एग्रीस्टेक पोर्टल की खामियों से जूझते छत्तीसगढ़ के किसान: कांग्रेस का धरना-प्रदर्शन, 3286 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीद की मांग
एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़/पुसौर, 14 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के डिजिटल कृषि पहल ‘एग्रीस्टेक पोर्टल’ पर किसानों की निराशा का सैलाब उफान पर है। प्रदेश भर में 65 प्रतिशत से अधिक किसानों का पंजीकरण अधूरा रहने के कारण वे समर्थन मूल्य पर धान बिक्री जैसे बुनियादी अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इस डिजिटल ‘ब्लैकआउट‘ के खिलाफ कांग्रेस ने कमर कस ली है। रायगढ़ जिले के पुसौर तहसील में बुधवार को एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन का ऐलान किया गया है, जहां मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा। यह आंदोलन न केवल पोर्टल की तकनीकी खामियों को उजागर करेगा, बल्कि 2025-26 की विपणन वर्ष में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 3286 रुपये प्रति क्विंटल तय करने की मांग भी करेगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के निर्देश पर आयोजित इस कार्यक्रम की कमान संभालेंगे जिला किसान कांग्रेस अध्यक्ष देवानंद पटेल। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, किसान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक मिश्रा और संगठन महामंत्री अकील हुसैन जैसे दिग्गजों के मार्गदर्शन में यह धरना किसान हितों की रक्षा का एक मजबूत संकल्प बनकर उभरा है। बैज ने हाल ही में रायपुर में आयोजित एक प्रेस वार्ता में इसी मुद्दे पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया था, जहां उन्होंने एमएसपी में 2024-25 के 117 रुपये और 2025-26 के 69 रुपये की बढ़ोतरी को जोड़कर 3100 रुपये के आधार मूल्य पर कुल 3286 रुपये की खरीद दर का ऐलान तत्काल करने की मांग की थी। “किसान का खून-पसीना डिजिटल दीवारों के पीछे कैद नहीं हो सकता,” बैज ने तल्खी से कहा था, जो अब सड़कों पर उतरने को तैयार है।
एग्रीस्टेक पोर्टल: डिजिटल क्रांति या किसानों की मजबूरी?
एग्रीस्टेक पोर्टल, केंद्र सरकार की ‘अग्रिस्टैक‘ पहल का हिस्सा, किसानों के लिए एक डिजिटल पहचान पत्र की तरह डिजाइन किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों की पहचान, भूमि रिकॉर्ड, फसल बीमा और सरकारी योजनाओं तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना था। छत्तीसगढ़ में यह पोर्टल 2024 के अंत से सक्रिय हुआ, लेकिन जल्द ही इसकी खामियां सामने आ गईं। लॉगिन त्रुटियां, भूमि रिकॉर्ड में असंगतियां, सब्सिडी भुगतान में देरी और सर्वर क्रैश जैसी समस्याओं ने हजारों किसानों को परेशान कर दिया। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के करीब 25 लाख से अधिक किसानों में से महज 35 प्रतिशत ही सफलतापूर्वक पंजीकृत हो पाए हैं। बाकी 65 प्रतिशत—जिनमें छोटे और सीमांत किसान बहुसंख्यक हैं—अपनी फसल बेचने के लिए अब खुले बाजार पर निर्भर हैं, जहां भाव समर्थन मूल्य से 20-30 प्रतिशत नीचे लुढ़क जाते हैं।
एक स्थानीय किसान, रामेश्वर साहू (नाम परिवर्तित), जो पुसौर के बोरोडीपा गांव में धान की खेती करते हैं, ने बताया, “पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के लिए मोबाइल और आधार लिंक करने की कोशिश की, लेकिन हर बार ‘सर्वर एरर‘। न अब धान बेच पा रहा हूं, न बीमा क्लेम। सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है, लेकिन हमारे गांव में नेटवर्क ही नहीं पहुंचता।” ऐसे अनगिनत किसान अब कांग्रेस के बुलावे पर सड़क उतरने को तैयार हैं। विशेष रूप से, जिन किसानों का पंजीकरण अटका हुआ है, उन्हें विशेष अपील की गई है कि वे धरने में हिस्सा लें और अपनी आवाज बुलंद करें।
धरना का मंच: एकजुटता का संदेश
कार्यक्रम का विवरण सरल लेकिन प्रभावशाली है। 15 अक्टूबर 2025, बुधवार को दोपहर 1 बजे बोरोडीपा, पुसौर में धरना शुरू होगा। तहसीलदार को सौंपा जाने वाला ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम होगा, जिसमें दो प्रमुख मांगें स्पष्ट हैं: एक, एग्रीस्टेक पोर्टल की सभी खामियों को तत्काल दूर किया जाए और पुराने पंजीकृत किसानों को ‘कैरी फॉरवर्ड‘ कर नए सिस्टम में शामिल किया जाए; दो, 2025-26 विपणन वर्ष में धान खरीद 3286 रुपये प्रति क्विंटल पर शुरू हो। यह मांग न केवल किसानों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगी, जहां धान छत्तीसगढ़ की 70 प्रतिशत कृषि आय का आधार है।
देवानंद पटेल ने जारी अपील में सभी हितधारकों को आमंत्रित किया है। जिला कांग्रेस कमेटी के समस्त पदाधिकारी, युवक कांग्रेस, महिला कांग्रेस, इंटक, सेवादल, एनएसयूआई, अनुसूचित जाति-जनजाति कांग्रेस, पिछड़ा वर्ग कांग्रेस, राजीव गांधी पंचायत राज संगठन—सभी प्रकोष्ठों के नेता शामिल होंगे। जिला पंचायत सदस्य, पूर्व सरपंच, नगर पंचायत प्रतिनिधि, पार्षद, राजीव गांधी युवा मितान क्लब के पदाधिकारी और मंडल-सेक्टर प्रभारी—हर स्तर का कार्यकर्ता इस धरने को सफल बनाने के लिए बुलाया गया है। पटेल की अपील भावुक है: “किसान भाइयों, आपकी गरिमामय उपस्थिति ही इस आंदोलन की ताकत बनेगी। जय जवान, जय किसान!”
राजनीतिक संदर्भ: कांग्रेस का सियासी दांव
यह धरना केवल किसान मुद्दे तक सीमित नहीं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की यह रणनीति भाजपा सरकार पर लगातार दबाव बनाने की कड़ी है। हाल के महीनों में कांग्रेस ने बिजली बिल, सड़क हादसे और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर सड़क पर उतरकर सरकार को घेरा है। जुलाई 2025 में चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी के बाद आर्थिक नाकाबंदी का ऐलान, मार्च में 13,000 करोड़ के कथित धान घोटाले पर वॉकआउट—ये सभी घटनाएं बताती हैं कि विपक्ष की नब्ज अब किसानों पर टिकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2028 के विधानसभा चुनावों से पहले यह आंदोलन कांग्रेस को ग्रामीण वोट बैंक मजबूत करने का मौका देगा।
सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार, पोर्टल की खामियों पर काम चल रहा है। फिर भी, किसानों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। यदि धरना सफल रहा, तो यह न केवल पुसौर तक सीमित रहेगा, बल्कि पूरे प्रदेश में लहर पैदा कर सकता है।
किसान आंदोलन की यह नई लहर छत्तीसगढ़ की राजनीति को नया मोड़ देगी या नहीं, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन एक बात साफ है—डिजिटल सपनों के बीच किसानों की स्याही अभी सूखी नहीं है। वे सड़क पर हैं, और उनकी आवाज गूंज रही है।