भीगे जूते और सूखी संवेदना : जिस स्कूल से पढ़कर निकले मुख्यमंत्री, वहां बच्चों को चप्पल पहनने पर अंदर न जाने दिया…!” गजब है साहब…

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम जशपुर। जहाँ से छत्तीसगढ़ को एक जनजातीय नेतृत्व मिला, वहीं आज उसी स्कूल में बच्चों को बारिश में भीगे जूतों के कारण चप्पल पहनकर आने पर गेट से लौटा दिया गया। मामला है लोयोला हिंदी माध्यम स्कूल कुनकुरी का — वही विद्यालय, जहां से वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी स्कूली पढ़ाई की थी।
आज जब यह संस्थान अनुशासन के नाम पर बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहा है, तो समाज में यह सवाल गूंज रहा है – “क्या शिक्षा के मंदिरों में संवेदनाएं अब बोझ बन गई हैं?”
“मुख्यमंत्री का पढ़ा हुआ स्कूल, लेकिन बच्चों से सहानुभूति नहीं !” – लगातार हो रही बारिश के कारण बच्चों के जूते भीग गए, जिस कारण मजबूरी में वे चप्पल पहनकर स्कूल पहुँचे। लेकिन प्राचार्य फादर सुशील ने उन्हें स्कूल में प्रवेश देने से मना कर दिया। बच्चों को गेट से लौटा दिया गया, जिससे मानसिक अपमान और शैक्षणिक हानि दोनों हुई।
❝जिस स्कूल ने विष्णुदेव साय जैसा नेता दिया, वही आज गरीब बच्चों की मजबूरी नहीं समझ पा रहा?❞ – अभिभावकों का सवाल
प्राचार्य का बयान :“अनुशासन जरूरी है” -प्राचार्य का तर्क है कि ड्रेस कोड विद्यालय अनुशासन का हिस्सा है। पर क्या यह नियम प्राकृतिक आपदा या मानवीय स्थितियों से ऊपर हो सकता है?
वर्तमान में, यह केवल स्कूल नहीं – नैतिकता का आईना है : लोयोला स्कूल, कुनकुरी आज केवल एक संस्थान नहीं है, बल्कि यह सवाल बन गया है – “क्या स्कूलों का अनुशासन बच्चों की गरिमा और अधिकारों से ऊपर हो चुका है?”
शिक्षा विभाग ने जांच का भरोसा दिलाया : कुनकुरी विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने मीडिया से कहा : “हमें सूचना मिली है, मामले की जांच की जाएगी और यदि लापरवाही पाई जाती है तो कार्रवाई तय है।”
मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा : अब नजरें मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पर टिकी हैं –
* क्या वे अपने पुराने विद्यालय में बच्चों के साथ हुए इस अन्याय पर चुप रहेंगे?
* या फिर वे आगे आकर यह संदेश देंगे कि संवेदनशीलता, अनुशासन से कम नहीं होती?
जिस स्कूल ने एक जननेता को जन्म दिया, वह आज जनबच्चों को ठुकरा रहा है।
यह घटना केवल स्थानीय नहीं, एक प्रादेशिक बहस का विषय है- शिक्षा, गरिमा और मानवता के त्रिकोण में किसे प्राथमिकता मिलेगी?