रायगढ़ औद्योगिक क्षेत्र: particulate matter प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
रायगढ़ (छत्तीसगढ़) — छत्तीसगढ़ के कोयला-आधारित औद्योगिक हब रायगढ़ के आसपास वायु गुणवत्ता की नवीनतम जांच से यह स्पष्ट होता है कि PM10 और PM2.5 कणों का स्तर राष्ट्रीय मानकों से नियमित रूप से ऊपर बना हुआ है, जिससे स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
हाल के संयुक्त पर्यावरण निगरानी डेटा (अक्टूबर-नवंबर 2024) के अनुसार, रायगढ़ शहर में विभिन्न मॉनिटरिंग स्टेशनों पर PM10 की 24-घंटे औसत सांद्रता 76 से 148 µg/m³ तक दर्ज की गई थी, जबकि PM2.5 का स्तर 49 से 82 µg/m³ के बीच रहा — दोनों ही मानक की अनुमत सीमा से ऊपर या आसपास हैं। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) के तहत PM10 का 24-घंटे मान 100 µg/m³ और PM2.5 का 60 µg/m³ है, और इन औद्योगिक क्षेत्रों में अक्सर इनसे ऊपर के आंकड़े देखे जाते हैं।
ये मानदंड दर्शाते हैं कि औद्योगिक गतिविधियाँ — विशेषकर जिंदल स्टील प्लांट, पूंजीपथरा औद्योगिक पार्क तथा कोयला-खनन और परिवहन — निरंतर वायु में सूक्ष्म कणों का भारी उत्सर्जन कर रहे हैं। भारी ट्रकों और कच्चे माल की आवागमन से उड़ने वाला धूल कण (डस्ट) स्थानीय हवा में PM10 और PM2.5 को बढ़ाता है, खासकर शुष्क मौसम और कम वायु परिसंचरण के समय।
आज की स्थिति: प्रदूषण का ‘मध्यम-उच्च’ स्तर
दक्षिण-मध्य छत्तीसगढ़ सहित आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता के ताज़ा अनुमान से पता चलता है कि PM2.5 अक्सर 70-150 µg/m³ के बीच रहता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 25 µg/m³ वार्षिक मान से कहीं अधिक है और स्वास्थ्य जोखिम को बढ़ाता है। इस सीमा से ऊपर के स्तर पर श्वसन संबंधी परेशानियाँ, हृदय रोग और फेफड़ों की समस्या जैसे जोखिम तीव्र रूप से उभरते हैं। (आपके मूल डेटा के संदर्भ के अनुरूप)
इसी तरह, नजदीकी शहरों में भी PM2.5 स्तर सामान्यतः 60-90 µg/m³ के आसपास रहने की रिपोर्ट हैं, उदाहरण स्वरूप रामानुजनगर में 82.49 µg/m³ दर्ज हुआ है, जो मध्यम स्तर प्रदूषण का संकेत देता है।
स्वास्थ्य प्रभाव और स्थानीय चिंताएँ
छोटे कणों वाला PM2.5 गहरे फेफड़ों तक प्रवेश कर सकता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव — जैसे क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, हृदय की बीमारियाँ और श्वसन तंत्र की प्रतिरोध क्षमता में कमी — का खतरा बढ़ाता है। बुजुर्गों, बच्चों और पहले से श्वसन संबंधी रोग वाले लोगों के लिए जोखिम विशेष रूप से गंभीर होता है।
स्थानीय निवासियों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया है कि शीतल ऋतु के दौरान तापमान उल्टा होने के कारण धूल कण वातावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं, जिससे प्रदूषण वृद्धि और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर होता है।
प्रदूषण नियंत्रण की आवश्यकता
राज्य पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड और औद्योगिक प्रबंधन के बीच गठित पर्यावरण समिति पहले ही उद्योगों पर नज़र रख रही है, लेकिन समेकित, त्रैमासिक वायु गुणवत्ता रिपोर्टों के नियमित प्रकाशन और सत्यापन को और अधिक पारदर्शी बनाना आवश्यक है। औद्योगिक इकाइयों को अधिक प्रभावी फिल्टरिंग तंत्र, धूल नियंत्रण उपाय और उत्सर्जन-मानदंडों का सख़्ती से पालन करना चाहिए, ताकि दीर्घकालिक प्रदूषण कम किया जा सके।