सव की सांस्कृतिक धूम: नाटक प्रतियोगिता ने बांधे ग्रामीणों के दिल, जिला अध्यक्ष ने दी एकजुटता की मिसाल

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम पत्थलगांव (जशपुर), 14 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले जशपुर के ग्रामीण इलाकों में गणेश उत्सव की परंपरा अब केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रह गई है। यह एक जीवंत सांस्कृतिक मंच बन चुकी है, जहां युवा प्रतिभाएं सामाजिक संदेशों के साथ परंपराओं को नई ऊर्जा दे रही हैं। इस वर्ष भी ग्राम पंचायत पुसरा के अंबाधार में सार्वजनिक गणेश पूजा समिति 2025 द्वारा आयोजित नाटक प्रतियोगिता ने सैकड़ों ग्रामीणों को एक मंच पर ला खड़ा किया। यह आयोजन, जो प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी भव्य रूप से संपन्न हुआ, न केवल भक्ति का संगम था, बल्कि सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक भी साबित हुआ।

कार्यक्रम का शुभारंभ भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की परंपरा के अनुरूप हुआ, जब गणेश भगवान की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई। लेकिन असली आकर्षण रहीं मंचीय प्रस्तुतियां, जहां स्थानीय कलाकारों ने नाटकों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा के महत्व और आदिवासी संस्कृति की झलकियां पेश कीं। दर्शकों के बीच बैठे ग्रामीणों ने तालियों की गड़गड़ाहट से इन प्रस्तुतियों का स्वागत किया, जो साफ दर्शाता है कि ग्रामीण भारत में सांस्कृतिक आयोजन अब मनोरंजन से कहीं आगे, सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन चुके हैं। आयोजन समिति के अनुसार, प्रतियोगिता में 10 से अधिक नाटक दलों ने भाग लिया, जिनमें युवाओं की संख्या प्रमुख थी। विजेताओं को आकर्षक नगद पुरस्कारों से सम्मानित किया गया—प्रथम पुरस्कार के लिए 41,151 रुपये और द्वितीय के लिए 31,151 रुपये—जो न केवल आर्थिक प्रोत्साहन था, बल्कि उनकी कला को मान्यता देने का प्रयास भी।

मुख्य अतिथि के रूप में जिला पंचायत जशपुर के यशस्वी अध्यक्ष श्री सालिक साय की उपस्थिति ने आयोजन को नई ऊंचाई प्रदान की। उनके साथ पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष श्री सुनील गुप्ता भी मंच पर विराजमान थे। श्री सालिक साय ने अपने संबोधन में कहा, “गांवों में इस तरह के सांस्कृतिक आयोजन समाज को एकजुट करने का सबसे मजबूत माध्यम हैं। ये न केवल युवाओं की प्रतिभा को निखारते हैं, बल्कि हमारी परंपराओं के प्रति सम्मान की भावना को भी मजबूत करते हैं। आज के दौर में, जब शहरीकरण ग्रामीण संस्कृति को निगलने की कोशिश कर रहा है, ऐसे कार्यक्रम हमारी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।” उन्होंने समिति के सभी सदस्यों और ग्रामीणों को सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई दी तथा इस परंपरा को आने वाले वर्षों में और मजबूत बनाने का आह्वान किया। श्री सुनील गुप्ता ने भी युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि साहित्य और कला के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उठाना ही वास्तविक सेवा है।

इस अवसर पर सरपंच सुनीता बाई और उप सरपंच बालेश्वर चक्रेश की मौजूदगी ने स्थानीय स्वशासन की भागीदारी को रेखांकित किया। बड़ी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित रहे, जिन्होंने आयोजन को एकता, संस्कृति और भक्ति का अनुपम संगम करार दिया। एक बुजुर्ग ग्रामीण, रामलाल साय (नाम परिवर्तित), ने बताया, “यह नाटक प्रतियोगिता हमें अपनी कहानियां खुद लिखने का मौका देती है। यहां गणेश भगवान की पूजा के साथ-साथ हमारी समस्याओं पर भी चर्चा होती है।” समिति के प्रयासों की सराहना करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि ऐसे आयोजन ग्रामीण युवाओं को नशे और बेरोजगारी जैसी बुराइयों से दूर रखने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

अंबाधार, जो जशपुर जिले के पत्थलगांव तहसील में स्थित एक शांतिपूर्ण आदिवासी गांव है, ऐसी परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां की मिट्टी में भक्ति और कला का ऐसा मिश्रण है कि प्रत्येक वर्ष गणेश उत्सव हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। समिति के अध्यक्ष बीरबल राम ने बताया कि इस वर्ष का आयोजन विशेष रूप से युवा-केंद्रित रखा गया था, जिसमें 50 से अधिक युवा सदस्यों ने सक्रिय भूमिका निभाई। समिति में उपाध्यक्ष परबल राम, सचिव घनश्याम साय, कोषाध्यक्ष परमेश्वर चक्रेश, सह कोषाध्यक्ष शिलांद्रा राम, सह सचिव आनंद राम के अलावा वरिष्ठ कार्यकर्ता मालू साय, विश्वनाथ, रामसिकंदर राम, लोहर साय, जयशंकर राम, राजेंद्र चौहान, बीसी राम, अजर साय, रामप्रसाद साय, मुना चौहान, मानकेश्वर साय शामिल रहे। व्यवस्थापक विजय कुमार, गणेश्वर साय, जयकुमार राम, धर्मेंद्र राम, सलीम राम, डायमंड साय, तरणीचरण साय, दुष्यंत, गोस्वामी साय जैसे सदस्यों ने पीछे से समन्वय का कार्य संभाला। युवा कार्यकारिणी में समत, उमाशंकर, परेश्वर, तीजू, रामदेव साय, रोहित, कुशल, कौशल, दीनानाथ, दीपक कुमार, बुधनाथ, परमानंद, योगेश्वर, दिलेश्वर, पंकज, अतुल, तुलसी, खगेश्वर, देवाशिस, जगनाथ, नंदकिशोर, राजकिशोर, शिवानंद, हरिश, विवेक, अमित, अंकित, मिलन, गोलू, विनय, करण, डेविड, खेतेश्वर, यज्ञ, कार्तिक, पुरंदर, भजवंत, मायक, संदीप, प्रदीप, विशाल जैसे उत्साही युवा थे। कार्यकारिणी सदस्यों में समरत, हीराधर, आनंद, मानेश्वर, परमानंद, गुठाला, बिलंदर, मानबोध मसिल, रामेश्वर, उमेश, नरेश, महेश, लीलंबर, नरेश, धरम, राजेंद्र, अनुप, अर्जुन, सीखन, लिखन, मंगरू की सक्रियता सराहनीय रही।

यह आयोजन जशपुर जैसे आदिवासी जिले में सांस्कृतिक पुनरुत्थान की एक मिसाल है, जहां सरकारी योजनाओं के साथ-साथ सामुदायिक प्रयास ग्रामीण विकास को गति दे रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कार्यक्रम न केवल पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि स्थानीय कलाकारों को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का माध्यम भी बन सकते हैं। समिति ने आगामी वर्षों में इस प्रतियोगिता को और विस्तार देने की योजना बनाई है, जिसमें डिजिटल माध्यमों से लाइव प्रसारण शामिल हो सकता है। ग्रामीणों की अपेक्षा है कि जिला प्रशासन ऐसे आयोजनों को और प्रोत्साहन दे, ताकि अंबाधार की यह सांस्कृतिक धरोहर पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहे।

गणेश उत्सव का यह अध्याय समाप्त होते हुए भी एक संदेश छोड़ गया—संस्कृति की जड़ें मजबूत हों, तो समाज अटल रहता है।

समाचार सहयोगी प्रेम अग्रवाल की रिपोर्ट

Amar Chouhan

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