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धरमजयगढ़ में खनन महाविस्तार की आहट: 6 नई कोयला खदानें, 56 गांव संकट में—किसानों–आदिवासियों की बढ़ी बेचैनी

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
रायगढ़/धरमजयगढ़ | 19 नवंबर 2025

धरमजयगढ़ का भूगोल और भविष्य, दोनों एक बार फिर कोयला खनन के विशाल दबाव के बीच खड़े दिखाई दे रहे हैं। अदानी समूह की पुरुंगा अंडरग्राउंड खदान को लेकर उठे विरोध का धुआं अभी ठहरा ही था कि इसी बीच दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) और कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन के नई खदानों के सर्वे ने पूरे क्षेत्र में हलचल मचा दी है।

ब्लॉक में 6 नई कोयला खदानों के प्रस्ताव और 56 गांवों के संभावित प्रभावित होने की सूचना ने न सिर्फ किसानों और आदिवासी समुदाय को बेचैन किया है, बल्कि पूरे इलाके में एक बड़ा सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय सवाल भी खड़ा कर दिया है—“आखिर धरमजयगढ़ किस दिशा में जा रहा है?”



मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार नीति—सब कुछ धुंधला, विरोध तेज़

धरमजयगढ़ में ग्रामीणों की नाराज़गी का सबसे बड़ा कारण है—स्पष्ट, लिखित और पारदर्शी नीति का अभाव।
किसानों का कहना है कि:

भूमि अधिग्रहण का मुआवजा कैसे तय होगा?

विस्थापन किस प्रक्रिया से होगा?

परिवारों को मिलने वाले रोजगार की शर्तें क्या रहेंगी?


इन सभी बिंदुओं पर प्रशासन और कंपनियों से कोई औपचारिक जानकारी नहीं मिल रही। ग्रामीणों का आरोप है कि नीतियाँ अस्पष्ट रखी जा रही हैं, जिससे अविश्वास और विरोध स्वाभाविक रूप से बढ़ रहा है।

6 नई खदानों की आहट—56 गांव सीधे निशाने पर

सूत्रों के अनुसार, जिन प्रमुख खदानों पर तेजी से कार्यवाही चल रही है, वे इस प्रकार हैं—

1. दुर्गापुर ओपन कास्ट (एसईसीएल)

2014 से पूर्व आवंटित

नगर पंचायत क्षेत्र के 3 वार्ड + 7 गांव होंगे प्रभावित


2. दुर्गापुर–तुराईमार और दुर्गापुर–सरिया (कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन)

पूर्व में डीबी पावर और वेदांता समूह को आवंटित

बाद में दोनों ब्लॉकों का मर्ज

नगर पंचायत के वार्ड 9 और 10 सहित लगभग 7 गांव पूरी तरह प्रभावित


3. शेरबंद कोल ब्लॉक (नीलकंठ कोल माइनिंग प्रा.लि.)

रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में

लगभग 5 गांव प्रभावित

एक बिरहोर जनजाति गांव पूर्ण विस्थापन की कगार पर


4. बायसी कोल ब्लॉक (इंद्रमणि मिनरल्स)

18 जनवरी 2024 को आवंटित


5. फटामुंडा कोल ब्लॉक (एलोम सोलर प्रा.लि.)

2025 में अधिग्रहित


6. पुरुंगा अंडरग्राउंड (अदानी समूह)

जनसुनवाई विवाद के कारण पहले से चर्चा में


कुल मिलाकर लगभग 56 गांव इन परियोजनाओं से प्रभावित हो सकते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ जमीन खोने का सवाल नहीं है—यह सदियों पुरानी संस्कृति, सामाजिक जीवन और जंगल आधारित आजीविका के टूटने का संकट है।

“अदानी तो आया ही था, अब एसईसीएल–कर्नाटक भी आ गए”—ग्रामीणों की बढ़ती दहशत

पहले अदानी परियोजना, और अब दो नए बड़े कॉर्पोरेट समूहों की एंट्री।
किसानों को डर है कि धरमजयगढ़ अब तेजी से एक बड़े कोयला हब में बदला जा रहा है।

कई ग्रामीणों का सवाल—
“हमारी जमीन, हमारी पहचान, और हमारे अधिकार किसके हाथों में सौंपे जा रहे हैं?”



मुआवजा निर्धारण में भारी विसंगतियाँ—आदिवासी क्षेत्र में जमीन की कीमतें ‘कृत्रिम रूप से’ कम

सबसे गंभीर आरोप यह है कि—
जमीन का बाजार मूल्य वर्षों से अपडेट नहीं किया गया, खासकर आदिवासी बहुल गांवों में।

2011 से कई क्षेत्रों में रजिस्ट्री बंद

धरमजयगढ़, दुर्गापुर, बायसी, मेडरमार समेत कई इलाकों में मूल्य संशोधन नहीं

किसान आरोप लगा रहे हैं कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने जमीन का मूल्य जानबूझकर कम रखा गया है


ऊपर से छत्तीसगढ़ पुनर्वास नीति भी 14 साल से बिना संशोधन के लागू है—

पड़त भूमि: ₹6 लाख/एकड़

असिंचित भूमि: ₹8 लाख/एकड़

सिंचित भूमि: ₹10 लाख/एकड़

ग्रामीणों का कहना है कि यह मूल्य आज की स्थिति में असंगत और अप्रासंगिक हैं।



अनुसूचित क्षेत्र, पर पेसा कानून की अनदेखी—ग्रामसभाएं कागजी खानापूर्ति

धरमजयगढ़ अनुसूचित क्षेत्र है, जहाँ पेसा कानून ग्रामसभा को सर्वोच्च अधिकार देता है।
लेकिन ग्रामीणों का आरोप है—

ग्रामसभाओं की अनुमति नहीं ली जाती

जनसुनवाई औपचारिकता बनकर रह गई है

भूमि अधिग्रहण में परंपराओं की उपेक्षा

सर्वे भी कई बार बिना जानकारी के


इसी के चलते ग्रामीण संगठनों द्वारा अब “धरमजयगढ़ में पेसा पूर्ण रूप से लागू करो” अभियान तेज हो गया है।



विकास बनाम विनाश—धरमजयगढ़ का निर्णायक मोड़

विशेषज्ञ मानते हैं कि 6 खदानें शुरू होने के बाद—

बड़े पैमाने पर वन कटाई

आदिवासी गांवों का विस्थापन

जलस्रोतों का दोहन

पर्यावरणीय असंतुलन

वन्यजीवों पर गंभीर असर


ये सभी खतरे लगभग तय हैं।

ग्रामीणों का स्पष्ट मत—
“हमें विकास चाहिए, पर हमारे अधिकारों और अस्तित्व की कीमत पर नहीं।”


प्रशासन पर सवाल—“बिना अनुमति सर्वे, कंपनियों के दबाव में फैसला?”

ग्रामीण संगठन का आरोप है कि—

प्रशासन कंपनियों के दबाव में

गांवों में चुपचाप सर्वे कराने की कोशिश

पेसा और वनाधिकार कानून की अनदेखी


लोगों ने चेतावनी दी है:
“यदि पेसा का पालन नहीं हुआ, तो संघर्ष तेज होगा।”

डेस्क रिपोर्ट

Amar Chouhan

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