तमनार तहसील के सराईटोला में जंगल कटाई घोटाला: फर्जी ग्राम सभा के दस्तावेजों का सनसनीखेज खुलासा

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, छत्तीसगढ़: तमनार तहसील के ग्राम पंचायत सराईटोला में जंगल कटाई को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए फर्जी ग्राम सभा के दस्तावेजों के आधार पर जंगल कटाई की अनुमति हासिल की गई। इस मामले में न तो ग्राम सभा की कोई निर्धारित तिथि थी, न ही कोई आधिकारिक बैठक हुई। हैरानी की बात यह है कि दस्तावेजों में जिस जयशंकर राठिया को ग्राम सभा का अध्यक्ष बताया गया, वह व्यक्ति सराईटोला ग्राम पंचायत में मौजूद ही नहीं है।

फर्जीवाड़े की परतें उजागर
सूत्रों के अनुसार, ग्राम सभा के नाम पर तैयार किए गए दस्तावेज पूरी तरह से फर्जी हैं। न तो कलेक्टर के प्रतिनिधि के रूप में कोई अधिकारी मौजूद था, न ही ग्राम सभा की कोई फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की गई। वन विभाग का कोई भी अधिकारी इस कथित ग्राम सभा में शामिल नहीं हुआ। इसके बावजूद, इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पर्यावरण अनुमति प्रदान कर दी गई, जिसने स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों में आक्रोश पैदा कर दिया है।

पर्यावरण नियमों की अनदेखी
यह मामला पर्यावरण संरक्षण के लिए बने नियमों की खुलेआम अनदेखी को दर्शाता है। ग्राम सभा की अनुमति के बिना जंगल कटाई की मंजूरी देना न केवल अवैध है, बल्कि यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए भी गंभीर खतरा है। सराईटोला के आसपास के जंगल क्षेत्र आदिवासी समुदायों और वन्यजीवों के लिए महत्वपूर्ण हैं, और इस तरह की गतिविधियां उनके जीवन और आजीविका को प्रभावित कर सकती हैं।

स्थानीय लोगों में आक्रोश
ग्राम पंचायत के निवासियों ने इस फर्जीवाड़े पर गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि ग्राम सभा के नाम पर कोई बैठक नहीं हुई, और न ही उन्हें जंगल कटाई की किसी योजना की जानकारी दी गई। एक स्थानीय निवासी ने बताया, “हमारे जंगल हमारी पहचान हैं। बिना हमारी सहमति के यह कटाई कैसे हो सकती है? यह साफ तौर पर धोखाधड़ी है।”
ग्राम सभा की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं
इस घोटाले की गहराई और भी चौंकाने वाली है। नियमानुसार, ग्राम सभा के आयोजन से 15 दिन पहले अनुविभागीय दण्डाधिकारी द्वारा सूचना जारी की जानी चाहिए, गांव के चौकीदार द्वारा हाका डाला जाना चाहिए और ग्राम सभा के सदस्यों को बुलाया जाना चाहिए। लेकिन सराईटोला में इनमें से कोई भी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। न तो कोई सूचना जारी हुई, न ही हाका डाला गया, और न ही ग्राम सभा के सदस्यों को बुलाया गया। इसके बावजूद, ग्राम सभा का आयोजन होने और इसके रजिस्टर में दर्ज होने का दावा किया गया। ग्राम पंचायत सचिव ने इस मामले में और भी सनसनीखेज खुलासा किया है। उनका कहना है कि दस्तावेजों में मौजूद सचिव के हस्ताक्षर उनके नहीं हैं, जिससे यह साफ होता है कि हस्ताक्षर भी फर्जी हैं।

जिम्मेदार कौन?
इस घोटाले ने कई सवाल खड़े किए हैं। आखिर कलेक्टर कार्यालय और वन विभाग की नजरों से यह फर्जीवाड़ा कैसे छिप गया? क्या इस मामले में कोई बड़ी साजिश है? पर्यावरण अनुमति देने वाले अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और वन विभाग से इस मामले में जवाब मांगा गया है, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
क्या है मांग?
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दी गई अनुमति को तत्काल रद्द किया जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। साथ ही, जंगल कटाई को रोकने और प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वनीकरण की मांग भी जोर पकड़ रही है।
यह खुलासा न केवल सराईटोला बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में पर्यावरण संरक्षण और ग्राम सभा की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। यदि इस तरह के फर्जीवाड़े पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह आदिवासी समुदायों और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। इस मामले में सरकार और प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है ताकि दोषियों को बेनकाब किया जाए और पर्यावरण की रक्षा सुनिश्चित हो।