घरघोड़ा POCSO कोर्ट का सख्त फैसला — नाबालिग पीड़िता से दुष्कर्म करने वाले बिरन कुजूर को 20 साल सश्रम कारावास, ₹10,000 अर्थदंड की सजा

रायगढ़/घरघोड़ा। वरिष्ठ संवाददाता अमरदीप चौहान।
नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में घरघोड़ा स्थित विशेष POCSO न्यायालय (एफटीएससी) ने सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी बिरन कुजूर को 20 वर्ष के सश्रम कारावास और ₹10,000 अर्थदंड की सजा सुनाई है।
यह ऐतिहासिक फैसला विशेष न्यायाधीश श्रीमान शहाबुद्दीन कुरैशी की अदालत ने सुनाया, जिन्होंने कहा कि “नाबालिगों के विरुद्ध लैंगिक अपराध न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि समाज की आत्मा को भी चोट पहुँचाते हैं।”
घटना का विवरण — घर में घुसकर किया था अनाचार
थाना घरघोड़ा में दर्ज अपराध क्रमांक 209/2020 के अनुसार, पीड़िता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि घटना के दिन उसके पिता अपने बड़े भाई के घर ढलाई कार्य में गए थे और रात तक वापस नहीं लौटे थे।
पीड़िता और उसकी छोटी बहन घर पर अकेली थीं। उसी दौरान, रात्रि लगभग 11 बजे, आरोपी बिरन कुजूर घर में घुसा और नाबालिग के साथ जोर-जबरदस्ती कर दुष्कर्म (अनाचार) किया।
घटना के बाद आरोपी ने पीड़िता को धमकी दी कि यदि उसने किसी को बताया तो वह उसे जान से मार देगा।
एफआईआर से लेकर चार्जशीट तक — त्वरित विवेचना
पीड़िता की शिकायत पर थाना घरघोड़ा पुलिस ने तत्काल अपराध दर्ज किया।
विवेचना अधिकारी एडमोन खेस ने मामले की गहन जांच करते हुए सभी साक्ष्य जुटाए और आरोपी बिरन कुजूर के विरुद्ध दुष्कर्म, घर में घुसपैठ और जान से मारने की धमकी के आरोपों में अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया।
अभियोजन की सशक्त पैरवी और न्यायालय का निर्णय
मामले की सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्रीमती अर्चना मिश्रा ने सशक्त पैरवी की। उन्होंने न्यायालय के समक्ष पीड़िता का बयान, मेडिकल रिपोर्ट और अन्य साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिससे अपराध की पुष्टि हुई।
सभी गवाहों के बयान दर्ज करने और अभियोजन एवं बचाव पक्ष के तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने आरोपी बिरन कुजूर को दोषसिद्ध पाया।
कड़ी सजा — तीन धाराओं में हुई सजा
न्यायालय ने आरोपी को निम्नानुसार दंडित किया —
धारा 376(3) भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत — 20 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹5,000 का अर्थदंड
धारा 506 (आईपीसी) के तहत — 1 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹5,000 का अर्थदंड
धारा 4 POCSO अधिनियम के तहत — 20 वर्ष का सश्रम कारावास और ₹5,000 का अर्थदंड
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरोपी के विरुद्ध अपराध “नाबालिग के शारीरिक और मानसिक शोषण” से जुड़ा अत्यंत गंभीर अपराध है, इसलिए सख्त दंड आवश्यक है, ताकि समाज में एक स्पष्ट संदेश जाए।
न्यायालय की टिप्पणी — समाज को दिया सशक्त संदेश
विशेष न्यायाधीश श्री शहाबुद्दीन कुरैशी ने अपने निर्णय में कहा —
> “नाबालिग बच्चियों के प्रति बढ़ते यौन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर सजा ही एकमात्र उपाय है। ऐसे अपराध समाज के नैतिक ताने-बाने को कमजोर करते हैं।”
लोक अभियोजन की सराहना
अदालत ने मामले में तत्पर विवेचना और सशक्त पैरवी के लिए जिला पुलिस और विशेष लोक अभियोजक अर्चना मिश्रा की सराहना की।
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घरघोड़ा के एफटीएससी POCSO न्यायालय का यह फैसला न केवल कानून की जीत है, बल्कि उन सभी पीड़ित परिवारों के लिए उम्मीद की किरण भी है जो न्याय की प्रतीक्षा में हैं। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नाबालिगों के खिलाफ अपराध करने वालों के लिए अब किसी भी प्रकार की दया की गुंजाइश नहीं रहेगी।