सरायपाली शैक्षणिक संस्थान में हो रही राजनीति दलित जनप्रतिनिधि होने के चलते विधायक को नहीं दिया मंच में जगह
महासमुंद जिले के सरायपाली स्थित राजा वीरेंद्र बहादुर काॅलेज के वार्षिक उत्सव कार्यक्रम में विधायक चातुरी नंद को अतिथि नहीं बनाएं जाने से स्थानीय कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काॅलेज प्रबंधन पर जमकर नाराजगी जताते हुए दुर्भावना की राजनीति करार दिया है। इस दौरान विधायक चातुरी नंद महाविद्यालय के बतौर पूर्व छात्रा के रूप में छात्रों के साथ दर्शक दीर्घा में जा बैठी।
सरायपाली विधानसभा के कांग्रेस विधायक चातुरी नंद को राजा वीरेंद्र बहादुर महाविद्यालय के वार्षिक उत्सव कार्यक्रम में अतिथि नहीं बनाएं जाने से सरायपाली की राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। यहीं नहीं सोमवार को हुए महाविद्यालय के वार्षिक उत्सव के आमंत्रण कार्ड पर भी विधायक चातुरी नंद का नाम तक नहीं है। जिसकों लेकर कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में काॅलेज प्रबंधन पर भारी आक्रोशित है। और दुर्भावना पूर्ण राजनीति करने का गंभीर आरोप काॅलेज प्रबंधन पर लगाया है।
इसके बावजूद विधायक चातुरी नंद पूरी सादगी से महाविद्यालय के वार्षिक उत्सव कार्यक्रम में बतौर पूर्व छात्रा के रूप में पहुंची थी। विधायक चातुरी नंद कार्यक्रम चल रहे मंच के नीचे ही खड़ी हो कर बड़े ही विनम्रतापूर्वक मंच संचालक से माइक मांगी और शालीनता के साथ कहा कि, मैं मंच पर अतिथि के तौर पर नहीं बल्कि काॅलेज के पूर्व छात्रा के रूप आई हूं। ये सून कर दर्शक दीर्घा में बैठे छात्र छात्राओं ने ताली बजाकर अभिवादन किया।इस बाद विधायक चातुरी नंद सीधे दर्शक दीर्घा में बैठे छात्रों के बीच जाकर बैठ गई।
कार्यक्रम से बाहर आकर विधायक चातुरी नंद ने महाविद्यालय प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि मैं इस काॅलेज की भूतपूर्व छात्रा रही हूं , और एक छात्र के रूप में कार्यक्रम देखने आई हूं। विधायक ने कहा कि यहां शुरू से हीं दलितों के प्रति मन में दुर्भावना रखी हुई है जो अब भी जारी है। उन्होंने कहा कि, एक दलित जनप्रतिनिधि यहां का प्रथम नागरिक होता है, और उन्हें भी इस काॅलेज में अतिथि के रूप में स्थान नहीं दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि, आप सोच सकते है कि, हम जैसे दलितों को कितना प्रताड़ना झेलना पड़ता होगा। उन्होंने कहा कि, पहले भी ऐसा होता था, और अब भी ऐसा हो रहा है। शायद ‘‘एक दलित जनप्रतिनिधि होने के कारण मुझे मंच से बाहर रखा गया , कॉलेज प्रबंधन इतना लापरवाह नहीं हो सकता। यह सोची समझी रणनीति के तहत दुर्भावना से किया गया है। दलित होने के चलते हर बार हमे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती रही है।‘‘
इस पूरे मामले काॅलेज के प्राचार्य पी. के. भोई का कहना है कि, मै तीन माह में सेवानिवृत्त हो जाउंगा, कुछ कह नहीं पाउंगा। मुझे इस विवाद मत डालिए। उन्होंने यह भी कहा कि मैं दबाव में हूं। इसे घटना के बाद से सरायपाली की राजनीति गर्मा गई है। अब स्थानीय नेता और कार्यकर्ता काॅलेज प्रबंधन के खिलाफ आंदोलन की तैयारी में है।