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रायगढ़ में जिंदल कंपनी के खिलाफ किसानों का धरना: मुआवजे की मांग में देरी से उबाल

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, छत्तीसगढ़: आदिवासी बहुल रायगढ़ जिले के तमनार तहसील में स्थित ग्राम पंचायत गारें के किसान एक बार फिर सड़कों पर उतर आए हैं। जिंदल कंपनी द्वारा संचालित गारें 4/6 कोयला खदान परियोजना के तहत सड़क चौड़ीकरण और किसानों के खेतों में अतिरिक्त मिट्टी डालने से उत्पन्न नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर ये किसान कंपनी के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। यह घटना न केवल स्थानीय किसानों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों का परिणाम है, बल्कि औद्योगिक विकास और ग्रामीण आजीविका के बीच बढ़ते संघर्ष की एक और कड़ी भी दर्शाती है।

इस विरोध प्रदर्शन की जड़ें गारे-पेल्मा II और IV/6 कोयला ब्लॉक में खोदाई से जुड़ी हैं, जहां जिंदल पावर लिमिटेड ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये की लागत से कोयला खनन परियोजना शुरू की है। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि कंपनी के कार्यों से उनकी कृषि भूमि बर्बाद हो रही है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर ट्रकों और भारी मशीनरी के आवागमन से धूल और प्रदूषण बढ़ा है, जबकि खदानों से निकली अतिरिक्त मिट्टी को किसानों के खेतों में बिना अनुमति डाला जा रहा है, जिससे फसलें प्रभावित हो रही हैं। ग्रामीणों ने बताया कि इससे उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ा है, और कई परिवारों की आय आधी रह गई है।

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किसानों के अनुसार, उन्होंने इस मुद्दे पर कई बार जिला प्रशासन और कंपनी प्रबंधन से गुहार लगाई। शुरुआत में, जिंदल कंपनी ने एक सप्ताह के भीतर मुआवजा देने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब कंपनी आनाकानी कर रही है, और मुआवजे की राशि तय करने या वितरित करने में देरी हो रही है। एक स्थानीय किसान नेता, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा, “हमारी जमीनें छीन ली गईं, खेत बंजर हो रहे हैं, और कंपनी सिर्फ वादे कर रही है। हमारी मांग साफ है – उचित मुआवजा, पर्यावरण बहाली और रोजगार के अवसर।” यह धरना ऐसे समय में हो रहा है जब उच्च न्यायालय ने भी गारें 4/6 ब्लॉक के भूमि अधिग्रहण पर केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है, जो 2023 से चले आ रहे विवाद को और जटिल बनाता है।
इस क्षेत्र में कोयला खनन का इतिहास विवादों से भरा पड़ा है। 2013 में जिंदल की एक अन्य परियोजना के लिए सार्वजनिक सुनवाई में भी विरोध प्रदर्शन हुए थे, और राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इसे रद्द कर दिया था। उसके बाद से, स्थानीय आदिवासी समुदाय ‘कोल सत्याग्रह’ जैसे आंदोलनों के माध्यम से अपनी प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गारें गांव, जो तमनार ब्लॉक में स्थित है, मुख्य रूप से कृषि और वन उत्पादों पर निर्भर है। यहां के निवासी आरोप लगाते हैं कि कंपनी ने वन हानि और विस्थापन को नजरअंदाज किया है, जबकि सरकारी रिपोर्ट्स में 6,800 हेक्टेयर से अधिक भूमि प्रभावित होने का उल्लेख है।

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धरने में शामिल सैकड़ों किसान, महिलाएं और युवा हाथों में बैनर लिए नारे लगा रहे हैं। उन्होंने कंपनी के गेट को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे खदान की गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं। पुलिस प्रशासन ने स्थिति पर नजर रखी हुई है, लेकिन अभी तक कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। जिला कलेक्टर ने कहा कि वे दोनों पक्षों से बात कर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसान स्पष्ट हैं कि मुआवजा मिलने तक वे नहीं हटेंगे।

यह घटना छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास की चुनौतियों को उजागर करती है, जहां कोयला जैसे संसाधनों की खनन से आर्थिक लाभ तो होता है, लेकिन स्थानीय समुदायों की कीमत पर। अगर यह विवाद लंबा खिंचा, तो यह राज्य स्तर पर बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है, जैसा कि पहले JSW और अन्य कंपनियों के खिलाफ देखा गया है। जिंदल कंपनी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, वे मुआवजे की प्रक्रिया को तेज करने का दावा कर रहे हैं। इस बीच, किसानों का संघर्ष जारी है, जो एक बार फिर साबित करता है कि विकास की राह में न्याय की अनदेखी लंबे समय तक नहीं चल सकती।

Amar Chouhan

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