सर्द रात में कलेक्टोरेट के सामने माँ ने दुधमुंहे बच्चे संग काटी रात!— अडानी की जनसुनवाई के विरोध में आदिवासी महिलाओं का झकझोर देने वाला मंजर

धरती की बेटियाँ बनाम विकास की दौड़: पुरुंगा में अडानी कोल खदान के खिलाफ सर्द रात में सुलगता जनाक्रोश
एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
अडानी समूह की प्रस्तावित मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की 869.025 हेक्टेयर भूमिगत कोल खदान परियोजना को लेकर रायगढ़ के पुरुंगा, सामरसिंघा और तेंदुमुरी गांवों में उबाल थमने का नाम नहीं ले रहा। जैसे-जैसे 11 नवंबर की जनसुनवाई की तारीख करीब आ रही है, वैसे-वैसे विरोध की लपटें तेज होती जा रही हैं। गुरुवार को हजारों की संख्या में प्रभावित ग्रामीणों ने रायगढ़ जिला कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया और जनसुनवाई को तत्काल निरस्त करने की मांग उठाई।
कलेक्टोरेट परिसर के बाहर यह सिर्फ एक विरोध नहीं था — यह उन लोगों की मौन चीख थी, जो अपनी जमीन, अपने जंगल और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए डटे हैं। प्रशासन ने हालात को देखते हुए पूरे कलेक्टोरेट परिसर को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया। भारी पुलिस बल की मौजूदगी, चारों ओर लगी बैरिकेडिंग और ग्रामीणों की भीड़ — दृश्य किसी आंदोलन के उफान जैसा था।
भीड़ में एक दृश्य सबको भीतर तक झकझोर गया। एक आदिवासी महिला अपने दुधमुंहे बच्चे को गोद में लिए ठंड में बैठी थी। उसकी आंखों में नींद नहीं, संकल्प था। उसके होंठों से आवाज नहीं, पर संदेश साफ था — “हम अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे।”
रात गहराती गई, तापमान गिरता गया, लेकिन ग्रामीणों का जोश कम नहीं हुआ। महिलाएं अपने बच्चों को कंबल में लपेटे बैठी रहीं। किसी ने रोटियां सेंकीं, तो किसी ने आग जलाकर बच्चों को सर्दी से बचाया। यह मंजर सिर्फ विरोध का नहीं, बल्कि जीवटता और अस्मिता का प्रतीक बन गया।
ग्रामवासियों ने कहा, “हमने अपनी ग्राम सभा में जनसुनवाई निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया है। सरकार को जनता की राय का सम्मान करना चाहिए। यह हमारी जमीन है, हमारा भविष्य है — इसे कोई कागज़ी आदेश नहीं छीन सकता।”
वहीं, जिला कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि 11 नवंबर की जनसुनवाई निरस्त नहीं की जाएगी। प्रशासन के इस रुख से ग्रामीणों का आक्रोश और बढ़ गया। ग्रामीणों ने रातभर धरना जारी रखा और कहा कि जब तक जनसुनवाई स्थगित नहीं होती, वे पीछे नहीं हटेंगे।
यह दृश्य प्रशासनिक तंत्र से एक सवाल पूछता है —
क्या विकास की कीमत इन माताओं की गोद में सोते बच्चों से वसूली जाएगी?
क्या सरकारी मशीनरी की संवेदना अब भी ठंडी है, जब धरती की बेटियाँ खुले आसमान के नीचे अपने अधिकारों की रक्षा में डटी हैं?
सवाल यह भी है कि अगर विकास का मतलब विस्थापन है, तो यह विकास किसके लिए और किसकी कीमत पर हो रहा है? पुरुंगा की यह सर्द रात अब रायगढ़ के जनमानस में गर्म बहस का विषय बन चुकी है — जहां एक तरफ कॉरपोरेट परियोजना का दबाव है, वहीं दूसरी तरफ आदिवासियों की मिट्टी से जुड़ी उम्मीदें और हक की लड़ाई।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान की रिपोर्ट