जल–जंगल–जमीन की पुकार: आदिवासी समाज का विराट प्रदर्शन, बिरसा मुंडा जयंती पर अधिकारों की रक्षा का संकल्प

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम धर्मजयगढ़।
धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती और संविधान दिवस के अवसर पर धर्मजयगढ़ के दशहरा मैदान में बुधवार को आदिवासी समाज का ऐतिहासिक जमावड़ा देखने को मिला। छत्तीसगढ़ सर्व जनाब समाज द्वारा आयोजित इस संयुक्त समारोह में आसपास के सैकड़ों ग्रामीण, युवा, महिलाएं और बच्चे शामिल हुए। कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति, परंपरा और संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण का गूंजता संदेश पूरे क्षेत्र में सुनाई दिया।
कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक लालजीत सिंह राठिया मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। समाज के वरिष्ठजन, ग्राम प्रमुख, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि और अनेक सामाजिक समूह भी मंच पर मौजूद रहे।
संविधान का सामूहिक वाचन—अधिकारों की रक्षा का संकल्प
समारोह की शुरुआत बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण और श्रद्धांजलि के साथ हुई। इसके बाद संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक वाचन किया गया। जनाब समाज ने जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा तथा आदिवासी समुदाय को मिले संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया।
मंच से वक्ताओं ने कहा कि—
“धरती आबा बिरसा मुंडा का आंदोलन जन–अधिकारों की लड़ाई का इतिहास है, और वही संघर्ष आज भी समाज को प्रेरित कर रहा है।”
भूमि, पहचान और सांस्कृतिक अस्तित्व पर गहन चर्चा
कार्यक्रम में वक्ताओं ने आदिवासी समाज के समक्ष खड़े सबसे बड़े प्रश्न—भूमि-अधिग्रहण, खनन परियोजनाओं का विस्तार, वनाधिकार के लंबित प्रकरण और सांस्कृतिक पहचान—पर विस्तृत चर्चा की।
वक्ताओं ने कहा कि विकास की दौड़ में आदिवासी समाज की जमीन, संस्कृति और अधिकारों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। कई क्षेत्रों में अधिग्रहण और खनन से विस्थापन का डर बढ़ा है, जिस पर सरकार को पारदर्शी और जन–हितैषी नीतियों के साथ काम करना चाहिए।
स्थानीय बुजुर्गों ने सुनाया साहस का सच—“यह जमीन हमारे पुरखों की है”
कार्यक्रम में मंच से एक वास्तविक घटना साझा की गई जिसने सभा को भावुक कर दिया। बताया गया कि कुछ वर्ष पहले एक आदिवासी परिवार ने अपनी पारंपरिक जमीन पर कब्जा करने के प्रयास का खुलेआम विरोध कर दिया था। परिवार ने कहा—
“यह जमीन हमारे पुरखों की है। इसे न बेचेंगे और न किसी कीमत पर छोड़ेंगे।”
वक्ताओं ने कहा कि यही साहस बिरसा मुंडा की विचारधारा की जीवंत मिसाल है।
मांगपत्र तैयार—खनन, वनाधिकार, शिक्षा–रोजगार पर जोर
समारोह के अंत में सर्व समाज की ओर से एक विस्तृत मांगपत्र तैयार कर राज्यपाल व मुख्यमंत्री के नाम भेजने की घोषणा की गई। इसमें प्रमुख मांगें शामिल हैं—
अनियंत्रित खनन और अधिग्रहण पर रोक
लंबित वनाधिकार दावों का त्वरित निपटारा
आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के लिए विशेष पहल
युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाना
परंपरागत ग्राम सभा अधिकारों का कड़ाई से पालन
नारे बने कार्यक्रम की पहचान
रैली के दौरान सैकड़ों की भीड़ “जल-जंगल-जमीन हमारा है”, “जनाब एकता जिंदाबाद” और “बिरसा मुंडा अमर रहें” जैसे नारों से गूंज उठी।
आदिवासी समाज की यह एकजुटता क्षेत्र में अधिकारों और अस्तित्व की लड़ाई को मजबूती देती दिखाई दी।
समाचार सहयोगी केशव चौहान