गारे पेलमा कोल खदान मामला: आरटीआई खारिज कर प्रशासन ने छिपाए भूमि अनुमति दस्तावेज़ — पेसा कानून और पाँचवीं अनुसूची की खुली अवहेलना!

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
तमनार तहसील के गारे पेलमा IV/2 महाजेनको कोयला खदान से जुड़ी राजस्व भूमि अनुमति के दस्तावेज़ देने से प्रशासन के इनकार ने अब महज़ एक आरटीआई विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मामला खड़ा कर दिया है।
ग्राम पंचायत तुरंगा निवासी श्री पद्मनाथ प्रधान द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई जानकारी को अतिरिक्त कलेक्टर एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी, रायगढ़ ने 25 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया। आदेश में कहा गया कि मांगी गई जानकारी प्राधिकरण के नियंत्रणाधीन नहीं है।
कानूनी विरोधाभास: अनुमति है तो दस्तावेज़ कहाँ हैं?
यह आदेश अपने आप में कानूनी रूप से विरोधाभासी है।
🔹 1. आरटीआई अधिनियम की धारा 2(f) का उल्लंघन
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2(f) के अनुसार—
> कोई भी रिकॉर्ड, दस्तावेज़, आदेश, अनुमति, अधिसूचना या नोटिंग सूचना की श्रेणी में आती है।
यदि कोयला खदान हेतु राजस्व भूमि की अनुमति दी गई है, तो उसका आदेश, नोटशीट और अभिलेख अनिवार्य रूप से राजस्व विभाग के पास मौजूद होने चाहिए।
ऐसे में “दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं” कहना, रिकॉर्ड प्रबंधन की विफलता या जानबूझकर छुपाने का संकेत देता है।
🔹 2. धारा 4 का उल्लंघन — स्वप्रेरित प्रकटीकरण क्यों नहीं?
आरटीआई की धारा 4(1)(b) के तहत सरकार पर यह बाध्यता है कि—
भूमि अधिग्रहण
खनन अनुमति
प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन
जैसे मामलों में दस्तावेज़ स्वतः सार्वजनिक किए जाएँ।
यहाँ न केवल स्वप्रेरित प्रकटीकरण नहीं हुआ, बल्कि पूछने पर भी जानकारी रोक ली गई।

पेसा कानून की अनदेखी: ग्राम सभा की भूमिका गायब
गंभीर सवाल यह है कि यह क्षेत्र पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र है।
पेसा अधिनियम, 1996 क्या कहता है?
खनन, भूमि हस्तांतरण और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से पहले
ग्राम सभा की पूर्व सहमति अनिवार्य है।
ग्राम सभा को यह जानने का अधिकार है कि
कौन-सी भूमि दी जा रही है
किसे दी जा रही है
किन शर्तों पर दी जा रही है
यदि भूमि अनुमति के दस्तावेज़ ग्राम सभा और जनता से छिपाए जा रहे हैं, तो यह पेसा अधिनियम की आत्मा पर सीधा प्रहार है।
पाँचवीं अनुसूची का संवैधानिक उल्लंघन
भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची राज्य को बाध्य करती है कि—
आदिवासी क्षेत्रों में भूमि, जल और जंगल की रक्षा हो
किसी भी परियोजना में आदिवासियों के हित सर्वोपरि हों
गारे पेलमा क्षेत्र में पहले से ही—
विस्थापन
पर्यावरणीय क्षति
हाथी मानव संघर्ष
जैसे मुद्दे मौजूद हैं। ऐसे में दस्तावेज़ छिपाना संवैधानिक संरक्षक की भूमिका से पलायन माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की भावना के विरुद्ध आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने समता बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1997) और ओरिसा माइनिंग कॉरपोरेशन बनाम ग्राम सभा (नियामगिरी केस) में स्पष्ट कहा है—
> अनुसूचित क्षेत्रों में खनन बिना ग्राम सभा की सहमति के असंवैधानिक है।
यदि सहमति और अनुमति के दस्तावेज़ ही सार्वजनिक नहीं होंगे, तो सहमति की वैधता कैसे जांची जाएगी?
प्रशासनिक गोपनीयता या जवाबदेही से बचाव?
यह मामला अब सिर्फ आरटीआई का नहीं, बल्कि—
जनहित बनाम प्रशासनिक अपारदर्शिता
संविधान बनाम कॉरपोरेट हित
ग्राम सभा बनाम खनन लॉबी की लड़ाई बनता जा रहा है।
अभी भी खुला है संवैधानिक रास्ता
आदेश में अपीलकर्ता को छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में 90 दिनों के भीतर द्वितीय अपील का अधिकार दिया गया है।
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह मामला—
सूचना आयोग
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)
या उच्च न्यायालय तक भी जा सकता है।
गारे पेलमा कोल खदान से जुड़े दस्तावेज़ों को छिपाना सिर्फ कागज़ी कार्रवाई नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकार, लोकतांत्रिक पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों पर चोट है।
अब सवाल यह नहीं कि सूचना दी जाएगी या नहीं—
सवाल यह है कि क्या संविधान की मंशा ज़मीन पर लागू होगी या काग़ज़ों में ही दफन रह जाएगी।