तिलाईपाली में 3000 एकड़ जमीन का मुआवजा 270 करोड़, बजरमुड़ा में 420 एकड़ के लिए 415 करोड़ (सत्र स्पेशल)

अधिकारियों की जांच अभी तक अधूरी, सीएसपीजीसीएल के अधिकारी एफआईआर के दायरे से क्यों बाहर?
सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ जिले में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) के गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल माइंस प्रोजेक्ट में हुए भ्रष्टाचार ने भू-अधिग्रहण और मुआवजा वितरण की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया है। यह घोटाला इतना व्यापक है कि इसकी गूंज छत्तीसगढ़ विधानसभा तक पहुंची, जहां राजस्व मंत्री ने सात अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य आरोपियों के नाम भी उजागर किए, जिन्हें जिला स्तर पर बचाने की कोशिश की गई थी। इस मामले में मुआवजा निर्धारण में भारी गड़बड़ियां सामने आई हैं, जिनकी तुलना अन्य माइंस प्रोजेक्ट्स से करने पर भ्रष्टाचार की गहराई और स्पष्ट हो जाती है।
भ्रष्टाचार का स्तर और तुलनात्मक विश्लेषण
गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल माइंस प्रोजेक्ट के तहत बजरमुड़ा में 420 एकड़ (170 हेक्टेयर) भूमि के लिए 478.68 करोड़ रुपये का मुआवजा पारित किया गया, जिसे बाद में कंपनी की आपत्ति के बाद 415.69 करोड़ रुपये कर दिया गया। यह राशि अपने आप में असामान्य रूप से अधिक है, खासकर जब इसकी तुलना रायगढ़ जिले के ही एनटीपीसी तलाईपाली माइंस प्रोजेक्ट से की जाए। तलाईपाली में 8 गांवों—रायकेरा, साल्हेपाली, चोटीगुड़ा, बिच्छीनारा, नया रामपुर, कुदुरमौहा, तलाईपाली और अजीजगढ़—की 2959 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई, जिसके लिए 1865 किसानों को 262.34 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया। इसका मतलब है कि प्रति एकड़ औसतन लगभग 8.86 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। वहीं, बजरमुड़ा में 420 एकड़ के लिए 415.69 करोड़ रुपये, यानी प्रति एकड़ लगभग 98.97 लाख रुपये का मुआवजा निर्धारित किया गया। यह तलाईपाली के मुआवजे से लगभग 11 गुना अधिक है, जो स्पष्ट रूप से अनियमितता और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
बजरमुड़ा में भ्रष्टाचार की गहराई को समझने के लिए इसकी कार्यप्रणाली पर गौर करना जरूरी है। शिकायतों के अनुसार, असिंचित भूमि को सिंचित बताकर, पेड़ों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर, टिन शेड को पक्का निर्माण बताकर, और बरामदे, कुएं आदि का मनमाना आकलन करके मुआवजे की राशि को कई गुना बढ़ाया गया। उदाहरण के लिए, जहां सामान्य परिस्थितियों में किसी भूमि के लिए 20 लाख रुपये का मुआवजा बनता था, वहां 2 करोड़ रुपये तक का मुआवजा निर्धारित कर दिया गया। यह सब राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से संभव हुआ, जिसमें परिसंपत्तियों के आकलन में जानबूझकर गड़बड़ियां की गईं।
जांच और कार्रवाई
बजरमुड़ा मुआवजा घोटाले की शिकायत रायगढ़ निवासी दुर्गेश शर्मा ने की थी, जिसके बाद राज्य सरकार ने आईएएस रमेश शर्मा की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की। इस समिति में हीना अनिमेश नेताम (अपर कलेक्टर) और उमाशंकर अग्रवाल (संयुक्त कलेक्टर) शामिल थे। समिति ने 31 मई 2024 को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी, जिसमें 15 अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अनियमितता और त्रुटिपूर्ण मुआवजा पत्रक तैयार करने की पुष्टि हुई। इसके आधार पर 20 जून 2025 को मामला आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्ल्यू) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को जांच के लिए भेजा गया। रायगढ़ कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने घड़घोड़ा के तत्कालीन एसडीएम अशोक कुमार मार्बल सहित सात राजस्व कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। इनमें तिरिथ राम कश्यप (तहसीलदार, तमनार), सी.आर. सिदार (पटवारी, तहसील तमनार), और मालिक राम राठिया (पटवारी, तहसील तमनार) शामिल हैं। इसके अलावा, अशोक कुमार मार्बल को निलंबित कर दिया गया।
हालांकि, जांच और कार्रवाई का दायरा मुख्य रूप से राजस्व विभाग, लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), लोकίνη (पीएचई), और वन विभाग के सर्वे करने वाले अधिकारियों तक सीमित रहा। हैरानी की बात है कि सीएसपीजीसीएल के उन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिन्होंने 415 करोड़ रुपये के मुआवजे पर सहमति दी थी। यह सवाल उठता है कि क्या इस घोटाले में कोई बड़ी सांठगांठ थी, जिसके कारण सीएसपीजीसीएल के अधिकारियों को बचाने की कोशिश की गई।
तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में भ्रष्टाचार
बजरमुड़ा घोटाले की तुलना अन्य माइंस प्रोजेक्ट्स से करने पर यह स्पष्ट होता है कि मुआवजा निर्धारण में असामान्य रूप से उच्च राशि का आवंटन जानबूझकर किया गया। उदाहरण के लिए, भारतमाला सड़क परियोजना में भी छत्तीसगढ़ के 11 जिलों में मुआवजा घोटाले की जांच चल रही है, जिसमें 48 करोड़ से लेकर 600 करोड़ रुपये तक के नुकसान की आशंका जताई गई है। इस घोटाले में भी राजस्व अधिकारियों और भू-माफियाओं की मिलीभगत सामने आई है, जहां पहले से अधिग्रहीत भूमि को दोबारा बेचकर और गलत व्यक्तियों को मुआवजा देकर धोखाधड़ी की गई। बजरमुड़ा में भी इसी तरह की रणनीति अपनाई गई, जहां परिसंपत्तियों का गलत आकलन और दस्तावेजों में हेरफेर कर मुआवजे की राशि को कई गुना बढ़ाया गया।
सीएसपीजीसीएल अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
यह सबसे बड़ा सवाल है कि सीएसपीजीसीएल के अधिकारियों को इस घोटाले में क्यों छोड़ दिया गया। जांच समिति की रिपोर्ट में राजस्व विभाग के अधिकारियों की भूमिका को प्रमुखता से उजागर किया गया, लेकिन सीएसपीजीसीएल के उन अधिकारियों का कोई जिक्र नहीं है, जिन्होंने इतनी बड़ी राशि के मुआवजे को मंजूरी दी। यह संभावना जताई जा रही है कि इस मामले में उच्च स्तर पर कोई “बड़ी डील” हुई हो, जिसके चलते कार्रवाई का दायरा सीमित कर दिया गया। यह भी सवाल उठता है कि क्या जिला स्तर पर कुछ अधिकारियों को बचाने की कोशिश की गई, जैसा कि विधानसभा में राजस्व मंत्री ने संकेत दिया था।
विधानसभा में चर्चा और राजस्व मंत्री का रुख
छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र 2025 में बजरमुड़ा घोटाला पहली बार प्रमुखता से उठा। बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक ने इस मुद्दे को उठाते हुए सवाल किया कि बजरमुड़ा में मुआवजा अनियमितता के संबंध में किन-किन शिकायतों पर क्या कार्रवाई हुई। जवाब में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने बताया कि 300 करोड़ रुपये के मुआवजे में आधे से अधिक राशि राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिलकर हड़प ली। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ अधिकारियों को जिला स्तर पर बचाने की कोशिश की गई थी, लेकिन अब सभी दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि घोटाले में शामिल कोई भी व्यक्ति बख्शा नहीं जाएगा।
बजरमुड़ा मुआवजा घोटाला न केवल राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि सीएसपीजीसीएल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों की जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है। इस घोटाले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर और निलंबन जैसी कार्रवाइयां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन सीएसपीजीसीएल के अधिकारियों की भूमिका की अनदेखी चिंता का विषय है। इस मामले में सीबीआई जांच की मांग उठ रही है, क्योंकि यह घोटाला न केवल आर्थिक नुकसान का मामला है, बल्कि इसमें आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें दिखाई देती हैं। यदि इस तरह के घोटालों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह सरकारी तंत्र में विश्वास को और कमजोर करेगा।