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राशन दुकानों में संगठित गबन का खेल: 12 हज़ार क्विंटल चावल गायब, वसूली के नाम पर सिर्फ कागज़ी कार्रवाई

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़। जिले की सार्वजनिक वितरण प्रणाली वर्षों से भ्रष्टाचार के भंवर में फंसी है, लेकिन हालात हर साल और बदतर होते जा रहे हैं। छाल क्षेत्र के बेहरामुड़ा गाँव से पहुंचे ग्रामीणों की शिकायतों ने एक बार फिर इस पूरे तंत्र की परतें खोल दी हैं—जहां शासन की योजनाओं का अनाज हितग्राहियों तक पहुँचने के बजाय, बीच के रास्ते में ही गायब हो जाता है।

साल 2025 के मार्च महीने में राज्य सरकार ने सभी उचित मूल्य दुकानों का भौतिक सत्यापन करने का आदेश दिया था। जांच टीम जब दुकानों तक पहुंची, तो नजारा चौंकाने वाला था। जिले की 110 दुकानों में कुल 12,190 क्विंटल चावल का पता ही नहीं था। सरकारी आंकड़ों में इसकी कीमत 5 करोड़ रुपए से भी ज्यादा बैठती है। इतना ही नहीं—चना, शक्कर, नमक और केरोसिन तक में गड़बड़ियाँ मिलीं।

जांच खुली, लेकिन कार्रवाई अंधेर में

खाद्य विभाग की रिपोर्ट में साफ लिखा था कि गबन की वसूली आरआरसी के जरिए कराई जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि आरआरसी फाइलें एसडीएम और तहसीलदारों के टेबल पर आज भी धूल फांक रही हैं।
जिन दुकानों में गबन पकड़ा गया, वहां दुकानदारों को समायोजन के नाम पर आने वाले महीनों के कोटे से कटौती की छूट दे दी गई। मतलब—जिनके लिए अनाज आया, उन्हीं के हिस्से से कटौती करके आंकड़े दुरुस्त किए जा रहे हैं।

स्पष्ट है कि गड़बड़ी करने वाले दुकानदारों को कुर्की का डर नहीं, बल्कि व्यवस्था की मौन सहमति हासिल है। सरकार का चावल वापस लाभार्थी तक नहीं, बल्कि मिलों के गोदामों में जाकर ‘एडजस्ट’ हो जाता है।

क्षेत्रवार चोरी का नक्शा

भौतिक सत्यापन में गबन की सूची भी कम चौकाने वाली नहीं है—

धरमजयगढ़ – 49 दुकानें

रायगढ़ ग्रामीण – 20

रायगढ़ शहर – 15

खरसिया – 9

तमनार – 6

लैलूंगा ग्रामीण – 6

लैलूंगा शहरी – 2

घरघोड़ा – 2


इन सभी स्थानों पर या तो अनाज गायब मिला, या रजिस्टरों में मिलान में भारी अंतर पाया गया।

विधानसभा में उठा था मुद्दा, लेकिन…

पूरी व्यवस्था में बड़े स्तर की लापरवाही उजागर होने के बाद मामला विधानसभा तक पहुंचा। सवाल उठे कि 5 करोड़ की चोरी का एक रुपए भी वसूला क्यों नहीं गया? अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं?
लेकिन सरकारी जवाब बस इतना था—“रिकवरी की प्रक्रिया जारी है।”
जमीनी सच्चाई यह है कि प्रक्रिया सिर्फ कागजों पर चल रही है।

गांवों में नाराजगी, सिस्टम में खामोशी

बेहरामुड़ा के ग्रामीणों ने बताया कि महीनों से राशन कम दिया जा रहा है, जबकि रजिस्टरों में पूरा वितरण दिखाया जाता है। शिकायतें ऊपर तक जाती हैं, लेकिन नीचे तक सिर्फ नोट शीट का खेल चलता है।
राशन की चोरी कोई नई बात नहीं, लेकिन इसकी व्यापकता और सरकारी स्तर पर मिली छूट ने इसे एक संगठित आर्थिक अपराध का रूप दे दिया है।

क्यों नहीं होती कार्रवाई?

दुकानों के ठेके ऐसे लोगों को दिए जाते हैं जिनके नाम पर संपत्ति नहीं होती—वसूली नामुमकिन।

आरआरसी जारी होने के बाद भी कुर्की की कार्रवाई नहीं।

विभागीय अधिकारी जांच को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाते।

असली वितरक और आढ़तियों की मिलीभगत की परतें हमेशा पर्दे के पीछे रखी जाती हैं।




राशन दुकानों में हो रहा यह गबन महज़ अनाज की चोरी नहीं, बल्कि अधिकारों की खुली लूट है—जहां लाभार्थी का हक़, विभागीय लापरवाही और मिलीभगत के बोझ तले दब जाता है।
5 करोड़ की चोरी, दर्जनों जांच और ढेरों फाइलें… पर कार्रवाई शून्य।
जिले में पीडीएस सिस्टम आज भी उसी पुरानी बीमारी से ग्रस्त है—गड़बड़ी पकड़ी जाती है, मगर दोषी नहीं।

Amar Chouhan

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