200 यूनिट तक ही बिजली हाफ—छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले पर उठे सवाल, उपभोक्ताओं का बोझ कम करने की जगह बढ़ा रही परेशानी

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायपुर। प्रदेश की जनता को राहत देने के दावे के बीच आज से लागू की गई 200 यूनिट बिजली बिल हाफ योजना पर सरकार को अब आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा विशेष सत्र में की गई घोषणा के बाद नई व्यवस्था लागू तो हो गई, लेकिन बड़ी संख्या में उपभोक्ता इसे अधूरी राहत और आंशिक सहानुभूति करार दे रहे हैं।
दरअसल, पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार की योजना में 400 यूनिट तक बिजली हाफ की सुविधा उपलब्ध थी, जिससे बड़ी संख्या में मध्यम और निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार लाभान्वित होते थे। नई सरकार ने सत्ता में आने के बाद इस सीमा को घटाकर पहले 100 यूनिट किया और अब इसे बढ़ाकर 200 यूनिट तो कर दिया, लेकिन बहुत-से परिवारों का मानना है कि इससे वास्तविक राहत नहीं मिल रही।
200 नहीं, 300 यूनिट तक हाफ बिल की मांग तेज
विशेषज्ञों और उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति, महंगाई और घरेलू बिजली उपकरणों की बढ़ी हुई निर्भरता को देखते हुए 200 यूनिट की सीमा ‘अवास्तविक’ और ‘अपर्याप्त’ है।
प्रदेश में अधिकांश शहरी और अर्ध-शहरी परिवारों की मासिक खपत 220 से 320 यूनिट के बीच रहती है। ऐसे में 200 यूनिट तक राहत देकर शेष यूनिट पर पूरा बिल वसूला जाना परिवारों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ की तरह है।
उपभोक्ताओं का तर्क है कि—
पंखे, फ्रिज, कूलर, टीवी और वॉशिंग मशीन जैसे सामान्य उपकरणों के चलते
200 यूनिट बहुत आसानी से पार हो जाता है।
300 यूनिट तक राहत देने से ही वास्तविक मध्यमवर्ग को राहत मिलेगी।
400 यूनिट हाफ हटाकर सरकार ने जो बढ़ा बोझ डाला था, उसे सिर्फ आधे स्तर तक ही ठीक किया गया है।
200–400 यूनिट वालों को सिर्फ एक साल की ‘अस्थायी राहत’
सरकार ने कहा है कि 200 से 400 यूनिट खपत वाले उपभोक्ताओं को सिर्फ 1 वर्ष के लिए शुरुआती 200 यूनिट पर हाफ बिल का लाभ मिलेगा।
इसे लेकर भी असंतोष है। आलोचकों का सवाल है:
“एक साल बाद क्या होगा? क्या सरकार मानती है कि हर परिवार एक साल में सोलर लगा लेगा?”
ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि—
सोलर पैनल की स्थापना का खर्च 35,000 से 1 लाख रुपये तक
ग्रामीण क्षेत्रों में इंस्टॉलेशन व मेंटेनेंस की कठिनाई
सब्सिडी प्रक्रिया की धीमी रफ्तार
इन कारणों से यह अपेक्षा करना कि हर परिवार एक वर्ष में सोलर सिस्टम लगा लेगा, व्यावहारिक नहीं है।
42 लाख उपभोक्ताओं को लाभ के दावे पर भी उठे सवाल
राज्य में 45 लाख से अधिक बिजली उपभोक्ता हैं और सरकार का दावा है कि 42 लाख उपभोक्ता इससे लाभान्वित होंगे।
लेकिन बिजली उपभोक्ता संघों का कहना है कि—
लाभ की गणना वास्तविक बिल संरचना पर नहीं, अनुमानित यूनिट खपत पर आधारित है।
200 यूनिट से अधिक खपत करने वाले परिवारों की संख्या काफ़ी अधिक है।
300–350 यूनिट खपत वाले लाखों परिवारों पर यह योजना किसी स्थायी राहत की तरह काम नहीं करेगी।
अधूरी योजना?—जनता का सीधा सवाल सरकार से
विश्लेषकों के अनुसार सरकार ने आंशिक रूप से पुराने फैसले को ठीक जरूर किया, लेकिन—
न तो बिजली दरों में व्यापक सुधार किया गया
न बिल संरचना में पारदर्शिता लाई गई
और न यह स्पष्ट कि एक साल बाद 200–400 यूनिट वाले उपभोक्ताओं को क्या मिलेगा
बहुत-से नागरिक इसे “मध्यावधि राहत—दीर्घकालिक बोझ” बता रहे हैं।
राहत से ज़्यादा असंतोष वाला फैसला
छत्तीसगढ़ की जनता अब भी मानती है कि—
अगर सरकार सच में बिजली राहत देना चाहती है, तो न्यूनतम 300 यूनिट तक बिजली हाफ करना चाहिए था।
वर्तमान व्यवस्था में:
200 यूनिट सीमा कम
200–400 यूनिट वालों को सिर्फ एक साल का लाभ
और 300 यूनिट तक खपत वालों पर सबसे अधिक बोझ
यह सब मिलकर इस योजना को आंशिक, असंतुलित और अधूरी राहत की श्रेणी में खड़ा करता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि बढ़ती जन नाराज़गी के बीच सरकार आगे कोई संशोधन लाती है या पहले की तरह इसे ही अंतिम व्यवस्था मानकर आगे बढ़ती है।
डेस्क रिपोर्ट