पुसौर में जातिवाद और नशे के सहारे सत्ता: दलित-आदिवासी विरोधी नेताओं पर सवाल

सम्पादक अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम पुसौर (छत्तीसगढ़): आज के दौर में, जब समाज समता और समावेशिता की ओर बढ़ने का दावा करता है, पुसौर क्षेत्र में कुछ नेताओं के छोटे विचार और जातिवादी रवैये ने सामाजिक माहौल को प्रदूषित कर दिया है। स्थानीय जनपद सदस्य लारा सहित कुछ प्रभावशाली नेताओं पर आरोप है कि वे न केवल दलित और आदिवासी समुदायों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाते हैं, बल्कि नशे की लत और गुटबाजी के जरिए क्षेत्र की राजनीति को कमजोर कर रहे हैं।
स्थानीय कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों का कहना है कि ऐसे नेताओं की संकीर्ण मानसिकता के कारण क्षेत्र के जनाधार वाले कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “संगठन की नींव कार्यकर्ता होते हैं। बिना ईमानदार कार्यकर्ताओं के कोई संगठन मजबूत नहीं हो सकता। लेकिन यहां व्यक्तिगत स्वार्थ और गुटबाजी हावी है, जिससे दलित और आदिवासी समुदाय के लोग हाशिए पर हैं।”
जातिवाद और भेदभाव का बोलबाला
पुसौर में सत्तारूढ़ नेताओं पर आरोप है कि वे दलित और आदिवासी समुदायों के हितों को नजरअंदाज कर रहे हैं। क्षेत्र में दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के कुछ नेताओं के आंतरिक भेदभाव और प्रदर्शन ने कार्यकर्ताओं में निराशा पैदा की है। एक स्थानीय आदिवासी कार्यकर्ता ने कहा, “हमारे मुद्दों को उठाने की बजाय, ये नेता अपनी सत्ता बचाने और जातिवाद को बढ़ावा देने में लगे हैं। नशे की लत में डूबे कुछ नेताओं के फैसले क्षेत्र के विकास को बाधित कर रहे हैं।”
संगठन की कमजोरी का कारण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गुटबाजी और स्वार्थी राजनीति के कारण संगठनों की एकजुटता कमजोर हो रही है। “जब नेता अपने निजी हितों को प्राथमिकता देते हैं, तो कार्यकर्ताओं का विश्वास टूटता है। यह कटु सत्य है कि पुसौर में कुछ नेताओं की गलत नीतियों ने दलित और आदिवासी समुदायों का न तो भला किया और न ही उनका विश्वास जीता,” एक विश्लेषक ने कहा।
कार्यकर्ताओं की मांग
क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि नेतृत्व में बदलाव और पारदर्शी नीतियों के जरिए संगठन को मजबूत किया जाए। उनका कहना है कि दलित और आदिवासी समुदायों के प्रति भेदभाव खत्म कर समावेशी विकास पर ध्यान देना होगा। “बिना भक्त के भगवान नहीं, और बिना कार्यकर्ता के संगठन नहीं। नेताओं को यह समझना होगा,” एक कार्यकर्ता ने जोर देकर कहा।
निष्कर्ष
पुसौर की जनता और कार्यकर्ता अब उन नेताओं से जवाब मांग रहे हैं, जो जातिवाद, नशे और गुटबाजी के जरिए क्षेत्र की प्रगति को रोक रहे हैं। यह समय है कि राजनीतिक दल अपने नेतृत्व की समीक्षा करें और कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाएं। यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है।