स्कूल में कोल्ड्रिंक की बोतल में शराब छिपाकर पकड़ाया शिक्षक, नेताओं की शिकायत

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में ग्राम चिपरा की शासकीय प्राथमिक शाला में प्रधान पाठक सरजूराम ठाकुर का शराब पीते हुए पकड़ा जाना शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है। यह पहली बार नहीं है जब सरजूराम शराब के नशे में स्कूल पहुंचे; वे पहले भी इस कारण निलंबित हो चुके हैं। इसके बावजूद, उनकी आदत में सुधार न होना और स्प्राइट की बोतल में शराब छिपाकर स्कूल लाना न केवल अनुशासनहीनता है, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है।
आदतन शराबी शिक्षकों के खिलाफ सख्त कदम की जरूरत
शिक्षक बच्चों के लिए रोल मॉडल होते हैं। जब वे शराब के नशे में स्कूल पहुंचकर कर्तव्य की उपेक्षा करते हैं, तो यह बच्चों के मानसिक और शैक्षणिक विकास पर बुरा असर डालता है। सरजूराम जैसे शिक्षकों की हरकतें स्कूलों की गरिमा को तार-तार करती हैं।
1. सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई: जिला शिक्षा अधिकारी पीसी मरकले ने सरजूराम को तत्काल निलंबित कर दिया है, जो स्वागत योग्य कदम है। लेकिन बार-बार ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए स्थायी बर्खास्तगी जैसे कठोर कदमों पर विचार करना चाहिए।
2. निगरानी और जवाबदेही: स्कूलों में शिक्षकों की गतिविधियों पर नियमित निगरानी और आकस्मिक निरीक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। स्थानीय अभिभावकों और जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से इस तरह की लापरवाही को तुरंत पकड़ा जा सकता है।
3. पुनर्वास और जागरूकता: शराब की लत से जूझ रहे शिक्षकों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए जाएं। साथ ही, शिक्षकों को नैतिकता और कर्तव्यबोध के प्रति जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाएं।
बीजेपी नेताओं की भूमिका
कुसुमकसा बीजेपी मंडल अध्यक्ष योगेंद्र कुमार सिन्हा ने इस मामले को उजागर कर और बीईओ को लिखित शिकायत देकर सराहनीय काम किया। उनकी मांग कि सरजूराम के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो, बच्चों के हित में है।
आगे की राह
ऐसी घटनाएं शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती हैं। पहले निलंबन के बाद सरजूराम को बहाल करना विभागीय कमजोरियों को दर्शाता है। शिक्षा विभाग को चाहिए कि:
– शिक्षकों की भर्ती और बहाली में सख्त पृष्ठभूमि जांच हो।
– शराब सेवन जैसे गंभीर मामलों में जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जाए।
– स्कूलों को शराबमुक्त और सुरक्षित बनाने के लिए अभिभावकों और स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर काम किया जाए।
शिक्षा के मंदिर में शराब की जगह नहीं। सरजूराम जैसे शिक्षकों को सुधार का मौका देना ठीक है, लेकिन बार-बार अनुशासन तोड़ने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई ही एकमात्र रास्ता है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे।