रायगढ़ की तमनार तहसील में गिरदावरी कर्मियों की मेहनत बेकार: भुगतान की राह में प्रशासनिक अड़चनें

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, छत्तीसगढ़। कृषि क्षेत्र की रीढ़ माने जाने वाले गिरदावरी कार्य में जुटे कर्मियों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। तमनार तहसील में डिजिटल क्रॉप सर्वे (डीसीएस) के तहत गिरदावरी का काम समय पर और नियमों के मुताबिक पूरा हो चुका है, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी इन कर्मियों को उनका हकदार पारिश्रमिक नहीं मिला। यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का एक ज्वलंत उदाहरण है, बल्कि उन लोगों की व्यथा को भी उजागर करता है जो खेतों में पसीना बहाकर सरकारी योजनाओं को धरातल पर उतारते हैं। क्या यह देरी महज एक तकनीकी गड़बड़ी है या फिर सिस्टम की गहरी खामियां?
मामले की जड़ में जाकर देखें तो तमनार तहसील के गिरदावरी कर्ता बताते हैं कि उन्होंने प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हुए डीसीएस का कार्य निर्धारित समयसीमा में समाप्त किया। यह सर्वे किसानों की फसलों की स्थिति, क्षेत्रफल और अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने का एक महत्वाकांक्षी अभियान था, जिसका मकसद कृषि नीतियों को और प्रभावी बनाना था। लेकिन सफलता के जश्न से पहले ही कर्मियों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। एक गिरदावरी कर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमने दिन-रात एक करके काम किया। खेतों में घूम-घूमकर डेटा इकट्ठा किया, ऐप पर अपलोड किया। लेकिन अब पैसे के लिए तहसील कार्यालय के चक्कर काटते-काटते थक चुके हैं।”
परेशानी की कहानी और भी दुखद है। इन कर्मियों का आरोप है कि तहसील अधिकारियों ने उनके बैंक खातों और आईएफएससी कोड की जानकारी 10 से 15 बार मांगी, हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर भुगतान रोक दिया। कभी खाते में ‘त्रुटि’ बताई जाती है, तो कभी आईएफएससी कोड को गलत ठहराया जाता है। “हमने हर बार दस्तावेज जमा किए, लेकिन नतीजा सिफर,” एक अन्य कर्मी ने फोन पर बातचीत में कहा। यह स्थिति न केवल इनकी आर्थिक हालत को प्रभावित कर रही है, बल्कि उनके परिवारों पर भी बोझ डाल रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब कार्य पूर्ण हो चुका है, तो भुगतान में यह बार-बार की अड़चनें क्यों? क्या यह जानबूझकर की जा रही देरी है या फिर सिस्टम में कोई बड़ी खामी?
हाल ही में, इन गिरदावरी कर्ताओं ने अपनी आवाज बुलंद करने के लिए कलेक्टर जनदर्शन का सहारा लिया। उन्होंने एक ज्ञापन सौंपकर शीघ्र भुगतान की मांग की है। ज्ञापन में उन्होंने डीसीएस जैसे राष्ट्रीय महत्व के कार्य की सफलता का जिक्र करते हुए कहा कि भुगतान की देरी न केवल उनके मनोबल को तोड़ रही है, बल्कि भविष्य में ऐसे अभियानों की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगा रही है। कलेक्टर कार्यालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मामला जांच के अधीन है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिख रही।
यह घटना रायगढ़ जिले में प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को सामने लाती है। एक तरफ सरकार डिजिटलीकरण को बढ़ावा दे रही है, दूसरी तरफ ग्राउंड लेवल पर काम करने वालों को उनका हक देने में इतनी देर। क्या जिम्मेदार अधिकारी इस पर चुप्पी साधे रहेंगे? गिरदावरी कर्ताओं की मेहनत की कीमत कब तक लंबित रहेगी? स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि जल्द ही भुगतान नहीं हुआ, तो यह मुद्दा और बड़ा रूप ले सकता है। आखिरकार, कृषि सर्वे जैसे कार्यों की सफलता उन लोगों पर टिकी है जो खेतों में उतरकर हकीकत को रिकॉर्ड करते हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह इस लापरवाही को दूर करे और कर्मियों को उनका हक दे, वरना विश्वास की यह दरार और चौड़ी हो सकती है।
समाचार सहयोगी आरजे चौहान