29 नवंबर को 41 कोल ब्लॉकों की ई–नीलामी: छत्तीसगढ़ की 15 खदानों पर देशभर की नज़र, राजस्व–रोजगार के साथ विस्थापन का बड़ा सवाल

रायपुर/नई दिल्ली।
देश में ऊर्जा सुरक्षा और कोयला उत्पादन बढ़ाने की दिशा में केंद्र सरकार एक बार फिर तेजी से आगे बढ़ रही है। वाणिज्यिक कोयला खदान नीलामी के 14वें चरण के तहत केंद्र ने कुल 41 कोल ब्लॉकों को ई–ऑक्शन के लिए नोटिफाई किया है। इनमें अकेले छत्तीसगढ़ की 15 खदानें शामिल हैं, जो राज्य के तीन प्रमुख कोल बेल्ट—कोरबा, सरगुजा और रायगढ़—में फैली हुई हैं।
इन खदानों की बोली 29 नवंबर को ऑनलाइन (E–Auction) होगी, जिसके लिए देशभर की लगभग सभी प्रमुख कोयला व स्टील कंपनियों की नजरें इस नीलामी पर टिकी हुई हैं।
छत्तीसगढ़ की वे 15 खदानें जो नीलामी में शामिल
नीलामी में शामिल कोल ब्लॉकों की सूची इस प्रकार है—
रायगढ़ कोरबा क्षेत्र
गोढ़ी महलोई – बिजना
गोढ़ी महलोई – देवगांव
गोढ़ी महलोई – अमलीढोंडा
गोढ़ी महलोई – कसडोल
गारे पेलमा
दुर्गापुर
कलगामार
मडवानी करतला साउथ
तौलीपाली
सरगुजा व आसपास क्षेत्र:
रेवंती ईस्ट
तेरम
विजयनगर नॉर्थ
विजयनगर साउथ
भटगांव-2
भटगांव एक्सटेंशन (बोझा)
बटाटी कोलगा वेस्ट
इनमें कई खदानें लंबे समय से बंद पड़ी थीं, जबकि कुछ पहली बार वाणिज्यिक खनन के लिए खोली जा रही हैं।
सरकार का दावा—बढ़ेगा राजस्व, मिलेंगे नए रोजगार
केंद्र सरकार का कहना है कि वाणिज्यिक खनन से—
राज्यों को रॉयल्टी, DMF और अन्य करों के रूप में बड़ा राजस्व मिलेगा
स्थानीय युवाओं के लिए हजारों प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे
देश की कोयला उत्पादन क्षमता में तेज़ी से वृद्धि होगी
कोयला आयात पर निर्भरता घटेगी
सरकार का फोकस यह भी है कि निजी कंपनियों की भागीदारी से कोयला खनन में आधुनिक तकनीक, कम लागत और बेहतर उत्पादन क्षमता आएगी।
लेकिन खड़ा है बड़ा सवाल—जंगल, आदिवासी और पर्यावरण
जहाँ एक ओर विकास और राजस्व के दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन खदानों के बीच फैला है—
घना जंगल,
आदिवासी बस्तियों का विस्थापन,
पारंपरिक आजीविका पर खतरा,
और पर्यावरणीय असंतुलन का गंभीर सवाल।
विशेष रूप से रायगढ़ और सरगुजा की खदानें संवेदनशील क्षेत्रों में आती हैं, जहाँ—
हाथियों का कॉरिडोर
वनाधिकार दावे
ग्रामीणों की खेती और जलस्रोत
सीधे प्रभावित होंगे।
स्थानीय समुदायों ने पहले भी कई खदानों के खिलाफ ग्रामसभा प्रस्ताव पारित किए हैं और इस नीलामी को लेकर भी विरोध की संभावना जताई जा रही है।
नीलामी को लेकर उद्योग जगत में उत्साह
कोयला, इस्पात और बिजली उत्पादन से जुड़ी कई राष्ट्रीय–बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इन ब्लॉकों में गहरी रुचि दिखा रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि—
छत्तीसगढ़ के कोयले की गुणवत्ता उच्च श्रेणी की
परिवहन कनेक्टिविटी बेहतर
और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होने के कारण
यह राज्य इस बार की नीलामी का केंद्र बना हुआ है।
राज्य सरकार की भूमिका भी होगी अहम
नीलामी केंद्र सरकार करता है, लेकिन—
भूमि अधिग्रहण
पुनर्वास–पुनर्स्थापन
पर्यावरणीय मंज़ूरी
स्थानीय सामाजिक तंत्र
इन सबके लिए राज्य सरकार की सहमति और सक्रियता अनिवार्य है।
नई सरकार के गठन के बाद यह पहली बड़ी नीलामी है, इसलिए सभी की नजरें राज्य के रुख पर भी टिकी हैं।
अभी भी कई प्रश्न अनुत्तरित
हालांकि सरकार विकास के बड़े दावे कर रही है, लेकिन स्थानीय जनसमुदाय और पर्यावरण विशेषज्ञों के ये सवाल अभी भी बने हुए हैं—
विस्थापन कितना पारदर्शी होगा?
मुआवजा क्या वाकई समय पर मिलेगा?
जंगल कटाई से वन्यजीवों पर क्या असर पड़ेगा?
स्थानीय संस्कृति और आजीविका का क्या भविष्य होगा?
ई–ऑक्शन के साथ ही यह बहस भी और तेज होने वाली है।