रायगढ़ की कोयला खदानें सवालों के घेरे में: नियम टूटते रहे, मजदूर मरते रहे, निगरानी तंत्र रहा मौन

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
कोयला उत्पादन की रफ्तार बढ़ाने की होड़ में रायगढ़ जिले की खदानें अब मजदूरों के लिए सबसे असुरक्षित कार्यस्थलों में तब्दील होती जा रही हैं। बीते दो वर्षों के भीतर जिले की कम से कम छह कोयला खदानों में सुरक्षा नियमों के उल्लंघन और गंभीर लापरवाही के मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद हालात में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। हैरानी की बात यह है कि जिस जिले में डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ माइंस सेफ्टी (डीजीएमएस) का मुख्यालय स्थित है, वहीं सुरक्षा मानकों की खुलेआम अनदेखी हो रही है।
जिंदल पावर एंड स्टील लिमिटेड, सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, अंबुजा सीमेंट्स जैसी बड़ी औद्योगिक इकाइयों की खदानों में निरीक्षण के दौरान सुरक्षा खामियां दर्ज की गईं। कोयला खदानों में काम कर रहे श्रमिकों के लिए न तो पर्याप्त सुरक्षा उपकरण सुनिश्चित किए जा रहे हैं और न ही कोल डस्ट से बचाव के प्रभावी इंतजाम हैं। नतीजा यह है कि फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है और हादसों में मजदूर अपनी जान गंवा रहे हैं।
स्थानीय जानकारों और श्रमिक संगठनों का आरोप है कि खदानों में होने वाली दुर्घटनाओं को सामने लाने के बजाय माइंस प्रबंधन अक्सर उन्हें दबाने की कोशिश करता है। किसी हादसे के बाद रिपोर्टिंग में जानबूझकर देरी की जाती है, ताकि सबूत मिटाने और जवाबदेही से बचने का समय मिल सके। निरीक्षण के दौरान जब सुरक्षा मानकों में कमी पाई जाती है, तो अधिकांश मामलों में केवल समझाइश देकर खानापूर्ति कर दी जाती है। कठोर और निर्णायक कार्रवाई का अभाव ही लापरवाही को बढ़ावा दे रहा है।
बीते दो वर्षों में जिन खदानों पर डीजीएमएस ने नोटिस जारी किए, उनमें गारे पेलमा 4/6 (जेएसपीएल), गारे पेलमा 4/2 और 4/3 (जेपीएल), गारे पेलमा 4/8 (अंबुजा सीमेंट्स), गारे पेलमा 4/7 (सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स), गारे पेलमा 4/1 (जेपीएल) और गारे पेलमा 4/4 (हिंडाल्को इंडस्ट्रीज) शामिल हैं। बावजूद इसके, जमीनी स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था में कोई उल्लेखनीय सुधार दिखाई नहीं देता।
खान सुरक्षा को लेकर प्रशासनिक उदासीनता का एक गंभीर उदाहरण 19 अप्रैल 2024 को एसईसीएल की बरौद कोयला खदान में हुए हादसे के रूप में सामने आया था। खनन के बाद बनाए गए जलभराव क्षेत्र में एक विक्षिप्त व्यक्ति को बचाने के प्रयास में सहायक सुरक्षा उप निरीक्षक प्रतापसिंह, वरिष्ठ सुरक्षा प्रहरी नेहरू राम और मैकेनिकल हेल्पर फिटर उमाशंकर यादव पानी में उतरे। दलदल में फंस जाने से उमाशंकर यादव और नेहरू राम की मौके पर ही मौत हो गई। यह हादसा न केवल सुरक्षा प्रबंधन की पोल खोलता है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि इतनी गंभीर घटना के बावजूद डीजीएमएस द्वारा कोई ठोस संज्ञान क्यों नहीं लिया गया।
रायगढ़ की कोयला खदानों में बढ़ती लापरवाही अब केवल औद्योगिक अनुशासन का मामला नहीं रह गई है, बल्कि यह सीधे-सीधे मजदूरों की जान से जुड़ा सवाल बन चुका है। जब तक निरीक्षण और कार्रवाई की प्रक्रिया को सख्ती से लागू नहीं किया जाता, तब तक खदानों में काम करने वाले श्रमिक हर दिन जान जोखिम में डालकर उतरते रहेंगे। सवाल यही है कि क्या कभी सुरक्षा को उत्पादन से ऊपर रखने की मानसिकता विकसित होगी, या फिर हादसों की यह श्रृंखला यूं ही जारी रहेगी?