शिक्षकों का बाबू बनना, स्कूलों में सन्नाटा: प्रशासनिक बोझ ने ठप की पढ़ाई

रैलियों, डेटा एंट्री और गैर-शैक्षणिक आदेशों में उलझे शिक्षक, बच्चों का भविष्य खतरे में
सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़/घरघोड़ा। छत्तीसगढ़ के स्कूलों में शिक्षा का माहौल चरमराता जा रहा है। शिक्षकों का कहना है कि शासन-प्रशासन के गैर-शैक्षणिक आदेशों और अतिरिक्त जिम्मेदारियों ने उन्हें कक्षा से दूर कर दिया है। स्कूलों की कक्षाएँ खाली पड़ी हैं, और शिक्षक “बाबू” बनकर प्रशासनिक कार्यों में जुटे हुए हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान बच्चों की पढ़ाई को हो रहा है, जिससे पूरी पीढ़ी का भविष्य दाँव पर है।
गैर-शैक्षणिक कार्यों का पहाड़
शिक्षकों के अनुसार, उन्हें पढ़ाने से ज्यादा समय उन कार्यों में खर्च करना पड़ रहा है, जिनका शिक्षा से दूर-दूर तक वास्ता नहीं।
– रैलियों, बैठकों और सरकारी अभियानों की तैयारियों में समय जाया हो रहा है।
– वृक्षारोपण, तिरंगा अभियान, गौ-रक्षा परीक्षा, प्रयास परीक्षा और अब “एलुमिनाई मीट” जैसे नए-नए आदेशों ने शिक्षकों की कमर तोड़ दी है।
– हर गतिविधि के लिए फोटो, वीडियो और जियोटैगिंग जैसे काम भी शिक्षकों के जिम्मे डाल दिए गए हैं।
ऑनलाइन और ऑफलाइन कामों का बोझ
शिक्षकों का कहना है कि उनका 35-40% समय मोबाइल ऐप्स और पोर्टलों पर डेटा अपलोड करने, उपस्थिति दर्ज करने और ऑनलाइन प्रशिक्षण में निकल जाता है।
– इसके अलावा 20-25% समय मीटिंग्स, निरीक्षण और रजिस्टर अपडेट करने जैसे ऑफलाइन कामों में चला जाता है।
– बचे हुए समय में पढ़ाई की कोशिश होती है, लेकिन तब तक बच्चों का ध्यान और शिक्षकों की ऊर्जा दोनों बिखर चुके होते हैं।
चुनावी ड्यूटी ने बिगाड़ा हाल
चुनावी मौसम में स्थिति और खराब हो जाती है। शिक्षकों को महीनों तक निर्वाचन कार्यों और प्रशिक्षण में उलझना पड़ता है। एक शिक्षक ने बताया, “पिछले लोकसभा चुनाव में तीन महीने तक स्कूलों में पढ़ाई ठप रही। बच्चों को इसका नुकसान उठाना पड़ा।”
शिक्षा पर मंडराता खतरा
शिक्षकों का कहना है कि एक आदेश खत्म होने से पहले दूसरा आदेश आ जाता है। यह सिलसिला उनके मूल काम—बच्चों को पढ़ाने—को पूरी तरह प्रभावित कर रहा है। अगर यही हाल रहा तो शिक्षा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी, और बच्चों का भविष्य अंधेरे में डूब जाएगा।
समाज से गुहार
शिक्षकों ने समाज और मीडिया से अपील की है कि इस गंभीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाए। उनका कहना है कि शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देना होगा ताकि शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक बोझ से मुक्ति मिले और वे बच्चों को पढ़ाने पर ध्यान दे सकें।
स्पेशल रिपोर्टर: सुनील जोल्हे