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वृद्ध माता-पिता की सेवा ही सच्चा धर्म : घरघोड़ा कॉलेज में न्यायाधीशों ने उठाई आत्मा को झकझोर देने वाली बात—‘भरण-पोषण न करना सिर्फ अपराध नहीं, पाप है’

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा।

आज के तेज़ रफ्तार दौर में जहां नए सपनों के पीछे भागती पीढ़ी अक्सर अपने पीछे खड़ी विशाल छाया—अपने माता-पिता—को भूलती जा रही है, वहीं शासकीय महाविद्यालय घरघोड़ा में आयोजित विधिक जागरूकता शिविर ने युवा मनों पर गहरी छाप छोड़ी। न्यायोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित इस जागरूकता शिविर में न्यायाधीशों ने न सिर्फ कानून समझाया बल्कि उन सवालों पर भी बात की, जिनसे हर संवेदनशील इंसान का दिल काँप उठे—“क्या हम सचमुच अपने माता-पिता के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहे हैं?”

शिविर का आयोजन प्रधान जिला न्यायाधीश एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायगढ़ के अध्यक्ष श्री जितेंद्र जैन तथा विशेष न्यायाधीश/अध्यक्ष तालुका विधिक सेवा समिति घरघोड़ा श्री शहाबुद्दीन कुरैशी के मार्गदर्शन में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में न्यायाधीश श्री दामोदर प्रसाद चंद्रा एवं न्यायाधीश सुश्री प्रीति झा उपस्थित थे।

“माता-पिता का भरण-पोषण करना सिर्फ कर्तव्य नहीं, कानून की बाध्यता भी”—न्यायाधीश चंद्रा

अपने उद्बोधन में न्यायाधीश श्री दामोदर प्रसाद चंद्रा की आवाज़ में एक ऐसी गंभीरता थी, जिसने पूरे सभागार को स्तब्ध कर दिया। उन्होंने बताया कि “माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम-2007” के तहत किसी भी संतान के लिए अपने माता-पिता की देखभाल करना कानूनी जिम्मेदारी है। लेकिन बात सिर्फ कानून की नहीं—यह हमारी संस्कृति, संस्कार और मानवता का मूल आधार भी है।

उन्होंने भावुक शब्दों में कहा—
“जिन हाथों ने हमें चलना सिखाया, आज वही हाथ कांपते दिखाई देते हैं। जिन लोगों ने अपने जीवन का हर सुख त्यागकर हमें बड़ा किया, बुढ़ापे में वही माता-पिता अक्सर उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं। क्या यही हमारा धर्म है?”

उन्होंने बताया कि आज ऐसे अनेक उदाहरण सामने आते हैं, जहां बुजुर्गों को अपने ही घर से बेदखल होना पड़ता है। कई वृद्धजन आर्थिक उत्पीड़न, मानसिक प्रताड़ना और सामाजिक उपेक्षा झेलते हैं। उन्होंने छात्रों से अपील की—
“यदि आप अपने बुजुर्गों को सम्मान नहीं दे पाते, तो आपका शिक्षित होना भी व्यर्थ है।”

विधिक जागरूकता के अन्य विषयों पर भी हुई महत्वपूर्ण चर्चा

न्यायाधीश चंद्रा ने पॉक्सो एक्ट, बाल यौन शोषण, बाल विवाह, बाल श्रम, सड़क सुरक्षा, ट्रैफिक नियम, साइबर अपराध और सोशल मीडिया के जोखिमों पर भी विस्तृत जानकारी दी।

महिलाओं की सुरक्षा और तस्करी पर न्यायाधीश सुश्री प्रीति झा का संबोधन

न्यायाधीश सुश्री प्रीति झा ने महिलाओं के घरेलू हिंसा, मानव तस्करी और जबरन बाल विवाह के खतरों पर विस्तार से बताया। उन्होंने जरूरी हेल्पलाइन नंबर भी साझा किए—

महिला हेल्पलाइन – 181

महिला सुरक्षा – 1091

नालसा हेल्पलाइन – 15100


उन्होंने कहा—
“किसी भी आपात स्थिति में मदद केवल एक कॉल दूर है। कभी भी चुप न रहें, आवाज़ उठाना ही सुरक्षा का पहला कदम है।”



कार्यक्रम में कॉलेज स्टाफ और पुलिस कर्मियों की उपस्थिति

इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पी.के. अग्रवाल, डॉ. चंद्रशेखर सिंह, डॉ. चंद्रा, पैरालीगल वालंटियर बालकृष्ण चौहान, टीकम सिंह सिदार, थाना घरघोड़ा के आरक्षक आशिक पन्ना, प्रहलाद भगत, प्रेम राठिया, सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद थे।


(जागरूकता का संदेश):

आज के युवा अपने भविष्य को लेकर जितने सजग हैं, उतनी ही संवेदनशीलता उन्हें अपने माता-पिता के प्रति भी दिखानी चाहिए। बुजुर्गों का सम्मान सिर्फ एक सामाजिक रिवाज नहीं—यह इंसानियत की पहचान है।

यदि आप अपने माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं निभाते—
तो याद रखिए,
“अधिकार मांगने से पहले कर्तव्य निभाना जरूरी है,
और जिसका कर्तव्य मर जाता है, उसकी आत्मा भी धीरे-धीरे मर ही जाती है।”

डेस्क रिपोर्ट

Amar Chouhan

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