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“वन समुदाय को 7 करोड़ का मुआवज़ा: सराईटोला–मुड़ागांव में महाजेनको की पहल से तेज हुई खनन-वनाधिकार बहस”

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम

सराईटोला–मुड़ागांव से ग्राउंड रिपोर्ट / रायगढ़।

सराईटोला–मुड़ागांव क्षेत्र पिछले कुछ दिनों से असाधारण हलचल के केंद्र में है। वजह—महाजेनको (MAHAGENCO) का वह 7 करोड़ रुपये का चेक, जिसने यहां की ग्राम सभाओं से लेकर प्रशासनिक हलकों तक नई बहस छेड़ दी है। यह भुगतान वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत Forest Community Rights (FCR) की मान्यता और उसके आर्थिक प्रतिफल से जुड़ा है, जिसे लेकर स्थानीय समुदाय लगभग 3 महीने से संघर्षरत था।

पहला बड़ा उदाहरण, जब किसी सरकारी पावर कंपनी ने वन समुदाय को सीधे किया इतना बड़ा भुगतान

11 दिसंबर 2023 की तिथि वाले इस चेक को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि मध्य भारत में यह शायद पहला मौका है जब किसी ऊर्जा उत्पादन कंपनी ने इस पैमाने पर समुदाय को प्रत्यक्ष मुआवजा दिया है। चेक पर भुगतान का कारण साफ शब्दों में दर्ज है—

“Forest Community Rights Payment for Compartment 740 P and 741 P”

यानी महाजेनको की प्रस्तावित खदान परियोजना के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले इन दोनों कम्पार्टमेंट्स में समुदाय के वैधानिक वनाधिकार मौजूद हैं, जिनकी भरपाई अनिवार्य है।

किन्हें मिला भुगतान का अधिकार

चेक पर जिन नामों का उल्लेख है—

अमृतलाल भगत

जहाजराम भगत

भरतलाल सिदार

या धारक (Or Bearer)

यह स्पष्ट संकेत है कि भुगतान किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि समुदाय के प्रतिनिधि तंत्र के जरिये ग्राम सभा के हित में किया जा रहा है।


वनाधिकार कानून के वास्तविक क्रियान्वयन की दिशा में ‘उम्मीद की नई दस्तक’

सामुदायिक नेतृत्व और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह भुगतान सिर्फ आर्थिक मुआवजा नहीं बल्कि यह स्वीकारोक्ति भी है कि वनाधिकार अधिनियम अब कागजों का कानून नहीं, बल्कि कंपनियों के लिए बाध्यकारी प्रक्रिया बन चुका है।

एक ग्रामीण प्रतिनिधि ने कहा—

> “इतने वर्षों में हमने संघर्ष तो बहुत किया, पर पहली बार किसी बड़ी कंपनी ने FCR के दायित्व को स्वीकार करते हुए इतनी बड़ी राशि दी है। यह अधिकारों की पहचान का संकेत है, लेकिन सतर्कता की जिम्मेदारी भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है।”



गांवों में दो तरह की आवाजें—खुशी भी, चिंता भी

चेक हाथ में आते ही गांव में एक ओर उत्साह दिखा—लोग इसे दशक भर पुराने संघर्ष की जीत बता रहे हैं। पर दूसरी तरफ आशंकाएं भी उतनी ही गहरी हैं। कई ग्रामीणों का मानना है कि मुआवजे का अर्थ यह नहीं कि आगे वनभूमि पर दबाव नहीं पड़ेगा।

एक स्थानीय महिला ने कहा—

> “पैसा आज मिला है, पर जंगल गया तो हमारी आजीविका ही खत्म हो गई। हम इस बार कोई गलती नहीं करेंगे।”



यह प्रतिक्रिया बताती है कि समुदाय को भुगतान स्वीकार है, पर खनन के संभावित असर को लेकर सतर्कता बरकरार है।



खनन परियोजनाओं के लिए वनाधिकार अनुपालन अब ‘लाज़िमी चरण’

किसी भी खदान परियोजना को आगे बढ़ाने से पहले तीन प्रक्रियाएँ कानूनन अनिवार्य हैं—

ग्राम सभा की स्पष्ट और स्वतंत्र सहमति,

वनाधिकार दावों की पूरी मान्यता,

और उचित मुआवजा/पुनर्वास।


महाजेनको का यह भुगतान इन प्रक्रियाओं की प्रारंभिक स्वीकृति जैसा ही माना जा रहा है, हालांकि आगे की कई तकनीकी मंजूरियाँ और ग्राम सभा की औपचारिक सहमतियाँ अभी बाकी हैं।

सूत्रों का कहना है कि अगले चरण में और भी दावों पर विचार किए जाने की संभावना है।



क्या यह जीत है, या संघर्ष के नए दौर की शुरुआत?

सराईटोला–मुड़ागांव के लिए 7 करोड़ रुपये की यह राशि बेशक एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन इसके साथ ही यह संकेत भी है कि आने वाले महीनों में यहां खनन गतिविधियों, पर्यावरणीय प्रक्रियाओं, मुआवजा और विस्थापन संबंधी लड़ाई की रफ्तार तेज होने वाली है।

समुदाय की आवाज साफ है—

> “राशि हमने स्वीकार की है, पर क्षेत्र का भविष्य अभी भी चर्चा का विषय है। संघर्ष खत्म नहीं हुआ।”


महाजेनको का यह कदम एक मिसाल भी है और एक चुनौती भी—मिसाल इसलिए कि बड़ी कंपनियों द्वारा FCR को स्वीकारना दुर्लभ है, और चुनौती इसलिए कि इस भुगतान के बाद समुदाय, कंपनी और प्रशासन—तीनों की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ़ जाती है।

सराईटोला–मुड़ागांव की यह कहानी केवल 7 करोड़ के चेक की नहीं, बल्कि वन अधिकारों, विकास मॉडल और समुदाय की संघर्ष-शक्ति के बीच खड़े एक मोड़ की कहानी है।

समाचार सहयोगी रूपकिशोर, मोहित

Amar Chouhan

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