मां मंगला कंपनी के प्रस्तावित प्लांट को लेकर ग्रामीणों में उबाल, 19 नवंबर की जनसुनवाई बनी चुनौती — “हमारी जमीन, हमारा हक” के नारों से गूंजेगा गांव

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
रायगढ़ जिले में एक बार फिर औद्योगिक विस्तार को लेकर जनाक्रोश पनपने लगा है। मां मंगला कंपनी के प्रस्तावित औद्योगिक प्लांट की जनसुनवाई 19 नवंबर को होने जा रही है, और इससे पहले ही क्षेत्र में विरोध की लहर तेज हो गई है। स्थानीय ग्रामीणों ने साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि जनसुनवाई के दिन वे बड़ी संख्या में पहुंचकर कंपनी के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन करेंगे।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह प्रोजेक्ट उनके खेती, जंगल, जलस्रोत और पर्यावरण पर गंभीर असर डालेगा। उनका कहना है कि औद्योगिक विस्तार के नाम पर उनकी जमीन और आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है, जबकि अब तक न तो ग्रामसभा की सहमति ली गई है और न ही पर्यावरणीय अध्ययन की कोई स्पष्ट रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है।
“बिना ग्रामसभा की अनुमति, कैसे दी जा रही मंजूरी?”
गांव के बुजुर्गों और जनप्रतिनिधियों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बिना ग्रामसभा की अनुमति और बिना पर्यावरणीय संतुलन के अध्ययन के कंपनी को अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जो पूरी तरह अनुचित और जनविरोधी है।
ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन और कंपनी प्रबंधन मिलकर जनसुनवाई को औपचारिकता में बदलना चाहते हैं, जबकि प्रभावित लोगों की आवाज तक नहीं सुनी जा रही।
एक ग्रामीण प्रतिनिधि ने कहा —
> “हमारी जमीन, हमारा हक — यही हमारा नारा है। अगर हमारी बात नहीं सुनी गई, तो इसका जिम्मा जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन का होगा।”
धूल, प्रदूषण और बीमारियों से पहले ही जूझ रहे हैं ग्रामीण
स्थानीय लोगों ने बताया कि वे पहले से ही इलाके में मौजूद उद्योगों के धूल, धुएं और प्रदूषण से परेशान हैं। अब एक और फैक्ट्री के आने से हालात और बिगड़ जाएंगे। ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में जलस्रोत सूखने लगे हैं, खेतों की उर्वरता घट रही है और प्रदूषण के कारण लोगों में सांस और त्वचा संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
हस्ताक्षर अभियान से विरोध की शुरुआत
कई गांवों में किसानों, महिलाओं और युवाओं ने मिलकर हस्ताक्षर अभियान चलाया है। इस अभियान में सैकड़ों ग्रामीणों ने हिस्सा लेते हुए प्रशासन से मांग की है कि प्रस्तावित प्लांट को मंजूरी न दी जाए।
ग्रामीणों ने कहा कि यदि कंपनी ने जबरन प्लांट स्थापित करने या विस्तार की प्रक्रिया आगे बढ़ाई, तो वे सड़क पर उतरकर उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे।
जनसुनवाई पर प्रशासन की नजर
19 नवंबर को होने वाली यह जनसुनवाई अब सिर्फ औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि ग्रामीण असंतोष की बड़ी परीक्षा बन गई है। प्रशासनिक अधिकारी, पर्यावरण विभाग के प्रतिनिधि और कंपनी प्रबंधन के लोग इस दिन मौजूद रहेंगे।
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि इस बार वे “औपचारिक जनसुनवाई” नहीं, बल्कि “जनता की सुनवाई” करवाएंगे — जिसमें उनकी आवाज दबाई नहीं जाएगी।