सरगुजा की धरती फिर धधकी: एसईसीएल की अमेरा खदान में मुआवज़े और अधिकारों की लड़ाई, प्रशासन पर पथराव, कई अधिकारी घायल

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम सरगुजा/रायपुर।
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) की 1.0 एमटीपीए क्षमता वाली अमेरा ओपनकास्ट माइंस एक बार फिर स्थानीय आक्रोश की चपेट में है। जिन ज़मीनों पर दो दशक पहले अधिग्रहण की मुहर लगी थी, आज उन्हीं ज़मीनों पर दावों, डर और दहाड़ों का टकराव इतना तीखा हो चुका है कि खनन कार्य बार–बार ठप होते-होते किसी तरह चल पाते हैं।
मुआवज़े और पुनर्वास में कथित असमानता, कोयला चोरी में सक्रिय असामाजिक तत्वों की भूमिका और प्रशासनिक संवादहीनता – इन तीनों ने मिलकर खदान क्षेत्र को संघर्ष का केंद्र बना दिया है।
अधिग्रहित ज़मीन, अधूरा भरोसा
अमेरा, परसोड़ीकला, कटकोना और पूहपुत्र गांवों की 664.184 हेक्टेयर भूमि 2001 में अधिग्रहित की गई थी।
2011 में खनन शुरू हुआ, पर 2019 आते-आते ग्रामीणों ने खनन रोक दिया – वजह थी “स्वीकृत प्रावधानों से अधिक लाभ की मांग”।
एसईसीएल का दावा है कि ग्रामीणों को कुछ असामाजिक तत्वों ने भड़काया, ताकि कोयला चोरी पर रोक न लगे। इस संबंध में FIR भी दर्ज हुई थी।
2014–2024: मुआवज़े का नया अध्याय
राज्य प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद वर्ष 2024 में खदान फिर से शुरू करवाई गई।
तब से:
परसोड़ीकला के परिवारों को लगभग ₹10 करोड़ मुआवज़ा दिया गया।
जिला पुनर्वास समिति की सहमति से रोज़गार देने की प्रक्रिया जारी है।
भूमि पुनर्ग्रहण चरणबद्ध तरीके से हो रहा है।
लेकिन जैसे-जैसे खनन परसोड़ीकला की सीमा के पास पहुँचा, विरोध दोबारा भड़क उठा।
03 दिसंबर 2025: प्रशासन बनाम आक्रोशित भीड़
सुबह 10 बजे प्रशासन की टीम –
एएसपी, एसडीएम, तहसीलदार और खदान अधिकारी – संवाद की कोशिश में पहुँचे।
पर संवाद को ग्रामीणों ने अस्वीकार किया और पथराव शुरू कर दिया।
परिणाम:
एएसपी सहित कई अधिकारी घायल
पुलिस बल पर भी हमला
अतिरिक्त कलेक्टर पर भी पथराव, वे भी घायल
माहौल और तनावपूर्ण
दोपहर बाद अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा। भीड़ को तितर–बितर किया गया।
शाम 5 बजे खनन कार्य आंशिक रूप से बहाल हो सका।
स्थानीय ग्रामीणों की दो टूक
ग्रामीणों का कहना है:
“यही ज़मीन हमारी आजीविका है।”
“उचित और पूर्ण मुआवज़ा मिलने तक ज़मीन नहीं छोड़ेंगे।”
“पुनर्वास की शर्तें पहले तय हों, फिर खनन।”
ग्रामीणों का दर्द यह भी है कि जिन अधिग्रहण कागज़ात पर वे सहमति दिखाते दिखाए जाते हैं, वे कई लोगों के अनुसार “अधूरी जानकारी के साथ तैयार” किए गए थे।
एसईसीएल का रुख: खदान को रोकने वालों के पीछे असामाजिक तत्व
एसईसीएल की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है:
असामाजिक तत्व ग्रामीणों को भड़का रहे हैं
खदान बंद होने से क्षेत्र में रोजगार, उत्पादन और राजस्व प्रभावित
पथराव में सरकारी कर्मचारियों को घायल करना गंभीर अपराध
एसईसीएल ने जिला और राज्य प्रशासन से कड़ा हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।
सवाल गहरे हैं, समाधान अभी भी अधर में
अधिग्रहण को 24 साल हो चुके हैं, पर संघर्ष आज भी वहीं खड़ा है जहां 2001 में था।
यह संघर्ष सिर्फ कोयले का नहीं है – यह संघर्ष है:
अधिकारों का
भरोसे का
संवादहीनता का
और उस डेवलपमेंट मॉडल का जो ज़मीनी हकीकत से उलट चलता है
सरगुजा की यह जंग बताती है कि विकास तभी संभव है जब:
मुआवज़ा स्पष्ट हो
पुनर्वास पारदर्शी हो
संवाद बराबरी के स्तर पर हो
फिलहाल खदान की गड़गड़ाहट के पीछे ग्रामीण आहें और पुलिस की चेतावनियाँ दोनों गूंज रही हैं।
जमीन की लड़ाई फिर एक बार चरम पर है… और सरगुजा की शांत पहाड़ियाँ फिर से तनाव की गवाह बन गई हैं।
डेस्क रिपोर्ट