संचार साथी ऐप पर संग्राम: “साइबर सुरक्षा जरूरी, मगर निगरानी का औज़ार नहीं बन सकता नागरिकों का फोन” — प्रियंका गांधी का केंद्र पर तीखा हमला

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम नई दिल्ली, 3 दिसंबर 2025। संसद के शीतकालीन सत्र का दूसरा दिन एक बार फिर तीखे राजनीतिक टकराव का गवाह बना। दूरसंचार विभाग द्वारा नए मोबाइल फोन में ‘संचार साथी’ ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के निर्णय ने विपक्ष—विशेषकर कांग्रेस—को आक्रामक मोड में ला दिया है। कांग्रेस महासचिव एवं सांसद प्रियंका गांधी ने इस ऐप को सीधे-सीधे “जासूसी ऐप” बताते हुए सरकार पर नागरिकों की निजी स्वतंत्रता पर हमला करने का आरोप लगाया।
“सरकार और क्या जानना चाहती है?”—प्रियंका गांधी का सवाल
संसद परिसर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा—
> “यह एक जासूसी ऐप है। नागरिकों को प्राइवेसी का अधिकार है। सरकार को यह हक नहीं कि हर नागरिक के फोन में झाँकती फिरे। हम अपने परिवार या दोस्तों को संदेश भेजें और सरकार उस पर निगरानी रखे—यह सामान्य नहीं है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार साइबर सुरक्षा के नाम पर भारत को एक नियंत्रित राज्य में बदलने की कोशिश कर रही है।
साइबर सुरक्षा पर सहमति, लेकिन निगरानी पर नहीं
प्रियंका गांधी ने कहा कि कांग्रेस साइबर सुरक्षा को लेकर गंभीर है, इस पर लंबी चर्चाएँ भी हुई हैं,
लेकिन—
> “साइबर सुरक्षा का मतलब यह नहीं है कि आपको हर नागरिक के फोन तक पहुँच का लाइसेंस मिल जाए। कोई भी नागरिक इससे खुश नहीं होगा।”
“संसद इसलिए नहीं चल रही क्योंकि सरकार चर्चा से भाग रही है”
उन्होंने संसद की कार्यवाही बाधित रहने का ठीकरा सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि केंद्र किसी भी मुद्दे पर बहस के लिए तैयार नहीं है और लगातार विपक्ष को दोषी ठहराने का खेल खेल रहा है।
29 नवंबर से लागू नया नियम और बढ़े सवाल
सरकार ने 29 नवंबर से एक नया नियम लागू किया है, जिसके तहत व्हाट्सऐप, टेलीग्राम जैसे सभी मैसेजिंग ऐप्स को उपयोगकर्ता के सक्रिय सिम कार्ड से निरंतर लिंक रहना अनिवार्य होगा।
प्लेटफॉर्म्स को 90 दिनों में इन नियमों का पालन करना होगा और 120 दिनों में विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी।
यह प्रावधान साइबर धोखाधड़ी रोकने के उद्देश्य से लाया गया है, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि सरकार इसे निगरानी के औज़ार के रूप में उपयोग कर सकती है।
पहले भी उठ चुके हैं जासूसी के आरोप — पेगासस प्रकरण की गूंज
यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार पर निगरानी के आरोप लगे हों।
पेगासस स्पाइवेयर विवाद याद दिलाते हुए विपक्ष ने कहा था कि कई पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और नौकरशाहों के फोन पर संभावित निगरानी की गई थी।
अंतरराष्ट्रीय खुलासों के बाद देश में भारी राजनीतिक तूफ़ान खड़ा हुआ था।
उस समय भी सरकार ने पारदर्शी जांच से परहेज किया था, जिसे अब विपक्ष “परंपरा” बताते हुए फिर मुद्दा बना रहा है।
प्रियंका गांधी ने इसी संदर्भ में कहा—
> “पेगासस मामले ने साबित किया था कि सरकार पर निगरानी का लालच हावी है। अब ‘संचार साथी’ के नाम पर वही कहानी दोहराई जा रही है।”
सरकार का पक्ष: ‘फ्रॉड रोकने के लिए कदम’, विपक्ष का पलटवार—‘निगरानी की नई छूट’
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि—
साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है
फर्जी सिम व मैसेजिंग खातों के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी हो रही है
‘संचार साथी’ ऐप इससे बचाव के लिए एक सुरक्षा कवच है
लेकिन विपक्ष प्रश्न उठा रहा है कि—
“यदि सुरक्षा ही लक्ष्य है, तो प्री-इंस्टॉलेशन क्यों? उपयोगकर्ता को इंस्टॉल करने का विकल्प क्यों नहीं?”
विपक्ष का आरोप है कि तकनीकी सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता से समझौता कराया जा रहा है।
भीषण राजनीतिक टकराव के संकेत
जिस तरह विवाद बढ़ रहा है, यह मुद्दा आगामी दिनों में संसद की कार्यवाही और देश की राजनीति दोनों पर गहरा असर डालने वाला है।
निजता बनाम सुरक्षा की बहस अब आम नागरिक तक पहुँच चुकी है—और केंद्र तथा विपक्ष दोनों इसे ‘लोकतांत्रिक अधिकारों’ बनाम ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की जंग के रूप में देख रहे हैं।
आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद के सबसे तीखे टकरावों में से एक साबित हो सकता है।
समाचार सहयोगी देवानंद पटेल