एनटीपीसी तलाईपल्ली कोल माइंस में असंतोष की चिंगारी भड़की — संविदाकर्मियों ने दी हड़ताल की अल्टीमेटम, कहा “अब और नहीं अन्याय!”

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा (रायगढ़)। एनटीपीसी तलाईपल्ली कोल माइंस प्रोजेक्ट में कार्यरत संविदाकर्मियों के सब्र का बांध अब टूटता नज़र आ रहा है। मजदूरों ने प्रबंधन पर श्रमिक हितों की लगातार अनदेखी का आरोप लगाते हुए स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि अगले तीन दिनों के भीतर उनकी प्रमुख मांगों पर ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए बाध्य होंगे।
मजदूर संगठन के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को परियोजना प्रमुख को एक स्मरण पत्र सौंपकर कहा कि प्रबंधन की “मौन नीतियां” अब असहनीय हो चुकी हैं। मजदूरों ने कहा — “हम संविदा पर हैं, लेकिन इंसान हैं। अधिकार मांगना अपराध नहीं।”
🔹 तीन मुख्य मांगें, जिन पर अड़े हैं संविदाकर्मी
संविदाकर्मियों ने 15 अक्टूबर 2025 को एनटीपीसी प्रबंधन को लिखित रूप से अपनी तीन मुख्य मांगें सौंपी थीं—
1. समान कार्य के लिए समान वेतन — संविदाकर्मियों को स्थायी कर्मचारियों के समान HRA, Communication Allowance और Conveyance Allowance का लाभ दिया जाए।
2. One Site – One Contract नीति — सभी ठेका कंपनियों को एकीकृत कर एक ही ठेका प्रणाली लागू की जाए, ताकि पारदर्शिता और समानता बनी रहे।
3. मेन्टेनेंस कॉन्ट्रैक्ट की अवधि 1 वर्ष से बढ़ाकर 3 वर्ष की जाए, जिससे मजदूरों को स्थायित्व और सामाजिक सुरक्षा मिल सके।
मजदूरों का आरोप है कि पत्र सौंपे जाने के सात दिन बीत जाने के बावजूद एनटीपीसी प्रबंधन की ओर से न तो कोई उत्तर मिला और न ही किसी स्तर पर बातचीत की पहल हुई। इससे श्रमिकों में गहरा रोष है।
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🔹 “कानून के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है प्रबंधन”
संविदाकर्मियों ने अपने आवेदन में उल्लेख किया है कि यह स्थिति Contract Labour (Regulation & Abolition) Act, 1970 की धारा 21 का उल्लंघन है, जिसमें नियोक्ता को समय पर सूचना देना और श्रमिकों के हितों की रक्षा करना अनिवार्य बताया गया है।
इसी तरह, उन्होंने यह भी चेताया है कि यदि अब भी उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया, तो वे Factories Act, 1948 की धारा 111-A (Workers’ Right to Representation) के तहत आंदोलन का सहारा लेंगे।
एक संविदाकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा —
> “हम सिर्फ न्यूनतम हक की बात कर रहे हैं। अगर प्रबंधन को मजदूरों की मेहनत चाहिए, तो उसे उनका सम्मान भी देना होगा।”
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🔹 सांसद राठिया से मुलाकात, मामला पहुँचा राजनीतिक गलियारों तक
संविदाकर्मियों का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में सांसद राधेश्याम राठिया (लोकसभा क्षेत्र – रायगढ़) से भी मिला और उन्हें परियोजना की स्थिति से अवगत कराया। सांसद राठिया ने मजदूरों की समस्याओं को “गंभीर और न्यायसंगत” बताते हुए कहा कि वे इस मुद्दे को संबंधित मंत्रालय और एनटीपीसी के उच्च प्रबंधन तक पहुँचाएंगे।
सांसद से हुई इस मुलाकात के बाद अब यह श्रमिक असंतोष राजनीतिक रंग भी लेने लगा है। क्षेत्रीय संगठनों और श्रमिक यूनियनों ने भी एनटीपीसी प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।
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🔹 “अगर नहीं मानी गई मांगें, तो जिम्मेदार होगा प्रबंधन”
संविदाकर्मियों ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो उत्पादन में होने वाली संभावित हानि और प्रशासनिक अव्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी एनटीपीसी प्रबंधन की होगी।
मजदूरों ने कहा कि वे आंदोलन की राह नहीं, बल्कि समाधान की उम्मीद लिए बैठे हैं —
> “हमारे हाथ में औज़ार हैं, पत्थर नहीं। लेकिन अगर आवाज़ नहीं सुनी गई, तो हमें अपनी रोटी के लिए लड़ना ही पड़ेगा।”
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🔸 विश्लेषण — प्रबंधन और मजदूरों के बीच बढ़ती खाई
एनटीपीसी जैसी राष्ट्रीय स्तर की परियोजना में बार-बार श्रमिक असंतोष का उभरना यह संकेत देता है कि स्थायी बनाम संविदा कर्मियों के बीच असमानता की समस्या अभी भी बनी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि प्रबंधन ने संवाद का रास्ता नहीं अपनाया, तो यह विवाद न सिर्फ उत्पादन बल्कि क्षेत्रीय रोजगार माहौल पर भी असर डाल सकता है।