सिंघल स्टील प्लांट में मजदूर की मौत: सुरक्षा चूक उजागर, सुपरवाइजर पर लापरवाही का केस दर्ज

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
सिंघल स्टील प्लांट में काम के दौरान दुर्घटना में एक श्रमिक की मौत के मामले ने एक बार फिर औद्योगिक सुरक्षा व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पुलिस जांच में स्पष्ट हुआ है कि घटना के वक्त मजदूर को आवश्यक सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गए थे। इस लापरवाही के लिए कंपनी के सुपरवाइजर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।
10 सितंबर की घटना, 12 सितंबर को हुई मौत
पुलिस के अनुसार पूंजीपथरा थाना क्षेत्र के ग्राम तराईमाल स्थित सिंघल स्टील प्लांट में 10 सितंबर को 40 वर्षीय श्रमिक बाबर अली पिता आमोबली काम कर रहा था। कार्य के दौरान वह लोहे के एक खंभे से नीचे गिर पड़ा। गिरावट इतनी गंभीर थी कि उसे सिर, छाती और पैर में गहरी चोटें आईं।
घायल को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन 12 सितंबर को उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई। इसके बाद अस्पताल से मिली सूचना के आधार पर पूंजीपथरा पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की।
जांच में सामने आई चौंकाने वाली लापरवाही
प्राथमिक जांच में यह तथ्य उजागर हुआ कि जिस समय बाबर अली प्लांट के भीतर ऊंचाई पर कार्य कर रहा था, उस समय सुरक्षा बेल्ट, हेलमेट और अन्य अनिवार्य उपकरण उपलब्ध नहीं थे।
जांच अधिकारियों के अनुसार, यह कार्य सुपरवाइजर राका सिंह सिदार की निगरानी और निर्देश में कराया जा रहा था, जहां सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया।
पुलिस ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए सुपरवाइजर के खिलाफ बीएनएस की धारा 289 और 106(1) के तहत अपराध पंजीबद्ध कर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है।
औद्योगिक सुरक्षा पर फिर उठे सवाल
यह घटना कोई पहली नहीं है। औद्योगिक क्षेत्रों में सुरक्षा उपकरणों की अनदेखी लंबे समय से विवाद का विषय रही है। मजदूर संगठनों का कहना है कि उत्पादन के दबाव में प्रबंधन अक्सर सुरक्षा नियमों की अनदेखी कर देता है, जिसकी कीमत मजदूरों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है।
एक वरिष्ठ श्रमिक नेता ने कहा—
> “कारखानों में सुरक्षा प्रशिक्षण और उपकरण सिर्फ कागजों में दिखते हैं। मज़दूर हर दिन जोखिम उठाकर काम करते हैं, और हादसे के बाद दोष उन्हीं पर मढ़ दिया जाता है।”
परिजनों में दुख, न्याय की मांग
बाबर अली की मौत के बाद उसके परिवार में गहरा शोक है। परिजनों ने पुलिस कार्रवाई का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही मांग की है कि कंपनी प्रबंधन के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई हो तथा परिवार के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित किया जाए।
गांव के लोगों का कहना है कि यदि प्लांट में सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होती, तो यह हादसा टाला जा सकता था।
क्या बदलेगा कुछ? या फिर मामला ठंडे बस्ते में?
पुलिस कार्रवाई ने भले थोड़ी उम्मीद जगाई हो, लेकिन क्षेत्र के लोग यह भी कहते हैं कि अधिकतर मामलों में उद्योग प्रबंधन कुछ दिनों बाद दबाव बनाकर या आपसी समझौते से मामले को रफा-दफा कर देता है। मजदूर हितों की लड़ाई अक्सर अधूरी ही रह जाती है।
अब देखना यह है कि बाबर अली के मामले में जांच कितनी आगे बढ़ती है और क्या यह मामला मजदूरों की सुरक्षा के लिए एक मिसाल बनता है, या फिर सैकड़ों पुराने मामलों की तरह धीरे-धीरे फाइलों में गुम हो जाएगा।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान