धर्मस्थल के पीछे जुआ: झगरपुर में पुलिस संरक्षा में संचालित फड़ पर सवाल (CM..

मुख्यमंत्री उद्घाटन के बाद लैलूंगा में मंदिर के पास चला जुआ
गेम (लकी no. 7)
एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम लैलूंगा/रायगढ़: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के लैलूंगा के झगरपुर रामचंडी मंदिर में भव्य प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के साथ ही एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने प्रशासनिक नैतिकता और सार्वजनिक आस्था दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. मंदिर परिसर के पास खुलेआम जुए की फड़ सजने की जानकारी से क्षेत्र में आक्रोश बढ़ गया है, जबकि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मौके पर पुलिस ड्यूटी के बावजूद यह कृत्य चल रहा था और कथित रूप से कुछ पुलिस कर्मी स्वयं खेल का हिस्सा बन गए.
घटना का संपूर्ण संदर्भ कार्यक्रम का समापन होते ही मंदिर परिसर के पीछे खाली जगह पर जुआ फड़ का आयोजन हुआ, जहां स्थानीय ग्रामीणों से लेकर नाबालिग बच्चों तक ने हिस्सा लिया. घटना की सूचना मिलने पर भीड़ के बीच मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका पर सवाल उठे. कई लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने न सिर्फ रोकथाम नहीं की, बल्कि खेल में भागीदारी भी जताई. स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि मुख्यमंत्री के उद्घाटन कार्यक्रम के समय मंदिर क्षेत्र में जुआ संचालित हो रहा था, तो यह प्रशासन की लाचारी नहीं, बल्कि मिलीभगत का संकेत है. चर्चा यह भी है कि लैलूंगा थाना क्षेत्र के कुछ जवान इतने करीब होने के बावजूद कार्रवाई से दूर रहे, या फिर जुआ संचालकों को संरक्षण दिया गया.

प्रशासनिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं ग्रामीण और स्थानीय नेताओं ने उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. उनका मानना है कि दोषी पुलिस कर्मियों और जुआ संचालकों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराने का अवसर नहीं मिल सके. आक्रोशित जनता पूछ रही है कि धार्मिक आयोजनों के समय आस्था के नाम पर सचेत प्रशासनिक सीमाएं कहां होंती हैं और क्या यह चुप्पी डर की वजह से है या साझेदारी की पृष्ठभूमि में है. जनप्रियता और नैतिकता पर प्रश्नचिह्न मुख्यमंत्री के उद्घाटन के अवसर पर किए गए आस्तित्वपूर्ण धार्मिक आयोजन के ठीक पीछे जुए का यह खेल प्रशासन की नैतिक जवाबदेही पर बड़ा हमला है. मंदिर के नाम पर आस्था का लाभ उठाने वाले अधिकारी अब जुए के फड़ के सामने आंखें मूँद लेते हैं, तो यह सामाजिक विश्वास को गहरा नुकसान पहुंचाता है.

आगामी कदम और अपेक्षित कार्रवाई उच्चस्तरीय जांच आयुक्त/उच्चधिकारी के स्तर पर होनी चाहिए ताकि सत्यापित रूप से कौन-कौन लोग इनवॉल्यूक्रेटेड हैं और पुलिस की भूमिका क्या रही. स्थानीय प्रशासन को स्पष्ट समयरेखा के साथ जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए और इस तरह के आयोजन पर कड़ी रोकथाम और दंडात्मक कार्रवाई लागू करनी चाहिए. जन-सामान्य के विश्वास के लिए मंदिर परिसर के आसपास सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था मजबूत करने के उपाय तुरंत अपनाने चाहिए. समीपस्थ सवाल क्या स्थानीय पुलिस विभाग इस प्रकरण पर अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए स्वतंत्र जांच पैनल्स स्थापित करेगा?अपराध और आस्था के इस संवेदनशील मिश्रण में प्रशासन कितनी ठोस रणनीति बनाकर भविष्य में ऐसे घटनाक्रमों को रोक पाएगा?
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान की रिपोर्ट