लैलूंगा जनपद में ‘विकास’ के नाम पर लूट का साम्राज्य — करोड़ों के फर्जी भुगतान, अधूरे कामों का खेल और प्रशासन की रहस्यमयी चुप्पी

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
जिले के लैलूंगा जनपद पंचायत में विकास की आड़ में वर्षों से चल रहा भ्रष्टाचार अब महाघोटाले का रूप ले चुका है। योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये के भुगतान कागज़ों में दिखाए गए, लेकिन ज़मीन पर विकास के नाम पर धूल भी नहीं जमी। यह कहानी सिर्फ कुछ पंचायतों की नहीं, बल्कि पूरे जनपद में फैले उस संगठित तंत्र की है, जहाँ “विकास” एक फाइल का शब्द बन गया है और “घोटाला” एक व्यवस्था।
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हर पंचायत में ‘विकास’ का फर्जीवाड़ा
लैलूंगा जनपद की लगभग हर पंचायत में योजनाओं का नाम लेकर सरकारी धन का बंदरबांट किया गया। ग्राम पंचायत झरन, बसंतपुर, आमापाली, जामबहार और आसपास के इलाकों में एक जैसी गड़बड़ियाँ सामने आई हैं —
अधूरे कामों को “पूर्ण” दिखाकर भुगतान,
बिना सप्लाई के बिल पास करना,
कागज़ी दुकानों से फर्जी सामग्री खरीदना,
और मनरेगा व प्रधानमंत्री आवास योजना में रिकॉर्ड तोड़ धांधली।
मनरेगा, शौचालय निर्माण, गौठान योजना, तालाब खुदाई और आवास योजना जैसे सरकारी कार्यक्रमों के लिए करोड़ों रुपये खर्च दिखाए गए, लेकिन गाँवों में न तालाब खुदे, न सड़कें बनीं और न ही सामग्री पहुँची। इतना ही नहीं — जांच में यह भी सामने आया है कि कई “सप्लायर” और “दुकानें” सिर्फ कागज़ों में हैं, वास्तविकता में उनका अस्तित्व ही नहीं।
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जनपद से पंचायत तक — मिलीभगत का नेटवर्क
यह गड़बड़ी केवल पंचायत स्तर तक सीमित नहीं है। पूरे मामले में जनपद दफ्तर से लेकर पंचायत सचिव, रोजगार सहायक और तकनीकी सहायकों तक की मिलीभगत की बात खुलकर सामने आ रही है।
हर साल होने वाले ऑडिट में सबकुछ “संतोषजनक” बताया गया, जो यह साबित करता है कि ऑडिट सिस्टम भी भ्रष्टाचार के संरक्षण का हिस्सा बन चुका है।
एक स्थानीय सूत्र के अनुसार, “हर फर्जी बिल में ऊपर से नीचे तक हिस्सा तय है। जो बोलता है, उसे साइडलाइन कर दिया जाता है।”
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ग्रामीणों की हिम्मत — सच बोलने की कीमत
ग्राम झरन के ग्रामीण कन्हैया दास महत ने मनरेगा घोटाले की शिकायत करते हुए कहा कि “कागज़ों में सड़क बन चुकी है, लेकिन ज़मीन पर सिर्फ घास उगी है।”
उन्होंने जब यह बात उजागर की, तो अब उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। उन्होंने अग्रिम सुरक्षा के लिए पुलिस में आवेदन दिया है। यह भय बताता है कि जिन लोगों ने जनता के विकास की रकम लूटी है, उनके पास सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण भी है।
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वर्षों से जमे अफसर — भ्रष्टाचार की जड़ यही है
लैलूंगा जनपद में कई अधिकारी और कर्मचारी वर्षों से एक ही पद पर जमे हुए हैं। ट्रांसफर नीति यहाँ केवल कागज़ों में चलती है। यही कारण है कि योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर जांच तक वही चेहरे बने हुए हैं — परिणामतः “घोटाला” अब “संरक्षित परंपरा” बन चुका है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि “जनपद कार्यालय अब विकास का नहीं, बल्कि फाइलों में ‘लूट उद्योग’ चलाने का केंद्र बन गया है।”
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प्रशासन की चुप्पी — क्या यह मौन स्वीकृति है?
इतने बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं के बावजूद अब तक न कोई जांच शुरू हुई, न किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कार्रवाई हुई। प्रशासन की चुप्पी अब सवाल बन चुकी है — क्या यह सिर्फ लापरवाही है या किसी बड़े संरक्षण का परिणाम?
यदि इतनी बड़ी लूट के बावजूद जिम्मेदारों की पहचान नहीं हो रही, तो यह साफ संकेत है कि भ्रष्टाचार “ऊपर से नीचे तक” सुरक्षित है।
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‘खबर’ की विशेष जांच श्रृंखला
“मीडिया टीम” ने इस पूरे प्रकरण की तह तक जाने के लिए एक विशेष जांच टीम गठित की है।
🔹 पहला चरण: झरन, बसंतपुर और आमापाली पंचायत की फाइलों और योजनाओं की हकीकत।
🔹 दूसरा चरण: जामबहार पंचायत में हुए करोड़ों के भुगतान का विश्लेषण।
🔹 तीसरा चरण: पूरे जनपद कार्यालय की ऑडिट फाइलों और बिल रिकॉर्ड का खुलासा।
यह सिर्फ खबर नहीं, बल्कि उस “विकास तंत्र” की असलियत है, जो जनता की गाढ़ी कमाई पर पल रहा है।
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जनता के पैसे का हिसाब कौन देगा?
लैलूंगा जनपद का यह घोटाला केवल भ्रष्टाचार की कहानी नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर एक धब्बा है। जनता के नाम पर जारी धन अगर जनपद कार्यालयों की फाइलों में ही दफन हो जाए, तो यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि जन-विश्वास की हत्या है।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है — आखिर जिम्मेदार कौन है?
पंचायत सचिव? रोजगार सहायक? ऑडिटर? जनपद अधिकारी? या फिर वह सिस्टम, जो हर बार अपराध को “प्रशासनिक प्रक्रिया” का नाम देकर ढक देता है?
जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक लैलूंगा में विकास नहीं — लूट का तंत्र ही चलता रहेगा।
समाचार सहयोगी भरत साहू की रिपोर्ट