घरघोड़ा में भीम आर्मी का ऐतिहासिक आंदोलन: SDM कार्यालय पर तालाबंदी, अन्याय के खिलाफ उमड़ा जनसैलाब

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा, 11 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के घरघोड़ा में शुक्रवार, 10 अक्टूबर को एक ऐतिहासिक जनांदोलन ने प्रशासनिक गलियारों को हिलाकर रख दिया। भीम आर्मी भारत एकता मिशन छत्तीसगढ़ के बैनर तले सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) कार्यालय का घेराव कर तालाबंदी कर दी। बारिश की बूंदों और प्रतिकूल मौसम के बीच भी कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा नहीं पड़ा। “जय भीम, जय संविधान” और “समानता हमारा अधिकार है” के नारों से घरघोड़ा की सड़कें गूंज उठीं। यह आंदोलन न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक सशक्त संदेश बन गया।

भरत खंडेल प्रकरण: अन्याय की जड़ में प्रशासनिक लापरवाही
आंदोलन का केंद्र बिंदु था भरत खंडेल प्रकरण, जो अनुसूचित जाति के एक परिवार के साथ हुए कथित अन्याय का प्रतीक बन चुका है। जानकारी के अनुसार, इस परिवार का पचास वर्षों से बसा आशियाना प्रशासनिक लापरवाही और पक्षपातपूर्ण कार्रवाई के चलते ध्वस्त कर दिया गया। परिवार को न तो पुनर्वास का कोई प्रावधान मिला, न ही मुआवजे की राशि, और न ही उनकी शिकायतों की कोई सुनवाई हुई। इस घटना ने न केवल स्थानीय समुदाय को, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले संगठनों को आक्रोशित कर दिया।
भीम आर्मी ने इस अन्याय को संवैधानिक मूल्यों और समानता के अधिकार पर हमला मानते हुए, 10 अक्टूबर को घरघोड़ा में एक महा आंदोलन का आह्वान किया। यह आंदोलन छत्तीसगढ़ के सामाजिक आंदोलनों के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसमें रायगढ़, जशपुर, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा सहित आसपास के जिलों से सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए।

भीम आर्मी का जनसैलाब: नेतृत्व और एकजुटता का प्रदर्शन
इस आंदोलन का नेतृत्व भीम आर्मी के प्रदेश और जिला स्तर के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने किया। भईया दिनेश आज़ाद और भईया संजीत बर्मन के संयुक्त आयोजन ने इस आंदोलन को एक नई दिशा दी। प्रमुख नेताओं में राज कुमार जांगडे (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, भीम आर्मी छत्तीसगढ़), अमृत डहरिया (पूर्व जिला अध्यक्ष, बिलासपुर), रूपेश दिवाकर (पूर्व जिला उपाध्यक्ष, बिलासपुर), सूरजभान (पूर्व जिला अध्यक्ष, जशपुर), बसंत लहरे (वरिष्ठ पूर्व जिला उपाध्यक्ष, रायगढ़), कुसुम बघेल (पूर्व जिला उपाध्यक्ष, रायगढ़), गुलशन लहरे (पूर्व मीडिया प्रभारी, रायगढ़), सुनील सोनी (पूर्व जिला सचिव, रायगढ़), राहुल आज़ाद (जिला सचिव, जांजगीर-चांपा), जगमोहन खांडे (कार्यकारी सदस्य, चांपा इकाई), सम्पत कुर्रे (ब्लॉक उपाध्यक्ष, घरघोड़ा), प्रताप जोल्हे (पूर्व ब्लॉक उपाध्यक्ष, घरघोड़ा), सूरज लहरे (पूर्व प्रथम ब्लॉक अध्यक्ष, घरघोड़ा), अमृत खांडे (सक्रिय सदस्य, घरघोड़ा ब्लॉक), और जगत लाल खंडेल (सामाजिक कार्यकर्ता, घरघोड़ा) शामिल थे। इसके अतिरिक्त, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जिला पदाधिकारी और संत राम खूंटे (BDC छाल) ने भी आंदोलन को समर्थन देकर इसकी ताकत को और बढ़ाया।

बारिश में भी अडिग रहा हौसला
लगातार बारिश और खराब मौसम ने आंदोलनकारियों के सामने चुनौतियां खड़ी कीं, लेकिन उनका हौसला डिगा नहीं। SDM कार्यालय के बाहर घंटों तक धरना और नारेबाजी के बीच कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को बुलंद किया। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया था, ताकि किसी भी अप्रिय घटना से बचा जा सके। लेकिन आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा, जो भीम आर्मी की अनुशासित संगठन शक्ति को दर्शाता है।

मांगें: न्याय, मुआवजा और पुनर्वास
आंदोलनकारियों ने एक स्वर में अपनी मांगें रखीं: “भरत खंडेल प्रकरण में दोषी अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए, परिवार को उचित मुआवजा दिया जाए, और उनका पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए।” कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, उनका संघर्ष जारी रहेगा। यह आंदोलन न केवल एक परिवार के लिए, बल्कि समाज के उन सभी वर्गों के लिए था, जो प्रशासनिक अन्याय का शिकार होते हैं।

आंदोलन का प्रभाव: प्रशासन पर बढ़ता दबाव
यह आंदोलन न केवल घरघोड़ा, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में चर्चा का विषय बन गया है। भीम आर्मी की इस एकजुटता और ताकत ने प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आंदोलन न केवल भरत खंडेल के लिए, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक न्याय की लड़ाई का प्रतीक है।
आगे की राह
भीम आर्मी ने स्पष्ट किया है कि यह आंदोलन केवल एक शुरुआत है। यदि प्रशासन ने उनकी मांगों पर त्वरित कार्रवाई नहीं की, तो वे और बड़े स्तर पर आंदोलन को तेज करेंगे। यह घटना छत्तीसगढ़ के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जहां संवैधानिक मूल्यों और समानता की मांग को और बल मिलेगा।
घरघोड़ा का यह आंदोलन न केवल एक स्थानीय मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ले गया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि जब जनता एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ती है, तो कोई भी प्रशासनिक लापरवाही उनके सामने टिक नहीं सकती। “जय भीम” का नारा अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन की आवाज बन चुका है।