रायगढ़ में वन विभाग की नाकामी: 187 हाथियों का आतंक, ग्रामीण दहशत में, फसलें और घर बर्बाद

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, छत्तीसगढ़। रायगढ़ जिले में 187 जंगली हाथियों का दल बेकाबू होकर ग्रामीणों की जिंदगी को तबाह कर रहा है, और वन विभाग मूकदर्शक बनकर केवल औपचारिकताएं पूरी कर रहा है। बीती रात हाथियों ने 28 किसानों की फसलों को रौंद डाला और लैलूंगा रेंज के बैगीनझरिया गांव में एक दंतैल हाथी ने तीन ग्रामीणों के घरों को तहस-नहस कर दिया। ग्रामीणों में दहशत का माहौल है, लेकिन वन विभाग की निष्क्रियता और लचर व्यवस्था के चलते न तो हाथियों को जंगल में नियंत्रित किया जा रहा है और न ही प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा मिल पा रहा है।
हाथियों का आतंक, वन विभाग की नाकामी
रायगढ़ जिले में 187 हाथियों की मौजूदगी ने ग्रामीणों की नींद उड़ा दी है। धरमजयगढ़ वन मंडल में 127 और रायगढ़ वन मंडल में 60 हाथी विचरण कर रहे हैं, जिनमें लैलूंगा रेंज में 61, छाल में 22, और घरघोड़ा में 28 हाथी शामिल हैं। बीती रात लैलूंगा के कर्रा, सियारपारा, बैगीनझरिया, सेमीपाली, प्रेम नगर, और रायगढ़ वन मंडल के नवागढ़ व सामारूमा में 28 किसानों की फसलों को हाथियों ने बर्बाद कर दिया। इसके अलावा, बैगीनझरिया में एक दंतैल हाथी ने तीन घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे ग्रामीणों में भय व्याप्त है।
ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग केवल मुनादी कराकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा है, जबकि हाथियों को जंगल में रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। बैगीनझरिया के ग्रामीणों ने बताया कि हाथी के गांव में घुसने की सूचना के बावजूद वन विभाग की टीम देरी से पहुंची और कड़ी मशक्कत के बाद ही हाथी को जंगल की ओर खदेड़ा गया। यह घटना वन विभाग की लापरवाही और तैयारियों की कमी को उजागर करती है।
थर्मल ड्रोन की निगरानी महज दिखावा
लैलूंगा एसडीओ का दावा है कि धौराभाठा, साजापाली, पकारगांव, और बागडीपा में 27 से 33 हाथियों के दलों की थर्मल ड्रोन कैमरों से निगरानी की जा रही है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह निगरानी केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित है। ड्रोन से निगरानी के बावजूद हाथी बस्तियों में घुस रहे हैं, फसलों को नष्ट कर रहे हैं, और घरों को तोड़ रहे हैं। सवाल उठता है कि अगर वन विभाग इतनी बड़ी संख्या में हाथियों की निगरानी कर रहा है, तो फिर वे बस्तियों में क्यों घुस रहे हैं? क्या यह विभाग की अक्षमता और संसाधनों के अभाव का सबूत नहीं है?
किसानों का दर्द, मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरा
हाथियों के आतंक से सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हो रहा है। धान की फसल, जो छत्तीसगढ़ के किसानों की आजीविका का आधार है, को हाथी लगातार रौंद रहे हैं। वन विभाग का मुआवजा नीति भी किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसी है। जहां सरकार प्रति एकड़ 65,100 रुपये की दर से धान खरीदती है, वहीं हाथियों से नुकसान के लिए अधिकतम 9,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा दिया जाता है, जो लागत का भी आधा नहीं है। किसानों का कहना है कि यह मुआवजा उनकी मेहनत और नुकसान की भरपाई के लिए नाकाफी है।
वन विभाग की लापरवाही से बढ़ रहा मानव-हाथी संघर्ष
वन विभाग की निष्क्रियता के चलते रायगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष बढ़ता जा रहा है। विभाग के पास न तो हाथियों को जंगल में रोकने की कोई ठोस रणनीति है और न ही ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करने का कोई प्रभावी उपाय। मुनादी और जागरूकता अभियान के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग की लापरवाही के कारण ही हाथी बस्तियों में घुस रहे हैं, जिससे जान-माल का नुकसान बढ़ रहा है।
ग्रामीणों की मांग: ठोस कदम और उचित मुआवजा
ग्रामीणों ने वन विभाग से मांग की है कि हाथियों को जंगल में ही रोका जाए और बस्तियों में उनके प्रवेश को रोकने के लिए प्रभावी उपाय किए जाएं। साथ ही, फसलों और घरों के नुकसान के लिए उचित मुआवजा दिया जाए, जो उनकी लागत और नुकसान की वास्तविक भरपाई कर सके। किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनकी मेहनत को महत्व देती है, तो उसे मुआवजे की राशि बढ़ानी होगी और वन विभाग को और जवाबदेह बनाना होगा।
रायगढ़ में 187 हाथियों का आतंक और वन विभाग की नाकामी ग्रामीणों के लिए अभिशाप बन चुकी है। थर्मल ड्रोन और मुनादी जैसे दिखावटी कदमों से न तो हाथियों को नियंत्रित किया जा सकता है और न ही ग्रामीणों का भरोसा जीता जा सकता है। वन विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने, संसाधनों का बेहतर उपयोग करने, और ग्रामीणों की सुरक्षा व मुआवजे की मांग को गंभीरता से लेने की जरूरत है। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो रायगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष और बढ़ेगा, जिसका खामियाजा गरीब किसानों को भुगतना पड़ेगा।