Latest News

बिलासपुर का ‘खाकी न्याय’ : जहाँ रक्षक ही ‘भक्षक’ के गुरु बन गए!

विशेष व्यंग्य रिपोर्ट: बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

बिलासपुर। जिले के मस्तूरी क्षेत्र से इन दिनों कानून व्यवस्था का एक ऐसा “अनोखा मॉडल” सामने आया है, जिसे देखकर बड़े-बड़े फिल्म निर्देशक भी अपनी स्क्रिप्ट फाड़ दें। मामला पत्रकार डी.पी. गोस्वामी और उनकी पत्नी दिव्या गोस्वामी का है, जिन्हें अपराधियों ने कम, बल्कि सिस्टम के “संरक्षकों” ने ज्यादा डरा रखा है। छत्तीसगढ़ में अब नया नियम लागू हो चुका है – “पत्रकारिता करोगे तो जान जाएगी, और शिकायत करोगे तो साख जाएगी।”

ट्रेनिंग सेंटर बना थाना?

आमतौर पर थाने अपराधियों को सुधारने के लिए होते हैं, लेकिन मस्तूरी में गंगा उल्टी बह रही है। आरोप है कि यहाँ के जांचकर्ता अधिकारियों ने एक नई ‘कोचिंग क्लास’ शुरू की है। विषय है- “शिकायतकर्ता पत्रकार को ही कैसे फँसाएं?”
गृह मंत्री के आदेश के बाद जब अधिकारियों पर तबादले की तलवार लटकी, तो उन्होंने आनन-फानन में आरोपियों को थाने बुलाया। पर साहब, गिरफ्तारी के लिए नहीं! बल्कि उन्हें यह “ट्यूशन” देने के लिए कि बड़े अधिकारियों को पत्रकार के खिलाफ उल्टी शिकायत कैसे की जाती है। इसे कहते हैं ‘सर्विस विद स्माइल’ – अपराधियों के लिए पुलिस की ऐसी ममता देखकर तो यमराज भी इस्तीफा दे दें।

मुर्गा, शराब और ‘मास्टरप्लान’

भनेश्वर रोड पर स्थित विकास तिवारी का आवास इन दिनों किसी “रणनीति केंद्र” से कम नहीं है। चर्चा है कि वहाँ 22 दिसंबर की रात को ‘मुर्गा-दारू’ की महफिल जमी थी। अब लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह पार्टी किसी के जन्मदिन की थी या पत्रकार की ‘आवाज दबाने’ की खुशी में? अगर उन CCTV कैमरों की जुबान होती, तो वे खुद चीख पड़ते कि यहाँ न्याय की अर्थी के साथ लजीज दावत उड़ाई जा रही थी।

‘कबाड़’ का ज्ञान और खाकी का ‘लेन-देन’

पत्रकार ने बड़ी ईमानदारी से कबाड़ चोरी की सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने उस सूचना का इतना “सही उपयोग” किया कि आरोपियों से ही तार जोड़ लिए। इसे कहते हैं ‘डेटा शेयरिंग’। पत्रकार को लगा उसने अपराध रोकने में मदद की, लेकिन पुलिसकर्मी शिव चंद्रा ने शायद इसे ‘बिजनेस प्रपोजल’ समझ लिया। खबर है कि मामला अब पूरी तरह ‘सेट’ है – पुलिस की जेब गरम है और पत्रकार की जान नरम!

एसडीओपी साहब का ‘पुराना प्यार’

एसडीओपी लालचंद मोहले जी का पत्रकारों से प्रेम पुराना है। जब वे थाना प्रभारी थे, तब एक ‘आत्महत्या प्रयास’ वाली खबर ने उनके ‘लाभदायक नेटवर्क’ में खलल डाल दिया था। अब साहब उस पुराने दर्द का बदला ले रहे हैं। आखिर “सिस्टम” की याददाश्त बहुत तेज होती है, खासकर तब जब किसी की कमाई पर पत्रकार ने कलम चला दी हो।

लोकतंत्र का ‘चौथा खंभा’ या ‘बलि का बकरा’?

आज के दौर में अगर आप छत्तीसगढ़ में पत्रकार हैं और सच बोलने की हिमाकत करते हैं, तो बधाई हो! आप पुलिस की ‘हिट लिस्ट’ और अपराधियों की ‘पार्टी लिस्ट’ में टॉप पर हैं। गृह मंत्री जी तबादले का आदेश देते हैं, लेकिन नीचे बैठे “छोटे साहब” उसी आदेश को आरोपियों के साथ बैठकर पकोड़े खाते हुए मजाक में उड़ा देते हैं।

“इंतजाम अली” के नाम से किसे जाना जाता है?

सूत्रों के अनुसार, जांचकर्ता पुलिसकर्मी शिव चंद्रा को एसडीओपी लालचंद मोहले का “पसंदीदा” अधिकारी माना जाता है, यही कारण है कि उन्हें रणनीतिक रूप से थानों में तैनात किया जाता रहा है। स्थानीय स्तर पर उन्हें “इंतजाम अली” के नाम से भी जाना जाता है। आरोप है कि शिव चंद्रा जहां-जहां तैनात रहे—सीपत, रतनपुर, तोरवा, पामगढ़ और कोटा—वहां कोल माफिया, राखड़-मुरुम माफिया, कोल साइडिंग, क्रेशर और रेत माफिया जैसे संगठित अवैध कारोबारियों के करीबी बने रहे। इन क्षेत्रों से लंबी और नियमित उगाही की चर्चाएं लगातार सामने आती रही हैं।

शिव चंद्रा का नाम कुख्यात “मिट्टी तेल स्कैंडल” में भी प्रमुखता से सामने आ चुका है, जिसमें माननीय न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाते हुए उनके खिलाफ अपराध दर्ज करने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद, आरोप है कि वही नेटवर्क अब मस्तूरी थाना क्षेत्र में फिर से सक्रिय किया जा रहा है। इतना ही नहीं, सूत्र बताते हैं कि एसडीओपी कार्यालय में पदस्थ दो आरक्षकों का पचपेड़ी और अन्य थानों में तबादला कई महीनों से आदेश होने के बावजूद रोका गया है, और यह रोक शिव चंद्रा के कहने पर, एसडीओपी के माध्यम से करवाई गई, ताकि कथित उगाही व्यवस्था पर कोई असर न पड़े।

यह पूरा घटनाक्रम पुलिस तंत्र के भीतर जड़ जमा चुके संगठित गठजोड़ की ओर इशारा करता है, जहाँ ईमानदार प्रशासनिक निर्णयों को रोककर अवैध गतिविधियों को संरक्षण दिया जा रहा है।

“क्लाइंट तलाशने” और अवैध उगाही वाली लेडी कौन?

सूत्रों के अनुसार, इस पूरे प्रकरण में एक विवादित महिला की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, जिस पर आरोप है कि वह आरोपियों को संरक्षण देने में सक्रिय भूमिका निभा रही है। बताया जा रहा है कि उक्त महिला को अनुकम्पा नियुक्ति के तहत शासकीय नौकरी मिली है, लेकिन जिस विभाग में वह पदस्थ है, वहाँ केवल औपचारिक रूप से उपस्थिति दर्ज कर (सिर्फ साइन कर) कार्यालय से निकल जाती है। इसके बाद वह न्यायालय परिसर में कथित रूप से “क्लाइंट तलाशने” और अवैध उगाही जैसी गतिविधियों में संलिप्त रहती है। आरोप है कि उसकी यह गतिविधि जिला न्यायालय परिसर में लगे CCTV कैमरों में दर्ज है, जिसकी जांच कर जिला प्रशासन और संबंधित विभाग कठोर कार्रवाई कर सकते हैं। यदि इन आरोपों की निष्पक्ष जांच होती है, तो यह मामला न केवल सेवा नियमों के उल्लंघन का, बल्कि न्यायिक परिसर की गरिमा को ठेस पहुँचाने का गंभीर विषय बनता है।


नोट – छत्तीसगढ़ में अब न्याय के लिए कोर्ट जाने की जरूरत नहीं है। बस किसी ‘खास’ पुलिस अधिकारी से सेटिंग कर लीजिए, पीड़ित खुद-ब-खुद अपराधी बन जाएगा। जय हो इस ‘अदभुत’ कानून व्यवस्था की, जहाँ वर्दी की ओट में अपराध फलता-फूलता है!

Amar Chouhan

AmarKhabar.com एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल है, इस पोर्टल पर राजनैतिक, मनोरंजन, खेल-कूद, देश विदेश, एवं लोकल खबरों को प्रकाशित किया जाता है। छत्तीसगढ़ सहित आस पास की खबरों को पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़ पोर्टल पर प्रतिदिन विजिट करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button