“अबकी बार जनसुनवाई वाली सरकार?” — अडाणी विस्तार से रायगढ़ में फिर सुलगता भूमि अधिग्रहण और प्रदूषण का सवाल

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
नई कोयला खदानों की स्वीकृतियों के साथ छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नक्शा एक बार फिर तेज़ी से बदला जा रहा है। स्टील और पावर सेक्टर में निवेश की गहमागहमी है, तो वहीं दूसरी ओर भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण और जनसुनवाई को लेकर असंतोष भी उतनी ही तेजी से फैल रहा है। रायगढ़ से करीब 25 किलोमीटर दूर पुसौर विकासखंड में स्थित अडाणी पावर के बड़े भंडार प्लांट के विस्तार की खबर ने जिले में एक बार फिर हलचल बढ़ा दी है।
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, अडाणी पावर प्लांट के विस्तार के लिए तीन गांवों—बरपाली, कोतमरा और सरवानी—में कुल 175.855 हेक्टेयर निजी भूमि अधिग्रहित की जा रही है। इसके अतिरिक्त लगभग 20 हेक्टेयर शासकीय भूमि भी परियोजना में शामिल की जाएगी। उद्योग विभाग के माध्यम से जमीन चिन्हांकन और अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इन गांवों में जमीन की खरीदी-बिक्री, डायवर्सन और बटांकन पर फिलहाल रोक लगा दी गई है।
600 से 2200 मेगावाट तक का सफर
दरअसल, बड़े भंडार क्षेत्र में पहले अवंता ग्रुप द्वारा 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के लिए एमओयू किया गया था। बाद में कोरबा वेस्ट पावर प्लांट का अधिग्रहण अडाणी समूह ने कर लिया। अभी यहां केवल 600 मेगावाट ही ऑपरेशनल है। अब अडाणी पावर बचे हुए हिस्से में 800 मेगावाट के दो नए यूनिट स्थापित करने की तैयारी में है। इसके बाद इस प्लांट की कुल क्षमता 2200 मेगावाट हो जाएगी।
कंपनी यहां अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट लगाने जा रही है, जिसे राज्य सरकार से अनुमति मिल चुकी है। केंद्र सरकार ने 28 नवंबर 2024 को विस्तार की स्वीकृति दी थी और जनवरी 2025 में पर्यावरणीय मंजूरी भी प्रदान कर दी गई। इसके बाद राज्य शासन ने भूमि उपलब्ध कराने की औपचारिक प्रक्रिया तेज कर दी।
कोयला, पानी और फ्लाई ऐश—तीन बड़े सवाल
वर्तमान में बड़े भंडार प्लांट में सालाना लगभग 3.25 मिलियन टन कोयले की खपत हो रही है। विस्तार के बाद यह खपत बढ़कर करीब 6.6 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी। प्रस्ताव है कि कोयला ओडिशा के बिजाहन माइंस से लाया जाएगा।
इसके साथ ही फ्लाई ऐश का उत्पादन भी लगभग तीन गुना हो जाएगा। अभी जहां करीब 12 लाख टन ऐश निकल रही है, वहीं विस्तार के बाद यह आंकड़ा 34 लाख टन तक पहुंच सकता है। पानी की आपूर्ति महानदी से लिए जाने की योजना है—जिस पर पहले से ही कई औद्योगिक इकाइयों का दबाव बना हुआ है।
जनसुनवाई और जनाक्रोश
रायगढ़ जिला इस समय जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें “भूमि अधिग्रहण” शब्द ही लोगों में बेचैनी पैदा करने के लिए काफी है। धरमजयगढ़ से तमनार, छाल से पुसौर तक, हर नए प्रोजेक्ट के साथ जनविरोध की चिंगारी सुलगती दिखाई दे रही है। बड़े भंडार क्षेत्र के तीन गांवों में करीब 425 एकड़ निजी जमीन अधिग्रहण की जानकारी सामने आते ही स्थानीय स्तर पर विरोध के स्वर तेज हो गए हैं।
भाजपा सरकार के कार्यकाल में लगातार हो रही जनसुनवाइयों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि जनसुनवाई अब औपचारिकता बनकर रह गई है—जहां सवाल कम और घोषणाएं ज्यादा होती हैं। यही कारण है कि “अबकी बार जनसुनवाई कराने वाली सरकार” जैसी टिप्पणी आम लोगों की जुबान पर चढ़ती जा रही है।
बस्तर से सरगुजा तक एक ही कहानी
रायगढ़ अकेला जिला नहीं है जहां यह स्थिति बन रही हो। बस्तर से लेकर सरगुजा संभाग तक, खनन और ऊर्जा परियोजनाओं के खिलाफ जनसुनवाइयों में विरोध, हंगामा और बहिष्कार की तस्वीरें सामने आती रही हैं। पेसा कानून, पांचवीं अनुसूची और स्थानीय सहमति जैसे मुद्दे बार-बार उठते हैं, लेकिन फैसले प्रायः पहले से तय नजर आते हैं।
प्रदूषण का बढ़ता घेरा
रायगढ़ शहर के चारों ओर पावर और स्टील प्लांटों का घेरा लगातार कसता जा रहा है। लगभग हर हाईवे पर एक बड़ा उद्योग स्थापित हो चुका है या प्रस्तावित है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रफ्तार रही, तो जिले में प्रदूषण को नियंत्रित करना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। हवा, पानी और जमीन—तीनों पर दबाव बढ़ेगा, जिसकी कीमत अंततः स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ेगी।
अडाणी पावर प्लांट का यह प्रस्तावित विस्तार सिर्फ एक औद्योगिक परियोजना नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में एक बड़े सामाजिक और पर्यावरणीय संघर्ष की आहट भी है। सवाल यह है कि सरकार विकास और जनसहमति के बीच संतुलन बना पाएगी या फिर रायगढ़ में एक और आंदोलन जन्म लेगा।