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“108-112 इमरजेंसी सिस्टम पर उठे सवाल: विजयादशमी की रात रहस्यमयी सड़क हादसे से धरमजयगढ़ में तनाव”

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम धरमजयगढ़। विजयादशमी की रात जब पूरा क्षेत्र रावण दहन और उत्सव की खुशी में डूबा था, तभी खम्हार और मिरिगुड़ा मार्ग पर हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे इलाके को शोक में डुबो दिया।खम्हार गाँव के दो युवक आशीष राठिया और सरोज सवरा दशहरा देखने घर से निकले थे, परंतु मिरिगुड़ा के पास खड़ी एक वाहन से उनकी मोटरसाइकिल टकरा गई और दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।घटना स्थल पर पहुँची 108 संजीवनी एक्सप्रेस में दोनों शवों के साथ मृतकों का साथी नरेश कुमार राठिया अटेंडर के रूप में बैठा। किंतु जब वाहन अस्पताल पहुँचा, तो उसमें केवल दो शव थे। नरेश का कोई पता नहीं था।

आश्चर्यजनक रूप से करीब बीस मिनट बाद नरेश कुमार घायल अवस्था में 112 की टीम द्वारा अस्पताल लाया गया, जहाँ उपचार के दौरान उसकी भी मौत हो गई। ग्रामीणों का सवाल है कि एक जीवित और स्वस्थ युवक 108 वाहन में बैठकर अस्पताल के लिए रवाना होता है और रास्ते में गंभीर रूप से घायल मिल जाता है आखिर इसका जिम्मेदार कौन है ?

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खबर विस्तार से..

धरमजयगढ़ क्षेत्र की विजयादशमी की रात एक सामान्य उत्सव का समय मातम में बदल गया, जब खम्हार और मिरिगुड़ा मार्ग पर हुए दर्दनाक हादसे ने तीन युवकों की जान ले ली। खम्हार गाँव के आशीष राठिया और सरोज सवरा दशहरा देखने निकले थे, लेकिन मिरिगुड़ा के पास खड़ी एक वाहन से उनकी मोटरसाइकिल की टक्कर हो गई। दोनों की मौके पर ही मृत्यु हो गई। घटना स्थल पर पहुंची 108 संजीवनी एक्सप्रेस में उनके साथी नरेश कुमार राठिया अटेंडर के रूप में दोनों मृतकों के साथ बैठा।

यहाँ से कहानी में एक रहस्यमय मोड़ आता है: जब एंबुलेंस अस्पताल पहुँची, तो केवल दो शव थे—नरेश कहीं नहीं दिखा। लगभग बीस मिनट बाद, 112 की टीम को नरेश कुमार भंवरखोल के पास सड़क किनारे गंभीर हालत में मिला और जैसे ही इलाज शुरू हुआ, उसने भी दम तोड़ दिया।

108 एंबुलेंस चालक का कहना है कि नरेश उनके साथ अस्पताल के लिए रवाना हुआ था, लेकिन वह कब और कैसे वाहन से उतरा, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। दूसरी ओर, 112 टीम के एएसआई एस.के. वर्मा ने बताया कि नरेश उन्हें सड़क किनारे गंभीर रूप से घायल मिला। इन दोनों बयानों के विरोध में अब इलाके के ग्रामीणों में रोष और अविश्वास बढ़ गया है।

सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण धरमजयगढ़ मुख्यालय पहुंचकर निष्पक्ष जांच और जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। आक्रोशित लोगों ने शव को सड़क पर रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। ग्रामीणों का यह सवाल है कि आखिर एक स्वस्थ युवक जो 108 एंबुलेंस में अटेंडर के रूप में बैठा था, वह रास्ते में लापता होकर सड़क पर गंभीर अवस्था में कैसे मिल गया? क्या इसमें किसी प्रकार की लापरवाही या अनदेखी हुई?

प्रशासन के लिए यह मामला अब सिर्फ एक सड़क हादसा न रहकर, गंभीर प्रशासनिक एवं व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह बन चुका है। घटना ने 108 और 112 इमरजेंसी सेवाओं की कार्यप्रणाली, जिम्मेदारी और पारदर्शिता को लेकर ग्रामीणों की नाराज़गी को सतह पर ला दिया है। निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई की मांग के साथ यह घटना अब धरमजयगढ़ क्षेत्र में प्रशासन की जवाबदेही पर सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है।


108 और 112 आपात सेवाओं की घटना-रोकथाम रिपोर्ट मांगना अत्यंत उचित और जरूरी है, खासकर जब किसी आपातकालीन सेवा में लापरवाही या भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाए। ऐसी रिपोर्ट में निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष रूप से जानकारी और स्पष्टीकरण मांगे जा सकते हैं:

रिपोर्ट में मांगे जाने योग्य मुख्य बिंदु

– घटनास्थल पर पहुंचे 108 और 112 टीम के सदस्यों की विस्तृत कार्यवाही रिपोर्ट।
– पीड़ित/घायल के साथ एंबुलेंस की लोकेशन ट्रैकिंग लॉग (जीपीएस और डिस्पैच डाटा)।
– एंबुलेंस और पुलिस घटनास्थल पर कब पहुंचे, किसने आउट-ऑफ-टर्न हटकर क्या कार्यवाहियां कीं, इसकी टाइमलाइन।
– मरीज और अटेंडर के अस्पताल तक पहुंचने की पूरी वीडियो/फोटो डॉक्यूमेंटेशन (संभव हो तो)।
– संबंधित कर्मियों के बयान की सत्यापित प्रतिलिपि और उसका संवैधानिक सत्यापन।
– घटनास्थल पर मौजूद सभी अधिकारी/कर्मचारियों और प्रत्यक्षदर्शियों की सूची और बयानों का संकलन।
– यदि कोई सीसीटीवी या ट्रैफिक कैमरा फुटेज उपलब्ध हो तो, उसकी प्रतिलिपि।
– 108 और 112 के कंट्रोल रूम से संबंधित एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) एवं उस दिन के कॉल रिकॉर्डिंग।
– मरीज के अस्पताल पहुंचने से पहले, बाद एवं दौरान दर्ज इलाज संबंधित अभिलेख, और चिकित्सकीय जांच रिपोर्ट।
– मामले की जांच हेतु बनाई गई प्रशासनिक समिति और उसके निष्कर्ष।



कार्रवाई की प्रक्रिया

– घटना की गंभीरता देखते हुए एसडीएम, सीएमएचओ और संबंधित पुलिस उच्चाधिकारियों से फील्ड रिपोर्ट मांगी जाए।
– समयबद्ध जांच (जैसे 48-72 घंटे में प्राइमरी रिपोर्ट और 7 दिन में विस्तृत रिपोर्ट) की बाध्यता तय की जाए।
– रिपोर्ट पारदर्शी ढंग से सार्वजनिक मंच/ग्रामीण प्रतिनिधियों को दी जाए और जिम्मेदार कर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई निश्चित की जाए।
– भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सुधारात्मक सुझावों का पालन सुनिश्चित किया जाए।

इस प्रक्रिया से पंचायत, स्थानीय प्रशासन, और प्रभावित समुदाय को जवाबदेही स्पष्ट होगी तथा आगे के लिए इमरजेंसी सेवाओं में विश्वास तथा व्यापक सुधार की संभावना बढ़ेगी।

Amar Chouhan

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