मैनपुर बीईओ का विवादास्पद आदेश: स्कूलों को मीडिया से दूरी बनाने की सख्त हिदायत

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम गरियाबंद। मैनपुर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (बीईओ) द्वारा जारी एक आदेश ने शिक्षा क्षेत्र में हलचल मचा दी है। इस आदेश में जिले के सभी सरकारी स्कूलों को मीडिया के साथ किसी भी तरह का संवाद न करने की सख्त हिदायत दी गई है। बीईओ कार्यालय से जारी इस सात सूत्री निर्देश की प्रति सामने आने के बाद शिक्षक समुदाय और पत्रकारों में आक्रोश देखा जा रहा है।
आदेश का विवादित बिंदु
सात निर्देशों में से एक बिंदु ने विशेष रूप से विवाद को जन्म दिया है, जिसमें स्कूलों को निर्देश दिया गया है कि वे मीडिया को विद्यालय से संबंधित कोई भी जानकारी न दें और पत्रकारों से दूरी बनाए रखें। इस आदेश को पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के खिलाफ माना जा रहा है।
जर्जर स्कूलों की खबरों से उपजा विवाद?
जानकारी के अनुसार, यह आदेश हाल ही में भारी बारिश के कारण कुछ स्कूल भवनों के जर्जर होने और इन खबरों के समाचार पत्रों व अन्य माध्यमों में छपने के बाद आया है। इन खबरों ने स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। माना जा रहा है कि इन्हीं खबरों के बाद बीईओ ने यह कदम उठाया।
बीईओ के सात निर्देश
आदेश में शामिल प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
1. स्कूलों का संचालन निर्धारित समय पर हो।
2. स्कूल परिसर, रसोई और शौचालय की नियमित सफाई सुनिश्चित हो।
3. जर्जर भवनों में स्कूल संचालन न किया जाए।
4. स्कूल से संबंधित कोई भी जानकारी मीडिया को न दी जाए।
5. आवश्यक दस्तावेज और रजिस्टर अद्यतन रखे जाएं।
6. संकुल समन्वयक और प्राचार्य नियमित रूप से स्कूलों की निगरानी करें।
7. स्कूल का संचालन सुरक्षित और व्यवस्थित परिसर में हो।
शिक्षकों और पत्रकारों में नाराजगी
इस आदेश पर शिक्षक संगठनों और पत्रकारों ने कड़ा विरोध जताया है। शिक्षकों का कहना है कि मीडिया स्कूलों की समस्याओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे कई बार प्रशासन तक बात पहुंचती है और समाधान निकलता है। वहीं, पत्रकारों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार पर हमला बताया। एक पत्रकार ने कहा, “यह आदेश उन अधिकारियों की नाकामी छिपाने की कोशिश है, जो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर पाते।”
पारदर्शिता और RTI पर सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश सूचना के अधिकार (RTI) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है। मीडिया ने हमेशा सरकारी स्कूलों की समस्याओं को सामने लाकर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया है। ऐसे में इस तरह का निर्देश न केवल पारदर्शिता को कम करता है, बल्कि जनता के जानने के अधिकार को भी प्रभावित करता है।
क्या होगा अगला कदम?
इस आदेश के बाद जिले में विवाद बढ़ता जा रहा है। शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, शिक्षकों और पत्रकारों के विरोध को देखते हुए माना जा रहा है कि विभाग जल्द ही इस मामले पर स्पष्टीकरण दे सकता है। इस बीच, यह आदेश शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर नई बहस छेड़ रहा है।