रायगढ़ में NTPC रेल प्रोजेक्ट का भू-अर्जन घोटाला: मूल नक्शे में छेड़छाड़ से लाखों का मुआवजा अपात्रों के हाथ, वास्तविक प्रभावित बेचारे!

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 5 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एनटीपीसी के महत्वाकांक्षी रेल लाइन प्रोजेक्ट के नाम पर भू-अर्जन की प्रक्रिया में व्याप्त कथित भ्रष्टाचार ने अब सतह पर आकर हिला दिया है। ग्रामीणों का आरोप है कि राजस्व विभाग के तत्कालीन पटवारी और राजस्व निरीक्षक (आरआई) ने मूल नक्शों में मनमाने ढंग से छेड़छाड़ की, जिसके चलते वास्तविक प्रभावितों को उनके हक का मुआवजा छीना गया और अपात्रों को करोड़ों की राशि थमा दी गई। यह मामला न केवल स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर करता है, बल्कि भू-अर्जन कानूनों की धज्जियां उड़ाने वाले सिस्टम की पोल भी खोलता है। पीड़ित परिवारों की बेबसी का आलम यह है कि जिला स्तर से लेकर वित्त मंत्री तक शिकायतें पहुंचीं, लेकिन जांच का नामोनिशान नहीं।
प्रोजेक्ट का पृष्ठभूमि: विकास के नाम पर किसानों का शोषण
एनटीपीसी का यह रेल लाइन प्रोजेक्ट तिलाईपाली कोयला खदान को लारा थर्मल पावर प्लांट से जोड़ने का है, जो 2014-15 में शुरू हुआ था। जिला मुख्यालय से सटे ग्राम जुर्डा में सैकड़ों एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया, लेकिन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत प्रभावितों को न केवल मुआवजा, बल्कि पुनर्वास और रोजगार जैसी सुविधाएं सुनिश्चित होनी थीं, लेकिन कागजों पर ही सब कुछ सीमित रह गया। हाल के खुलासों से पता चला है कि पटवारी और आरआई के गठजोड़ ने नक्शों में खसरा नंबरों की एंट्री बदल दी, जिससे असली मालिकों को दरकिनार कर दिया गया।
इस घोटाले का शिकार हुआ ग्रामीण चंद्रमा भोय का परिवार। चंद्रमा ने बताया कि उनके पिता अंकुर भोय की लगभग दो एकड़ भूमि (खसरा नंबर 293/3 एवं 293/8) रेल लाइन के लिए चिह्नित की गई थी। लेकिन उनके भाई उग्रसेन और सुरेशन ने साजिश रचकर पिता की दोनों पुत्रियों—मून और सपना—का नाम मूल दस्तावेजों से हटा दिया। विवादास्पद तरीके से भूमि के स्थान को बार-बार बदला गया, और अंततः मुआवजा राशि 28 लाख 40 हजार 141 रुपये के साथ-साथ पुनर्वास के लिए 5 लाख रुपये अपात्रों को हस्तांतरित कर दिए गए। “हमारी जमीन का एक इंच भी हिस्सा नहीं बचा, लेकिन पैसे हमारे भाइयों के खाते में चले गए। यह सब राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ,” चंद्रमा ने आंखों में आंसू लिए बताया।
प्रशासन की लापरवाही: शिकायतों का ढेर, जांच का सन्नाटा
पीड़ित परिवार ने इस मनमानी के खिलाफ जिला प्रशासन से कई बार शिकायत की। कलेक्टर के जनदर्शन से लेकर तहसीलदार तक फरियाद पहुंची, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला—कार्रवाई का कोई ठोस कदम नहीं। निराश होकर चंद्रमा ने मामला राज्य स्तर पर उछाला और वित्त मंत्री तक अपनी गुहार लगाई। वित्त मंत्री ने निष्पक्ष जांच का भरोसा दिया था, लेकिन महीनों बीत चुके हैं—कोई जांच टीम गठित नहीं हुई। यह निष्क्रियता न केवल पीड़ितों को हतोत्साहित कर रही है, बल्कि अन्य प्रभावित परिवारों को भी साहस दे रही है कि सिस्टम में भ्रष्टाचार बेरोकटोक फल-फूल रहा है।
हाल के दिनों में इस मामले ने नई गति पकड़ी है। अप्रैल 2025 में एक किसान की याचिका पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया और पटवारी-आरआई के नेक्सस पर जांच के आदेश दिए। कोर्ट के निर्देश के बावजूद जिला प्रशासन की सुस्ती बरकरार है, जो विकास परियोजनाओं में पारदर्शिता के अभाव को रेखांकित करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसी अनियमितताओं पर तत्काल कार्रवाई न हुई, तो भविष्य में बड़े पैमाने पर विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, जो प्रोजेक्ट की प्रगति को प्रभावित करेंगे।
एसडीएम का बयान: जांच का आश्वासन, लेकिन कब?
इस पूरे प्रकरण पर एसडीएम रायगढ़ महेश शर्मा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यदि शिकायत दर्ज है, तो निश्चित रूप से जांच होगी। हम प्रकरण का विस्तृत अध्ययन कर रहे हैं, और उसके बाद ही आगे की कार्रवाई पर स्पष्ट जानकारी देंगे।” हालांकि, उनका यह बयान पीड़ितों के लिए अब तक खोखला ही साबित हुआ है। जिला प्रशासन की ओर से कोई लिखित रिपोर्ट या समयसीमा की घोषणा नहीं की गई, जो सवाल उठाती है कि क्या यह आश्वासन भी कागजी ही रह जाएगा?
मुख्य बिंदु: घोटाले की परतें खोलते हुए
– **मूल नक्शे में छेड़छाड़**: राजस्व अधिकारियों पर खसरा नंबरों और भूमि सीमाओं में हेराफेरी का गंभीर आरोप।
– **मुआवजा वितरण में धांधली**: 28 लाख से अधिक की राशि अपात्रों को, जबकि वास्तविक प्रभावित (जैसे पुत्रियां) खाली हाथ।
– **पटवारी-आरआई पर मनमानी**: तत्कालीन अधिकारियों की साजिश से परिवारों का बंटवारा।
– **प्रशासनिक निष्क्रियता**: जिला स्तर से वित्त मंत्री तक शिकायतें, लेकिन जांच में देरी।
– **कानूनी हस्तक्षेप**: हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद कार्रवाई में सुस्ती।
यह मामला छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में विकास परियोजनाओं के दौरान होने वाले भू-अर्जन घोटालों का एक काला अध्याय जोड़ता है। सैकड़ों परिवार इसी तरह प्रभावित हैं, जो चुपचाप अपनी आवाज दबाए हुए हैं। यदि समय रहते निष्पक्ष जांच न हुई, तो यह न केवल सामाजिक असंतोष को जन्म देगा, बल्कि राज्य की औद्योगिक छवि को भी धक्का पहुंचाएगा। पीड़ितों की पुकार अब न्याय की बेला का इंतजार कर रही है—क्या प्रशासन सुन पाएगा?