जब आत्मसम्मान जागता है, तब जीवन की राहें खुद-ब-खुद खुलने लगती हैं” – पद्मिनी गुप्ता

सफलता की कहानी खुद की जुबानी
फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, तमनार।
ग्राम जरीडीह की रहने वाली पद्मिनी गुप्ता आज जिले भर में ‘बी.सी. सखी पद्मिनी’ के नाम से जानी जाती हैं, लेकिन कुछ वर्ष पहले तक उनकी दुनिया घर की चारदीवारी और आर्थिक मजबूरियों तक सीमित थी। हर छोटी–बड़ी ज़रूरत के लिए पति पर निर्भर रहना उन्हें अंदर तक तोड़ता था। आत्मसम्मान पर लगातार लगती चोटों के साथ 14 साल गुजर गए।
फिर मार्च 2019 में उनकी जिंदगी ने करवट ली—जब वे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन “बिहान” से जुड़ीं। समूह का नाम था जय मां अर्पाजिता स्व-सहायता समूह। कुछ ही समय बाद मई 2019 में पद्मिनी को संकुल संगठन में बी.सी. सखी के रूप में चयनित किया गया। बिहान की ओर से मिले 68,000 रुपये के सहयोग से उन्होंने लैपटॉप, प्रिंटर और मॉर्फो डिवाइस खरीदा और अपनी आजीविका की नई शुरुआत की।
पद्मिनी अब गांव–गांव जाकर बैंकिंग लेनदेन, आयुष्मान कार्ड, ई-श्रम कार्ड, पैन कार्ड, पीएम-ईकेवाईसी, तेंदूपत्ता केवाईसी सहित कई सरकारी सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं। इन सेवाओं से उन्हें प्रतिमाह लगभग 6,000 से 7,000 रुपये तक की आय होने लगी।

जो महिला कभी गांव के बाहर तक नहीं जाती थी, वह आज पूरे जिले के लगभग हर ब्लॉक की दीदियों से परिचित है। यही नहीं, अपनी आय को बढ़ाने के लिए उन्होंने समूह से कम ब्याज दर पर 4 लाख रुपये का लोन लिया और सेंटरिंग प्लेट का काम शुरू किया। महज 5 महीने में 51,000 रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि आत्मनिर्भरता सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि एक संकल्प है।
आज पद्मिनी की आय उनके पति से भी अधिक है। उनके चेहरे पर आत्मविश्वास है, और दिल में कृतज्ञता—
“बिहान ने मुझे नई दिशा दी, नई पहचान दी। आज मैं आत्मनिर्भर हूं और गर्व से कह सकती हूं कि मैं अपने परिवार की ताकत हूं।”
बिहान मिशन से जुड़कर पद्मिनी जैसी हजारों महिलाओं के जीवन में बदलाव आ रहा है। पद्मिनी अंत में बार-बार दोहराती हैं—
“जय बिहान… जय बिहान… जय बिहान।”
— बी.सी. सखी : पद्मिनी गुप्ता, ग्राम जरीडीह, हिंझर ग्राम पंचायत, तमनार विकासखंड, जिला रायगढ़ (छत्तीसगढ़)